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आतंकवाद में लग आ रहा है पशुवध का पैसा : मेनका

केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री तथा पर्यावरणविद मेनका गांधी ने उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि देश में पशुवध से मिलने वाला पैसा आतंकवाद फैलाने के काम आ रहा है। उन्होंने कहा कि पशुवध किसी धर्म से जुड़ा मामला नहीं है। इसमें बहुत पैसा है और हर धर्म से जुड़े लोग इसमें लगे हैं। मेनका गांधी रविवार

By Edited By: Updated: Sun, 14 Sep 2014 07:03 PM (IST)

जयपुर। केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री तथा पर्यावरणविद मेनका गांधी ने उत्तर प्रदेश पुलिस के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि देश में पशुवध से मिलने वाला पैसा आतंकवाद फैलाने के काम आ रहा है। उन्होंने कहा कि पशुवध किसी धर्म से जुड़ा मामला नहीं है। इसमें बहुत पैसा है और हर धर्म से जुड़े लोग इसमें लगे हैं।

मेनका गांधी रविवार को जयपुर में जानवरों की रक्षा के लिए काम कर रही संस्थाओं के सम्मेलन 'इंडिया फॉर एनिमल' के समापन-सत्र को संबोधित कर रही थीं। यह सम्मेलन फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेंशंस तथा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की ओर से आयोजित किया गया।

इस मौके पर मेनका ने कहा कि यह हमारे लिए शर्म की बात है कि दुनिया में सबसे ज्यादा पशु हमारे देश में कटते हैं या कटने के लिए बाहर भेजे जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें बहुत पैसा है और उत्तर प्रदेश की पुलिस के एक अध्ययन के मुताबिक इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने में किया जा रहा है। यानी हम खुद को मारने के लिए पशुओं को मार रहे हैं।

80 फीसद दूध मिलावटी

उन्होंने कहा कि आज मध्य पूर्व के देशों में दुधारू पशुओं की सबसे ज्यादा मांग है। ऐसे पशु सबसे ज्यादा हमारे यहां से भेजे जाते हैं। इसके लिए पहले पशु का दूध निकालते हुए फोटो लिया जाता है। फिर उसके थन काटे जाते हैं और फिर पशु को काटकर उस पर उसके थन रखकर भेजे जाते है। सोचिए कि हमारे दुधारू पशु खत्म हो गए तो हम क्या करेंगे। आज भी हमें मिलने वाला अस्सी प्रतिशत दूध मिलावटी और नकली है। मेनका ने कहा कि हमारे यहां आज दस साल से ज्यादा उम्र का एक भी पशु नहीं है, क्योंकि उन्हें बहुत जल्दी बांझ बनाकर कटने के लिए भेज दिया जाता है।

संगठनों की भी खिंचाई

उन्होंने जानवरों की रक्षा के लिए काम कर रहे संगठनों को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि यह आंदोलन सिर्फ कुत्ते और बिल्ली तक सीमित हो कर रह गया है। यहां तक की मेरी पहचान भी इसी रूप में होती है कि मेनका तो कुत्ते, बिल्ली के लिए ही काम करती है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी बहुत पशु हैं और बहुत से क्षेत्र हैं, जिनमें काम करने की जरूरत है। उन्होंने इस क्षेत्र में सक्रिय लोगों में युवाओं की संख्या काम होने पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि आज जो भी लोग यहां काम कर रहे हैं, वे उम्रदराज हो चुके हैं और सवाल यही खड़ा हो रहा है कि इनके बाद कौन काम करेगा।

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