नए कमांडर पद को लेकर घाटी में आतंकी संगठनों के बीच मच सकता है घमासान
घाटी में आतंकी फंडिंग रुकने के बाद सीमित संसाधनों पर कब्जे के लिए आतंकियों के बीच घमासान हो सकता है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। आने वाले दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकियों के बीच आपसी रंजिश बढ़ सकती है। सुरक्षा एजेंसियों की माने तो सब्जार अहमद बट के मारे जाने के बाद हिजबुल मुजाहिदीन के नए कमांडर पद पर कम-से-कम तीन आतंकी दावा कर रहे हैं। हिजबुल मुजाहिदीन का पूर्व आतंकी जाकिर मुसा घाटी में शरीयत शासन स्थापित करने के उद्देश्य से नया आतंकी संगठन बना सकता है। यही नहीं, सीमा पार से आतंकी फंडिंग रोकने की सुरक्षा एजेंसियों की कोशिश सफल रही तो, स्थानीय संसाधनों पर कब्जे के लिए इनके बीच मार-काट भी मच सकती है।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक फिलहाल दक्षिणी कश्मीर में 200 आतंकी सक्रिय हैं, जिनमें से 110 आतंकी स्थानीय हैं। इनमें अधिकांश लश्करे तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के बंटे हुए हैं। पाकिस्तानी फंडिंग पाने वाले ये आतंकी सीमा पार आकाओं के निर्देश का पालन करते थे और आतंकी हमलों में एक-दूसरे का सहयोग करते थे। लेकिन साथ ही दोनों आतंकी संगठन एक-दूसरे के आतंकियों को तोड़ने में पीछे नहीं हटते थे। हिजबुल मुजाहिदीन के नए कमांडर के रूप में जिस रियाज नायको का नाम सबसे आगे चल रहा है, वह कभी लश्कर कमांडर अबु दुजाना के मातहत काम करता था।
लेकिन बाद में उसने दुजाना का साथ छोड़कर बुरहान वानी के साथ हिजबुल में शामिल हो गया था। हिजबुल मुजाहिदीन घाटी में लश्करे तैयबा के काफी बड़ा आतंकी संगठन है। ऐसे में अबु दुजाना और रियाज नायको के बीच तालमेल की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जबकि सद्दाम पड्डार और यासीन इटू ने हिजबुल कमांडर के पद के लिए दावा ठोकर रियाज नायको के सामने चुनौती पेश कर दी है।
हिजबुल मुजाहिदीन और लश्करे तैयबा के समीकरण बिगड़ने की आशंका के बीच आतंकी जाकिर मूसा का नया पेंच और फंस गया है। मूसा ने आतंक का ज्यादा कट्टर रास्ता अख्तियार करते हुए कश्मीर में इस्लामी शासन लागू करने को अपना उद्देश्य बताया है। यही नहीं, उसने इस्लामी शासन के रास्ते में रोड़ा बनने वाले हुर्रियत नेताओं को भी मौत के घाट उतारने की धमकी दी है। यहां तक उसके लिए उसने हिजबुल मुजाहिदीन छोड़ने में देर नहीं लगाई। अब मूसा कश्मीर में नया आतंकी संगठन बना सकता है। मूसा का नया आतंकी संगठन नए तेवरों के साथ हिजबुल मुजाहिदीन और लश्करे तैयबा के लिए नई चुनौती होगा।
लेकिन आतंकी संगठनों के बीच असली लड़ाई संसाधनों के बंटवारे को लेकर मच सकती है। सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि पाकिस्तान से हुर्रियत नेताओं के मार्फत आने वाली आतंकी फंडिंग को रोकने में काफी हद तक सफलता मिल चुकी है। सभी आतंकियों को इन्हीं हुर्रियत नेताओं के मार्फत फंड का बंटवारा किया जाता था। यही कारण है कि लश्कर और हिजबुल दोनों के आतंकी उनके आदेशों का पालन करते थे। लेकिन अब आतंकियों को स्थानीय स्तर पर संसाधन जुटाने पड़ रहे हैं। बैंक लूटकर फंड जुटाने की उनकी कोशिश भी सफल नहीं हो पा रही है। ऐसे में घाटी के सीमित संसाधनों पर कब्जे के लिए उनके बीच मारकाट मचने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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