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एससी और एसटी को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में मिलेगी छूट

अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) कर्मचारियों को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा के तय मानकों में छूट मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एससी, एसटी को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधानों पर एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है। इस फैसले में कोर्ट ने न

By Edited By: Updated: Mon, 21 Jul 2014 09:10 AM (IST)
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नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) कर्मचारियों को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा के तय मानकों में छूट मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एससी, एसटी को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधानों पर एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है। इस फैसले में कोर्ट ने न सिर्फ तय मानकों में छूट की मनाही करने वाले एस विनोद कुमार केस के फैसले में दी गई व्यवस्था को खारिज किया है, बल्कि उस फैसले के आधार पर जारी किए गए 22 जुलाई, 1997 के सरकारी आदेश को भी निरस्त कर दिया है।

हालांकि, संसद में लंबित प्रोन्नति में आरक्षण विधेयक पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जिस एम नागराजा के फैसले के आधार पर यह विधेयक लाया गया है, उसे शीर्ष न्यायालय ने बिल्कुल नहीं छेड़ा है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने 17 सालों से विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में छूट की मांग कर रहे कर्मचारियों को संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक लाभ देने का आदेश दिया है। जबकि, इस फैसले में कोर्ट ने वर्ष 2006 के एम नागराजा केस में दी गई व्यवस्था में दखल नहीं दिया है। ऐसे में एससी, एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए नागराजा मामले में तय की गईं शर्ते लागू रहेंगी। यानी आरक्षण देने से पहले पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने और उस वर्ग का सरकारी नौकरी में उचित प्रतिनिधित्व न होना साबित करना होगा। आंकड़े जुटाने का झंझट खत्म करने के लिए ही संसद में विधेयक लंबित है। राज्यसभा से विधेयक पास भी हो चुका है लेकिन अभी लोकसभा से उसका पास होना बाकी है।

आरक्षण पर अगर निगाह डाली जाए तो पिछले साठ सालों से यह संसद, कोर्ट और सरकार के बीच घूम रहा है। ये हर बार एक नये रूप में सामने आया है। वर्तमान विवाद प्रोन्नति की विभागीय परीक्षा में एसएसी एसटी कर्मचारियों को तय मानकों में छूट देने का था। मामला दो और तीन न्यायाधीशों की पीठ से होता हुआ पांच न्यायाधीशों के पास पहुंचा था। याचिकाकर्ता के वकील केएस चौहान की दलील थी कि नागरिक उड्डयन मंत्रलय में काम करने वाले उनके मुवक्किल रोहताश भानकर व अन्य ने 1996-97 में विभागीय प्रोन्नति परीक्षा दी थी। लेकिन उन्हें संविधान के अनुच्छेद 16(4)(ए) का लाभ देते हुए परीक्षा के तय मानकों में छूट नहीं दी गई, जो कि एससी, एसटी वर्ग को मिलनी चाहिए। सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए 22 जुलाई 1997 को आदेश जारी कर मानकों में छूट देने का नियम वापस ले लिया।

सरकार ने ऐसा सुप्रीम कोर्ट के एस विनोद मामले में दिए गए फैसले के आधार पर किया था। जबकि विनोद के फैसले में 1995 के 77वें संविधान संशोधन पर विचार नहीं किया गया था, जिसके द्वारा यह अनुच्छेद जोड़ा गया था। वास्तव में तय मानकों में छूट की मनाही करने वाले इंद्रा साहनी फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए ही 1995 का संविधान संशोधन किया गया था। कोर्ट ने दलीलें स्वीकार करते हुए एस विनोद का फैसला और 1997 का सरकारी आदेश खारिज कर दिया।

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