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खुदाई में निकली हरिहर प्रतिमा और शिवलिंग

मैनपुरी [जासं]। ऋषियों की तपोस्थली औंछा के आसपास इतिहास की परतें दबी हुई हैं। शुक्रवार को ग्राम बल्लमपुर के निकट शिव आश्रम वनकटी के प्रांगण में खुदाई के दौरान तीन फुट लंबी भगवान हरिहर की प्रतिमा निकली। ये शिव और विष्णु का मिला-जुला स्वरूप हैं। इसके अलावा छह फुट लंबा शिवलिंग और शिलालेख बरामद हुआ है।

By Edited By: Updated: Fri, 19 Jul 2013 10:19 PM (IST)
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मैनपुरी [जासं]। ऋषियों की तपोस्थली औंछा के आसपास इतिहास की परतें दबी हुई हैं। शुक्रवार को ग्राम बल्लमपुर के निकट शिव आश्रम वनकटी के प्रांगण में खुदाई के दौरान तीन फुट लंबी भगवान हरिहर की प्रतिमा निकली। ये शिव और विष्णु का मिला-जुला स्वरूप हैं। इसके अलावा छह फुट लंबा शिवलिंग और शिलालेख बरामद हुआ है। एक मंदिर के अवशेष भी निकले, जिन पर प्राचीन कलाकृतियां अंकित हैं। ये सभी अवशेष नौवीं से दसवीं शताब्दी के हैं।

शिव आश्रम के आसपास के ऊंचे टीले पर संतों के ठहरने के लिए आवास का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए शुक्रवार को जेसीबी से खुदाई शुरू की गई। चार फीट मिंट्टी हटने के बाद अचानक वहां पत्थर दिखाई दिया तो जेसीबी मशीन को रुकवाया गया। वहां फावड़े से खुदाई कराई गई तो छह फुट लंबा शिवलिंग निकला। इसके बाद खुदाई जारी रखी गई तो तीन फुट ऊंचाई वाली भगवान हरिहर की प्रतिमा निकली।

पुरातत्व विशेषज्ञ एके तिवारी का कहना है कि भगवान हरिहर शिव और विष्णु का मिला-जुला स्वरूप हैं। प्रतिमा के त्रिनेत्र हैं। उल्टे हाथ में चक्र बना हुआ है, जबकि दाएं हाथ में त्रिशूल है। इसके अलावा मिले अवशेषों पर प्राचीन कलाकृतियां अंकित है।

खुदाई के दौरान एक शिलालेख भी बरामद हुआ है। पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर क्या लिखा है, यह इसकी सफाई के बाद ही ज्ञात हो सकेगा। शुक्रवार को परिसर में आदिकाल की नालीदार ककइया ईटें भी निकली हैं। कुछ पत्थर के टुकड़े भी निकले, जो मंदिर होने का सुबूत दे रहे हैं।

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पहले निकला था 11 फुट का शिवलिंग :

मंदिर के पुजारी देवानंद का कहना है कि 2004-05 में उनके गुरु ने खुदाई कराई गई थी तब 11 फुट लंबा और पांच फुटा चौड़ा शिवलिंग निकला था, जिसे मंदिर में स्थापित कर दिया था।

मंदिर के पुजारी का कहना है कि लगभग 100 वर्ष पहले उनके गुरु लालता प्रसाद ने शिव मंदिर का निर्माण कराया था। उस समय मंदिर के किनारे एक बड़ा सा पक्का तालाब था। कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण भगवान राम ने कराया था। इसी स्थान पर शबरी ने तपस्या की थी, उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान राम यहां पहुंचे थे। उस दौरान यहां तपस्या कर रहे ऋषियों ने भगवान राम को पीने के पानी की समस्या की जानकारी दी, तो उन्होंने शबरी के हाथ के बेर खाने की बात कहकर एक तालाब का निर्माण कराया। इस तालाब में न तो घास उगती थी न ही जीव-जंतु पलते थे। पानी स्वच्छ रहता था, जिसका पान ऋषि मुनि करते थे।

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