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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन बहाल, हाई कोर्ट के आदेश पर लगी अंतरिम रोक

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में लगे राष्ट्रपति शासन के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर केन्द्र की तरफ से दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर 27 अप्रैल तक रोक लगा दी है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 23 Apr 2016 12:13 PM (IST)
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नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन बहाल हो गया है। सुप्रीमकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश पर 27 अप्रैल तक रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री हरीश रावत का राजकाज एक बार फिर छिन गया है लेकिन लाभ दूसरे पक्ष को भी नहीं मिला है क्योंकि केंद्र सरकार चाह कर भी इस बीच राष्ट्रपति शासन नहीं हटा सकती। 27 अप्रैल तक राष्ट्रपति शासन हटाने पर रोक के कारण इस दौरान राज्य में किसी भी तरह की सियासी हलचल या सरकार बनाने की कवायद पर फिलहाल विराम लग गया है। मामले में 27 अप्रैल को फिर सुनवाई होगी।

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न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह ने शुक्रवार को ये अंतरिम आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किये। केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन रद करने के हाईकोर्ट के आदेश को विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र की याचिका पर निर्वतमान मुख्यमंत्री हरीश रावत और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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हालांकि शुक्रवार को कोर्ट में हरीश रावत और विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल के वकील मौजूद थे और उन्होंने केंद्र की याचिका व हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक का जोरदार विरोध किया। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट को 26 अप्रैल तक फैसले की प्रति पक्षकारों को मुहैया कराने का आदेश देते हुए 27 अप्रैल को फिर सुनवाई की तिथि तय की है। साथ ही केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी का बयान आदेश में दर्ज किया जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार 27 अप्रैल तक राज्य से राष्ट्रपति शासन नहीं हटाएगी।

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गत 21 अप्रैल को हरीश रावत की याचिका स्वीकार करते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन रद कर दिया था। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन से पहले की स्थिति बरकरार कर दी थी जिससे कि हरीश रावत की सरकार बहाल हो गई थी। हालांकि हाईकोर्ट के हस्ताक्षरित फैसले की प्रति 21 अप्रैल को उपलब्ध नहीं हो पाई थी लेकिन फैसले के बाद से ही हरीश रावत सरकार ने कामकाज संभाल लिया था। इसी को आधार बनाते हुए केंद्र सरकार शुक्रवार को आनन फानन में सुप्रीमकोर्ट पहुंची और हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक मांगी।

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उधर अयोग्य ठहराए गए कांग्रेस के 9 विधायक भी सुप्रीमकोर्ट पहुंच गये हैं। विधायकों ने अलग से याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। हालांकि विधायकों की अयोग्यता का मुद्दा अभी हाईकोर्ट में लंबित है और उस पर 23 अप्रैल को सुनवाई होनी है लेकिन विधायकों का कहना है कि राष्ट्रपति शासन निरस्त करने वाले फैसले में हाईकोर्ट द्वारा उन पर की गई टिप्पणी से हाईकोर्ट की दूसरी पीठ के समक्ष लंबित उनकी अयोग्यता का मामला प्रभावित हो सकता है। उनका कहना है कि हाईकोर्ट ने उन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उन्होंने एक दल से दूसरे में जाकर संवैधानिक पाप किया है। उत्तराखंड की राजनीति का सियासी पारा शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में सुबह से चढ़ा दिखा।

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अदालत खुलते ही केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए शीघ्र सुनवाई की मांग की। जिस पर जस्टिस मिश्रा ने उन्हें रजिस्ट्रार के पास जाकर याचिका लिस्ट कराने को कहा। उन्होंने कहा कि याचिका पर सुनवाई के बारे में मुख्य न्यायाधीश ही निर्णय लेते हैं। हालांकि मामला लिस्ट हुआ और दोपहर बाद एक बार फिर सुनवाई पर आया। पौन घंटे चली सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

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सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें:

केंद्र सरकार की दलील

केंद्र सरकार की ओर से बहस करते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन निरस्त कर दिया है और पूर्व सरकार बहाल कर दी है लेकिन अभी तक हाईकोर्ट का हस्ताक्षरित आदेश उपलब्ध नहीं है जिससे कि दूसरा पक्ष (केंद्र सरकार) फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे पाए जबकि प्रतिपक्षी (हरीश रावत) ने फैसला आने के बाद ही मुख्यमंत्री पद संभाल लिया और वे कैबिनेट की बैठक बुला कर फैसले करने लगे हैं। ये कहां तक ठीक है।

रोहतगी ने सुप्रीमकोर्ट के पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि इस तरह के मामले जैसा कि ये मामला है, में अगर हाईकोर्ट के हस्ताक्षरित आदेश की प्रति उपलब्ध नहीं होती तो सुप्रीमकोर्ट को उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन निरस्त करते हुए इस बात पर गौर नहीं किया कि 18 मार्च को वित्त विधेयक पास नहीं हुआ था इसलिए सरकार अल्पमत में मानी जाएगी। हाईकोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि भाजपा के 27 और कांग्रेस के 9 विधायकों ने लिखित तौर पर वित्त विधेयक पर मतविभाजन की मांग की थी। 27 और 9 मिला कर 35 सदस्य होते हैं और इस तरह बहुमत ने मतविभाजन मांगा था लेकिन स्पीकर ने वोटिंग नहीं कराई और वित्त विधेयक पास घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री द्वारा विधायकों की खरीद फरोख्त को उजागर करने वाले स्टिंग आपरेशन पर भी ध्यान नहीं दिया।

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हरीश रावत और स्पीकर की दलील

हरीश रावत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल व मुकेश गिरि ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक के लिए दी गई केंद्र सरकार की दलीलों का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 29 अप्रैल को बहुमत साबित करने को कहा है और आज से लेकर 29 अप्रैल तक कुछ भी नहीं होने जा रहा। बल्कि हरीश रावत की ओर से वे कोर्ट को भरोसा दिलाते हैं कि इस बीच वे कोई भी अहम फैसला नहीं लेंगे। सिंघवी ने ये भी कहा कि कानून के मुताबिक खुली अदालत में फैसला सुनाए जाने के बाद से ही फैसला प्रभावी हो जाता है उसके लिए कोर्ट का हस्ताक्षरित फैसला तुरंत उपलब्ध होना जरूरी नहीं है। उधर स्पीकर की ओर से कपिल सिब्बल अंतरिम रोक का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीमकोर्ट अंतरिम आदेश में पूर्ण राहत कैसे दे सकता है।

कोर्ट ने कहा

सदन के भीतर क्या हुआ इस पर कोर्ट विचार नहीं करेगा। कोर्ट सिर्फ इस मसले पर विचार करेगा कि राष्ट्रपति का राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार व सामग्री क्या थी। ये एक गंभीर मुद्दा है और इस पर लंबी सुनवाई की जरूरत होगी। हो सकता है कि यह मसला विचार के लिए संविधानपीठ को भेजा जाए। ऐसे में आज सिर्फ कोर्ट ये देखेगा कि राष्ट्रपति शासन रद करने का हाईकोर्ट का कारण बताने वाला हस्ताक्षरित फैसला उपलब्ध होने तक क्या अंतरिम आदेश दिया जाए। विधायकों की खरीद फरोख्त के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि अगर वहां खरीद फरोख्त हुई है तो इससे लोकतंत्र को धक्का लगता है।

अस्थायी है राष्ट्रपति शासन: वेंकैया नायडू

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही उत्तराखंड में बुधवार तक राष्ट्रपति शासन हटाने पर रोक लगा रखी हो, लेकिन भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सरकार बनाकर संकट के स्थायी समाधान के पक्ष में है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने इसके साफ संकेत दिए। उनके अनुसार राष्ट्रपति शासन संवैधानिक संकट से निपटने के लिए अस्थायी समाधान है और इसे स्थायी नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि निलंबित विधानसभा को कभी भी आहूत किया जा सकता है।

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