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..तो इसलिए मोदी हैं पीएम पद के लिए राइट च्वाइस!

भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने 'मोदी राग' छेड़कर इस बहस को तेज कर दिया है। सिन्हा ने तो यहां तक कह दिया है कि यदि इसमें जदयू को

By Edited By: Updated: Tue, 29 Jan 2013 11:05 AM (IST)
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नई दिल्ली। भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने 'मोदी राग' छेड़कर इस बहस को तेज कर दिया है। सिन्हा ने तो यहां तक कह दिया है कि यदि इसमें जदयू को कोई दिक्कत है तो बेशक वह एनडीए छोड़ सकती है। बकौल सिन्हा, 'आम आदमी और पार्टी कार्यकर्ताओं की जबरदस्त मांग है कि भाजपा को मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करे। उससे पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में बहुत फायदा होगा। मोदी के नाम पर भाजपा नेता का बढ़ा हुआ आत्मविश्वास यूं ही नहीं है। उन्होंने इस पर पूरा चिंतन-मनन किया होगा तभी वह ऐसा कह रहे होंगे। आइए जानते हैं आखिर क्या है यशवंत सिन्हा और भाजपा के आम कार्यकर्ताओं का मोदी को आगे करने के पीछे का तर्क :-

1. विकास पुरुष की छवि: पिछले 11 वर्षो में गुजरात के विकास की कहानी मोदी ने जिस तरह से गढ़ी है, उससे देशभर में एक संदेश गया है कि वह तरक्की पसंद नेता हैं और इसके लिए वह जी-जान लगाकर काम करते हैं। लगातार तीसरी बार सत्ता प्राप्त करने वाले मोदी को भी इस बात का एहसास है। उन्होंने अपनी राजनीति को पूरी तरह से विकास से जोड़ दिया और गुजरात की जनता ने इसे हाथोंहाथ लिया।

2. युवाओं में स्वीकार्यता:- आज देश में 60 फीसद से ज्यादा आबादी युवाओं की है। वह देश का नेतृत्व एक तेजतर्रार और चुस्त प्रशासक के हाथों में देना चाहते हैं। वह देश में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व कानूनी बदलाव चाहते हैं। युवा चाहते हैं कि उन्हें उनकी मनोदशा को समझने वाला नेता मिले। उनका नेता राजनेता की तरह नहीं बल्कि प्रबंधक की तरह काम करे। मोदी में युवाओं को ये सारी खूबियां नजर आती हैं। सोशल मीडिया में मोदी को पीएम बनाने को लेकर चल रहे अभियान इस बात की तस्दीक करते हैं।

3. कार्यकर्ताओं की पसंद:- भाजपा में युवा कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने से उनमें जोश का संचार होगा और वह दोगुनी ताकत से चुनावी मैदान में उतरेंगे। गुजरात में मोदी की कार्यशैली युवा कार्यकर्ताओं को खूब भा रही है।

इसलिए तीसरी बार जीत के बाद जब मोदी पहली बार विशाल जनसमूह को संबोधित कर रहे थे तब कार्यकर्ताओं ने 'पीए-पीएम' के खूब नारे लगाए थे। साथ ही जब वह दिल्ली पार्टी मुख्यालय आए थे तब भी यहां कार्यकर्ताओं ने 'पीएम-पीएम' के नारे लगाए थे। कार्यकर्ताओं के इस नारे से यह समझना मुश्किल नहीं है कि मोदी को लेकर उनकी क्या सोच है।

4. कुनबा बढ़ाने में सक्षम:- गठबंधन राजनीति के इस दौर में बड़ीच्सच्चाई यह है कि कोई भी पार्टी केंद्र में अपने बलबूते सरकार नहीं बना सकती है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों को साथी की जरूरत पड़ेगी। मोदी एनडीए में नए साथियों को जोड़ सकते हैं। उसमें सबसे पहला नाम आता है तमिलनाडु की मुख्यमंत्री व एआइडीएमके प्रमुख जयललिता की। इसके साथ ही उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला से मोदी के मधुर रिश्ते हैं। इसलिए एनडीए के इन पुराने साथियों को मोदी साध सकते हैं।

5. नीतीश व ममता की मजबूरी :- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी के नाम पर चाहे जितना विरोध करें, आखिरकार उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना ही पड़ेगा। पहली बात कि वह बिहार में भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे हैं और किसी भी हालत में वह नहीं चाहेंगे कि उनकी सरकार को कोई खतरा हो। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार के आर्थिक हालात बहुतच्अच्छे नहीं हैं इसलिए वह लगातार विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। हालांकि इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। अगर यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह चाहेंगे कि राज्य के लिए भारी-भरकम आर्थिक पैकेज ही मिल जाए। इसलिए अंतत: वह राज्य के हित में मोदी की उम्मीदवारी पर भाजपा से समझौता कर लेंगे। ठीक ऐसी ही स्थिति पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ भी है। एफडीआइ को लेकर ममता का यूपीए 2 से अलग होना तो बस बहाना था। असल में वह राज्य के लिए आर्थिक पैकेज के साथ-साथ कर्ज वसूली में छूट चाहती थीं लेकिन केंद्र सरकार ने खराब आर्थिक हालात का हवाला देकर ऐसा करने से मना कर दिया था। ऐसे में ममता एनडीए में अपनी संभावनाएं टटोल सकती हैं।

6. राहुल बनाम मोदी:- कांग्रेस ने राहुल गांधी को महासचिव से उपाध्यक्ष बनाकर यह संकेत दे दिया है कि अब पार्टी में उनका कद अधिकृत रूप से नंबर दो की हो गई है। इसके साथ ही पार्टी ने यह भी संकेत दे दिया है कि 2014 का चुनाव राहुल के ही नेतृत्व में लड़ेगी। इसलिए राहुल को यदि कोई टक्कर दे सकता है तो वह हैं मोदी।

7. मोदी पर लगातार हमला:- विरोधियों द्वारा लगातार हमले की वजह से मोदी हमेशा चर्चा में रहे हैं। जहां सांप्रदायिकता की चर्चा होती है वहां मोदी की बात जरूर की जाती है। उन्हें बार-बार दंगों के लिए कटघरे में खड़ा किया जाता है। ऐसे में उनकी निगेटिव छवि भी उन्हें चर्चा में बनाए रखती है और लोग ध्रुवीकृत हो जाते हैं।

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