उम्र से बालिग, अक्ल से बच्चा तो क्यों न माना जाए नाबालिग
अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि दुष्कर्मी पर पोक्सो में मुकदमा चलाने का आधार क्यों न पीड़िता की मानसिक आयु बनायी जाए।
माला दीक्षित, नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या दुष्कर्म पीडि़ता की मानसिक उम्र आरोपियों पर बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) कानून में मुकदमा चलाने का आधार हो सकती है। कोर्ट ने कानून के इस अहम सवाल पर बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गुरुवार को कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई शारीरिक रूप से बालिग हो, लेकिन मानसिक रूप से नहीं तो क्यों न उसे नाबालिग माना जाए।
बेटी की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची मां प्रतिष्ठित डाक्टर है। उनकी वकील एश्वर्या भाटी ने पीडि़ता की मानसिक आयु छह वर्ष होने के आधार पर पोस्को कानून में विशेष अदालत में मुकदमा चलाए जाने की मांग करते हुए कहा कि पीडि़ता जन्म से ही मानसिक पक्षाघात (सेरेबल पाल्सी) से पीडि़त है। उसकी वास्तविक उम्र जरूर 38 वर्ष की हो गई है, लेकिन उसका मस्तिष्क विकसित नहीं हुआ है। कानून में दी गई परिभाषा को व्यापक अर्थ में देखा जाए और उसमें मानसिक उम्र को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पोक्सो सिर्फ दंडात्मक कानून नहीं है ये संरक्षण, निवारण और सुधारवादी कानून भी है।
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गुरुवार को न्यायामूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर. नरीमन की पीठ ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाले इस मामले में पक्षकारों से सोमवार तक लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा है।अगर कोर्ट ये व्यवस्था देता है कि दुष्कर्म पीडि़ता की मानसिक आयु आरोपियों पर पोक्सो कानून में मुकदमा चलाने का आधार हो सकती है तो उस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। यौन उत्पीड़न की शिकार मंदबुद्धि महिलाओं से दुराचार करने वालों पर न सिर्फ पोक्सो जैसे सख्त कानून में मुकदमा चलेगा बल्कि सुनवाई और ट्रायल के दौरान पीडि़ता के साथ भी बच्चे जैसा व्यवहार किया जाएगा जैसा कि पोक्सो कानून में कहा गया है।
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बहस के दौरान जब अभियुक्त के वकील ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। इसका असर संविदा कानून और संपत्ति हस्तांतरण कानून पर भी पड़ेगा। वकील ने कहा कि कानून की निगाह में पीडि़ता बालिग है। इस पर पीठ ने कहा कि वे यहां संविदा या संपत्ति कानून पर विचार नहीं कर रहे हैं। ये यौन उत्पीड़न का मामला है और ये गंभीर अपराध है। इससे बच्चों को संरक्षण मिलना ही चाहिए। यही पोक्सो कानून का उद्देश्य है।
कोर्ट ने कहा कि वे कानून की परिभाषा में दखल नहीं दे रहे हैं, बच्चों को संरक्षण देने के लिए सिर्फ उसका दायरा बढ़ा रहे हैं ताकि कानून का उद्देश्य पूरा हो। पीठ ने कहा कि सिर्फ शारीरिक आधार पर ही तय होता है कि कोई वयस्क हो गया है क्यों न मानसिक आधार पर भी इसे देखा जाए। पोक्सो कानून 18 साल से कम उम्र के बच्चों के संरक्षण के लिए बना है। कोर्ट ने कहा कि संसद ने कानून बना दिया है कि 18 वर्ष से कम उम्र को नाबालिग माना जाएगा, लेकिन यह कोर्ट तय करेगा कि यह शारीरिक के साथ-साथ मानसिक होगा या नहीं।