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शिवसेना ने भाजपा को बताया दुर्योधन, साधा मोदी पर निशाना

महाराष्‍ट्र में भाजपा के जूनियर पार्टनर बनने की टीस शिवसेना के मन से अब तक नहीं गई है। पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना में एक बार फिर भाजपा पर हमला बोला है। अखबार के संपादकीय पृष्‍ठ में लिखे लेख में भाजपा की तुलना दुर्योधन से की गई है।

By Sanjay BhardwajEdited By: Updated: Wed, 18 Mar 2015 11:11 AM (IST)
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नई दिल्ली। महाराष्ट्र में भाजपा के जूनियर पार्टनर बनने की टीस शिवसेना के मन से अब तक नहीं गई है। पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना में एक बार फिर भाजपा पर हमला बोला है। अखबार के संपादकीय पृष्ठ में लिखे लेख में भाजपा की तुलना दुर्योधन से की गई है।

सामना में 'वस्त्र हरण हुआ, पर द्रौपदी कौन' शीर्षक से छपे लेख में महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच संबंधों को लेकर तल्ख टिप्पणी की गई है। लेख में कहा गया है कि राज्य में भाजपा और शिवसेना की गठबंधन सरकार है लेकिन भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच जिस प्रकार की अंदरखाने दोस्ती चल रही है वह राज्य की जनता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। इसमें कहा गया है कि विधान परिषद के सभापति पद से शिवाजी राव को हटाने के लिए जिस प्रकार के संवैधानकि दांवपेंच खेले गए उससे महाराष्ट्र की राजनीतिक साधन शुचिता बेहोश हो गई है।

लेख में कहा गया है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस और भाजपा के बीच हुई युति सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हो गया। विधान परिषद में राकांपा के सदस्यों की संख्या ज्यादा होने के चलते सभापति का पद पर उन्हें दिए जाने की मांग हो रही थी। लोकतंत्र में आंकड़ा और सिर गिनने पर जोर दिया जाता है। इसलिए राकांपा की मांग में कुछ गलत नहीं था। लेकिन यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि कांग्रेस और राकांपा के बीच इस तरह का झगड़ा कोई नया नहीं है। इस खींचतान में सत्ताधारियों को दुर्योधन की भूमिका में आने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए लिखा गया है कि अगर भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच अंदरखाने दोस्ती नहीं होती तो क्यों विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी कह रहे थे कि काका-भतीजे ने महाराष्ट्र को लूट लिया अब इनसे राज्य को बचाओ। वहीं चुनाव के बाद वह बरामती जाते हैं और स्वयं रहस्योद्घाटन करते हैं कि काका साहब हमारे मार्गदर्शक हैं।

सत्ता प्राप्ति से पहले फड्नवीस कह रहे थे कि राष्ट्रवादी कांग्रेस से किसी प्रकार की युति नहीं हो सकती। वहीं आज वह उनका चुंबन लेते दिखाई पड़ रहे हैं। इस दृश्य को देखकर महाराष्ट्र के 11 करोड़ मराठी जनों को एहसास होता है कि हम स्वयं द्रौपदी बन गए और सरे बाजार हमारा वस्त्र हरण हो गया।

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