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समलैंगिकता के पक्ष में सोनिया-राहुल

समलैंगिक संबंधों को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में सरकार और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से खुलकर एतराज दर्ज कराया गया है। गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फैसले पर निराशा जताई। वहीं, कुछ ही मुद्दों पर सार्वजनिक राय देने वाले पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने धारा-377 को फिर से अपराध की श्रेणी में डालने का विरोध किया है। राहुल ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए इसे निजी स्वतंत्रता का मुद्दा बताया।

By Edited By: Updated: Fri, 13 Dec 2013 03:16 AM (IST)
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नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। समलैंगिक संबंधों को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में सरकार और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से खुलकर एतराज दर्ज कराया गया है। बृहस्पतिवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फैसले पर निराशा जताई। वहीं, कुछ ही मुद्दों पर सार्वजनिक राय देने वाले पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने धारा-377 को फिर से अपराध की श्रेणी में डालने का विरोध किया है। राहुल ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए इसे निजी स्वतंत्रता का मुद्दा बताया। शीर्ष स्तर से मिले संकेतों के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव के लिए हरसंभव पहल के संकेत दिए हैं।

फैसले पर तीखी प्रतिक्रियाओं के बीच राहुल गांधी ने गुरुवार शाम कहा कि वह दिल्ली हाई कोर्ट की राय के साथ हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा-377 को गलत करार देते हुए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इसी निर्णय को पलट दिया। सोनिया गांधी ने कहा कि हाई कोर्ट ने संविधान में दिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले एक पुराने दमनकारी और अन्यायी कानून को हटाने का विवेकपूर्ण फैसला लिया था। संविधान ने हमें उदारता और खुलेपन की बड़ी विरासत दी है, जो हमें किसी भी तरह के पक्षपात या भेदभाव से लड़ने को प्रेरित करती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के साथ इस संबंध में सुधार का विकल्प सुझाया है, तो संसद इस मुद्दे पर विचार करेगी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सीधे प्रभावित होने वालों समेत सभी नागरिकों के जीवन व आजादी की संवैधानिक गारंटी को बनाए रखेगी।

पढ़ें: समलैंगिकों पर फैसले से बॉलीवुड जगत नाखुश

समलैंगिक संबंध अपराध: सुप्रीम कोर्ट

सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव के उपाय तलाशने शुरू कर दिए हैं। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि कानून में संशोधन के लिए जल्द कदम उठाने की जरूरत है। सरकार सभी उपलब्ध विकल्पों पर विचार करेगी। माना जा रहा है कि सरकार इसके लिए अध्यादेश भी ला सकती है।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी फैसले पर निराशा जताई। वहीं, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि अगर सरकार इसमें संशोधन चाहती है तो सभी दलों से विमर्श कर संसद में आए।

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'समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत को पीछे ले जाने वाला कदम होने के साथ ही मानवाधिकारों के लिए झटका है।' -नवी पिल्लई, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्च्चायुक्त

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'सुप्रीम कोर्ट को फैसला देते समय मौजूदा सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए था। दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला बहुत ही शोधपरक था।' -पी. चिदंबरम, वित्त मंत्री

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'एक दिन पहले लाल बत्तियों पर सुलझा हुआ फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन धारा-377 पर दिए निर्णय से निराश कर दिया।' -मिलिंद देवड़ा, केंद्रीय मंत्री

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'धारा-377 के प्रावधान जीन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। संसद को इसे खारिज कर देना चाहिए।' -प्रिया दत्त, कांग्रेस सांसद

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'समलैगिकों के अधिकार के मसले में कोर्ट को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और चुनाव का सम्मान करना चाहिए।' -सचिन पायलट, केंद्रीय मंत्री

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'सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रगतिशील देश को पीछे धकेलने वाला है। यौन संबंधों के चयन में बराबरी हमारा अधिकार है।' -पूनम महाजन, भाजपा सचिव

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'समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित हूं। गेंद सरकार के पाले में पहुंच गई है। अब सरकार को ही फैसला लेना है।' -एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

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