विश्व ग्रामीण महिला दिवस: चूल्हा-चौका छोड़ खेतों में उतरीं महिलाओं ने संवारा घर
सैकड़ों महिलाओं ने स्व सहायता समूह गठित कर स्वरोजगार के क्षेत्र में उदाहरण पेश किया है। विश्व ग्रामीण महिला दिवस पेश है ऐसी कुछ महिलाओं की कहानी।
श्योपुर, नईदुनिया। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले की कई महिलाओं ने चूल्हा-चौका छोड़ खेतों में उतरकर न केवल अपना भविष्य संवारा, बल्कि अब वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं। यह सब संभव हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के माध्यम से।
जिले में सैकड़ों महिलाओं ने स्व सहायता समूह गठित कर स्वरोजगार के क्षेत्र में उदाहरण पेश किया है। ऐसी महिलाओं में गांधी स्व सहायता समूह कराहल से जुड़ी बसंती बाई हैं। उनके पास इतनी जमीन नहीं थी कि परंपरागत खेती कर अपनी आजीविका चला सकें। बसंती ने अगस्त 2015 में समूह से 20 हजार रुपए का ऋण लेकर अपनी छोटे से जमीन के टुक़़डे में नकदी फसल लगाना (सब्जी उत्पादन) करना शुरू किया। तैयार होने के बाद बसंती सब्जियों को ठेले में रखकर बाजार में बेचने लगी। इससे बसंती को उम्मीद से अधिक आय होने लगी। अब बसंती सब्जी बेचकर 500 रपए रोज कमा रही है। उन्होंने समूह से लिया कर्ज भी चुका दिया है।
एनआरएलएम के जिंदबाबा स्व सहायता सेसईपुरा से जुड़ी दयावती की कहानी भी प्रेरणादायक है। दयावती अपने बेटे के साथ दूसरे के खेतों में मजदूरी कर मुश्किल से पेट पालन कर रही थीं। एनआरएलएम के माध्यम से दयावती ने जुलाई 2015 में समूह से 20 हजार का लोन लेकर घर के बाहर आंगन में ही सब्जी उत्पादन शुरू कर दिया। जैविक पद्घति से उगाई गई सब्जी बाजार में लाने पर हाथों-हाथ बिकने लगी। आंगन मात्र में ही सब्जी उत्पादन कर दयावती 500 रुपए रोज कमाती हैं। उन्होंने अब गांव में एक दुकान ले ली है। इस दुकान पर उसका बेटा जो बेरोजगार था, बैठकर सब्जी बेचता है। मां घर का काम निपटाकर खेती-बाड़ी संभालती हैं।
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