महिलाओं के 'खतने' की प्रथा पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
ये नोटिस मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनीता तिवारी की जनहित याचिका पर जारी किया है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट दाऊदी बोहरा मुसलमानों में प्रचलित महिलाओं के 'खतना' प्रचलन पर विचार करेगा। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के खतने पर रोक लगाने की मांग पर विचार का मन बनाते हुए केंद्र सरकार और चार राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, और गुजरात को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
ये नोटिस मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनीता तिवारी की जनहित याचिका पर जारी किया है। कोर्ट ने नोटिस जारी करते समय कहा कि मामला बहुत महत्वपूर्ण है। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली सुनीता तिवारी ने दाऊदी बोहरा मुसलमानों में प्रचलित महिलाओं के खतने की प्रथा को बाल अधिकारों, महिला अधिकारों और अंतरार्रष्ट्रीय संधियों के खिलाफ बताते हुए रोक लगाने की मांग की है।
याचिका मे कहा गया है कि ये प्रथा भारत के कई क्षेत्रों में रह रहे दाऊदी बोहरा मुसलमानों में प्रचलित है। इनमें पांच-छह और सात साल की छोटी बच्चियों का खतना किया जाता है जो कि बहुत ही कष्टदायक और गैरकानूनी है। छोटी बच्चियों को जब इस बात की समझ भी नहीं होती उनका खतना करा दिया जाता है। याचिका मे कहा गया है कि महिलाओँ के शरीर के कोई हिस्से में काटछांट करना कानूनन अपराध है। भले ही भारत में महिलाओं के खतने को अलग से अपराध न बनाया गया हो लेकिन आईपीसी और सामान्य कानून में ये दंडनीय अपराध है लेकिन फिर भी पुलिस इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती।
कहा गया है कि इस प्रचलन का धर्म से कोई लेना देना नहीं है न ही इसका जिक्र कुरान में है ये प्रथा एक प्रकार से सांस्कृतिक प्रचलन के तौर पर चल रही है। याचिका में कहा गया है कि अफ्रीकी क्षेत्र के 27 देशों में ये गैरकानूनी घोषित है इसके अलावा अमेरिका इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया आदि देशों मे भी ये गैरकानूनी है। अंतरराष्ट्रीय संधियों में भी इसे गैरकानूनी घोषित किया गया है। याचिका में इसके विस्तृत उदाहरण देते हुए महिलाओँ के अधिकारों की रक्षा के लिए इस पर रोक लगाने की मांग की गई है। कहा गया है कि पीडि़त लड़कियां सीधे कोर्ट नहीं आ सकतीं इसलिए उनके लिए यह जनहित याचिका दाखिल की गई है।
यह भी पढ़ें: अमेरिका में पहली बार तीन भारतीय खतना के दोषी करार