कांग्रेस में मुखर हो सकते हैं कुछ और नाराज स्वर, त्रिपुरा में कई MLA ने छोड़ी पार्टी
एक वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए इसका संकेत दे दिया कि अब पार्टी के अंदर ही 'विश्वास का संकट' पैदा हो गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लगातार हाथ छोड़ रहे पुराने साथियों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व भले ही चुप हो, दूसरी तीसरी पंक्ति के पार्टी नेता असहज ही नहीं परेशान होने लगे हैं। फिलहाल वह मुंह पर हाथ दबाए बैठे हैं लेकिन माना जा रहा है कि जल्द ही शीर्ष नेतृत्व से कोई कवायद नहीं दिखी तो कुछ और स्वर मुखर हो सकते हैं। एक वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए इसका संकेत दे दिया कि अब पार्टी के अंदर ही 'विश्वास का संकट' पैदा हो गया है।
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पहले असम में पार्टी के मुख्य कप्तान हेमंत विश्व शर्मा, फिर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी और अब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गुरुदास कामत.। उन्होंने यह कहते हुए पार्टी से दूरी बना ली कि यहां कोई खेवनहार ही नहीं है। त्रिपुरा में कांग्रेस के दस में से छह विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है। नेता का चेहरा को सामने है लेकिन फैसला कौन लेता ही इसका पता नहीं।
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गौरतलब है कि हेमंत राहुल के दरवाजे से निराश होकर सीधे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दरवाजे पर पहुंचे थे। जोगी की तो खैर व्यक्तिगत परेशानी है। वह वैसे भी हाशिए पर थे। लेकिन सूत्रों की मानी जाए तो कामत तीन महीने से सोनिया गांधी को पत्र लिख रहे थे। इतना ही नहीं एक महीने पहले अपना इस्तीफा भी भेज चुके थे। कुछ दिन पहले सोनिया गांधी से मुलाकात तो हुई लेकिन उस बाबत कोई चर्चा नहीं हुई।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार 'जिस तरह पार्टी की कमान परिवार के ही अंदर दो लोगों- सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथ में है उसमें कोई शिकायत करे भी तो किससे? पार्टी के अंदर एक भ्रम की स्थिति है और विश्वास का संकट इतना गहरा गया है कि आत्मविश्वास भी खतरे में है।'
सूत्रों के अनुसार पश्चिम बंगाल में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस के भी टूट की स्थिति पैदा होने लगी है। उत्तर पूर्व में सबकुछ नियंत्रण में नहीं है तो उत्तर प्रदेश में 'उधार के रणनीतिकार' को लेकर नाराजगी इतनी ज्यादा है कि कभी भी कोई नेता मुखर हो सकता है।
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ऐसे में पार्टी हाईकमान में बदलाव को लेकर फिर से तेज हुई अटकल पर सबकी नजरें हैं। कुछ नेता जहां इससे खुश है वहीं कुछ नेता इसे इसलिए पार्टी के लिए शुभ नहीं मान रहे हैं क्योंकि राहुल गांधी सोनिया गांधी की तरह बरगद के रूप में खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं। राजनीतिक गंभीरता को लेकर भी पार्टी के अंदर ही सवाल उठते रहे हैं। बहरहाल, वह भी मानते हैं कि इससे कम से कम एक संकट दूर होगा और वह है -शक्ति के दो केंद्र का संकट।
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