मैं उन लोगों में शामिल नहीं हूं जो सब्जिया और खाने-पीने की दूसरी चीजें खरीदने बाजार जाते हैं। दरअसल मेरा मौजूदा पेशा मुझे इस सुविधा की इजाजत नहीं देता, लेकिन मुझे याद है कि जब मैं बच्चा था तो अपनी मम्मी और आटी के साथ अक्सर बाजार जाता था। मुझे यह भी याद है कि तब मुझे कितनी बोरियत होती थी, क्योंकि मम्मी और आटी को सब्जिया और फल छाटने में घटों लगते थे।
By Edited By: Updated: Mon, 25 Jun 2012 08:38 AM (IST)
मैं उन लोगों में शामिल नहीं हूं जो सब्जियां और खाने-पीने की दूसरी चीजें खरीदने बाजार जाते हैं। दरअसल मेरा मौजूदा पेशा मुझे इस सुविधा की इजाजत नहीं देता, लेकिन मुझे याद है कि जब मैं बच्चा था तो अपनी मम्मी और आंटी के साथ अक्सर बाजार जाता था। मुझे यह भी याद है कि तब मुझे कितनी बोरियत होती थी, क्योंकि मम्मी और आंटी को सब्जियां और फल छांटने में घंटों लगते थे। वे बड़ी रुचि के साथ सब्जियों और खाने-पीने की गुणवत्ता पर बहस करती थीं और खामियों की ओर इशारा करती थीं और सबसे बढि़या क्वालिटी पर जोर देती थीं। वे लगातार अलग विक्रेताओं की सब्जियों और फलों की तुलना करती रहती थीं। जब यह सब होता था उस समय मेरे दोस्त क्रिकेट खेलने के लिए मेरा इंतजार कर रहे होते थे। आज जब मैं खार मार्केट के पास से गुजरता हूं तब मुझे सब्जियां, फल और खाने-पीने की चीजें खरीद रही महिलाएं ठीक वही करती नजर आती हैं जो तब मेरी मम्मी और आंटी किया करती थीं। उन्हें देखकर मैं अपने पुराने दिनों में लौट जाता हूं जब मुझे भारी-भारी बैग उठाने पड़ते थे। आखिर हमारे घर के बड़े लोगों को कितना समय खाने-पीने की ताजा सामग्री छांटने में खपाना पड़ता है? हम सब शायद ही यह समझ पाते हों कि सब्जियां और खाने-पीने की चीजें कितनी भी ताजी क्यों न हों, उनमें कितना जहर हो सकता है?
हम किसी फल को हाथ में लेकर, सूंघकर, हल्के से दबाकर अथवा दाग-धब्बे जांचकर उसकी ताजगी का अंदाजा लगा सकते हैं, लेकिन हम कैसे जान पाएंगे कि उसके अंदर कितनी कीटनाशक दवाएं भरी हैं? हम खाना क्यों खाते हैं? स्वाभाविक है, इसलिए कि हमारे शरीर को जिंदा रहने के लिए पोषण की जरूरत होती है। पोषक खाना हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है। बीमारियों से हम तभी लड़ सकते हैं जब हम अच्छा-पोषक खाना खा रहे हों। लेकिन यदि हम अपने खाने के साथ बड़ी मात्रा में कीटनाशक भी खा रहे हों तो इसका स्पष्ट मतलब है कि पोषण के साथ-साथ हम जहर भी खा रहे हैं और इससे खाना खाने का बुनियादी मकसद ही ध्वस्त हो जाता है।
साठ के दशक में भारत कृषि के क्षेत्र में एक क्रांति का गवाह बना, जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया था। उस समय नीति-नियंताओं ने यह महसूस किया था कि बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए हमें रासायनिक खेती को अपनाने की जरूरत है। रासायनिक खेती से प्रति एकड़ उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस प्रक्रिया से परंपरागत प्राकृतिक जैविक खाद वाली खेती में कुछ हस्तक्षेप किए गए। इसके तहत रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल शुरू किया गया। कीट और कीड़े-मकोड़े हमारे कृषि उत्पादों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। लिहाजा उन्हें मारने के लिए हम जिन दवाओं का इस्तेमाल करते हैं उन्हें कीटनाशक दवाएं कहा जाता है। कीटनाशक दवाएं मूल रूप से जहर होती हैं। फसल पर जो कीटनाशक छिड़का जाता है उसका केवल एक प्रतिशत ही कीटों पर गिरता है। शेष 99 प्रतिशत फसल पर पड़ता है और भूमि में समा जाता है अथवा पानी-हवा के जरिए आसपास के कुछ क्षेत्रों तक पहुंच जाता है। इस तरह यह जहर हमारे खाने तक पहुंच जाता है। प्रकृति अपने तरीकों से चीजों को संतुलित करती है। इसलिए जो कीट हमारी फसल को खाते हैं उन्हें खाने वाले कीट भी हैं। साफ रूप में कहें तो कीट दो तरह के होते हैं। एक शाकाहारी कीट, जो फसल को खाकर जिंदा रहते हैं और दूसरे मांसाहारी कीट जो फसल खाने वाले कीटों को अपना आहार बनाते हैं। कीटनाशक दवाएं इन कीटों में कोई भेद नहीं करती हैं। यह एक जहर है जो दोनों तरह के कीटों को मारता है। लिहाजा अपने मित्र कीटों को मार डालने के बाद हमारे पास ऐसे कीट बच जाते हैं जो कीटनाशकों के हमले से खुद को किसी तरह बचा लेते हैं। इस प्रक्रिया में वे अपने अंदर ऐसी प्रतिरोधक शक्ति विकसित कर लेते हैं कि उन पर कीटनाशक दवाएं असर नहीं करतीं। इसलिए इन कीटों को मारने के लिए आपको और अधिक कीटनाशकों का छिड़काव करना होता है। यह एक खतरनाक चक्र है, जो चलता रहता है। एक ऐसा चक्र जिसमें हम अपने मित्र कीटों को लगातार मार रहे हैं और अपने खाने-पीने में अधिक से अधिक जहर भर रहे हैं।
अगर कीटनाशक हमें प्रभावित कर रहे हैं तो यह सवाल भी उठना चाहिए कि उन किसानों पर इसका क्या असर हो रहा होगा जो इसका इस्तेमाल करते हैं? सच्चाई यह है कि वे सबसे पहले और सबसे अधिक इस खतरे में घिरते हैं। कृषि में लगे लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का यह सबसे बड़ा कारण माना जाता है। इसके साथ ही किसानों के कर्ज के संकट में फंसने की भी यह एक बड़ी वजह है कि उन्हें महंगे कीटनाशक खरीदने पड़ते हैं। आंध्र प्रदेश में कीटनाशकों के बिना खेती का एक प्रयोग कुछ गांवों में 225 एकड़ भूमि में शुरू हुआ और यह प्रयोग इतना सफल रहा कि अब यह 35 लाख एकड़ में फैल गया है। सिक्किम देश का पहला राच्य है जहां पूरी तरह जैविक खाद वाली खेती को अपना लिया गया है। कुछ और राच्य भी सिक्किम की राह पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। मेरे लिए पसंद बिल्कुल साधारण है। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि हमारे पास जैविक खाद वाली खेती की ओर बढ़ने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है और जब तक पूरी तरह ऐसा नहीं होता तब तक हमें एक सरकारी व्यवस्था की जरूरत है जो सभी बाजारों में आने वाली खाद्य सामग्री की मासिक रूप से निगरानी कर सके। [हमारे खाने को जहर से बचाने के लिए कृषि को रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से मुक्त बनाने की वकालत कर रहे हैं आमिर खान]
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