कांग्रेस के दरवाजे तक पहुंचा सिखों का गुस्सा
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सिख दंगों का जिन्न कांग्रेस के कंधों पर अपना बोझ बढ़ाता जा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सिख दंगों में कुछ कांग्रेसियों के भी शामिल होने की स्वीकारोक्ति के बाद सिख संगठनों का गुस्सा पार्टी मुख्यालय के दफ्तर तक जा पहुंचा।
By Edited By: Updated: Thu, 30 Jan 2014 08:58 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सिख दंगों का जिन्न कांग्रेस के कंधों पर अपना बोझ बढ़ाता जा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सिख दंगों में कुछ कांग्रेसियों के भी शामिल होने की स्वीकारोक्ति के बाद सिख संगठनों का गुस्सा पार्टी मुख्यालय के दफ्तर तक जा पहुंचा।
सिख दंगों की जांच के लिए एसआइटी के गठन की संभावनाएं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले ही तलाशनी शुरू कर दी हैं। वहीं भाजपा और अकाली दल ने 1984 में सिखों के नरसंहार के मुद्दे पर दोषियों को सजा न होने का मुद्दा गरमा कर आम चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस एडवाइजर रहे तरलोचन सिंह ने दंगों को होने देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जिम्मेदार ठहराकर इस मामले को और कांग्रेस के लिए और पेचीदा कर दिया है। तरलोचन ने दावा किया है कि जब पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था तब राष्ट्रपति के कई बार फोन करने के बाद भी राजीव गांधी उपलब्ध नहीं हुए थे। भाजपा और अकाली दल के साथ-साथ इस मामले में आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसने कांग्रेस आलाकमान को बेहद चिंता में डाल दिया है। सबसे बड़ी दिक्कत है कि सिख दंगों की एसआइटी के साथ-साथ अब बटला हाउस कांड की भी जांच की मांग उठने लगी है। जिस ध्रुवीकरण की आशंका में कांग्रेस खुलकर गुजरात के दंगों को नहीं उठा रही थी, उसकी जगह 30 साल पुराना जिन्न सामने आने से पार्टी हैरत में है।
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