Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

चीन से सीमा समझौते पर संशय के बादल

प्रणय उपाध्याय, नई दिल्ली। सीमा पर तनाव घटाने के लिए भारत और चीन ने बीते आठ सालों में तीसरे समझौते पर दस्तखत कर उसे अमली जामा पहना दिया। हालांकि दोनों मुल्कों के बीच समझौते के बावजूद दशकों पुराना सीमा विवाद भी बरकरार हैं और सैन्य स्तरीय आशंकाओं के कांटे भी। जानकारों की नजर में चीनी आग्रह पर हुए समझौते में मीठी ब

By Edited By: Updated: Thu, 24 Oct 2013 08:51 PM (IST)
Hero Image

प्रणय उपाध्याय, नई दिल्ली। सीमा पर तनाव घटाने के लिए भारत और चीन ने बीते आठ सालों में तीसरे समझौते पर दस्तखत कर उसे अमली जामा पहना दिया। हालांकि दोनों मुल्कों के बीच समझौते के बावजूद दशकों पुराना सीमा विवाद भी बरकरार हैं और सैन्य स्तरीय आशंकाओं के कांटे भी। जानकारों की नजर में चीनी आग्रह पर हुए समझौते में मीठी बातों की आड़ में कई ऐसे पेंच हैं जो भारत के लिए बंधन बढ़ाने वाले हैं।

पढ़ें: भारत को चीन से नरमी की उम्मीद

चीन के साथ सैन्य स्तर पर संवाद और तालमेल की बारीकियों से वाकिफ जानकारों के मुताबिक यह समझौता आग के खतरे कम नहीं करता बल्कि केवल इसे बुझाने के कुछ अतिरिक्त उपाय देता है। सैन्य विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश कटोच कहते हैं कि इस करार में ऐसे कई बिंदु हैं जो भारत के अहम हितों को प्रभावित करने वाले हैं। खासकर ऐसे में जब दोनों देशों के बीच दशकों से अनसुलझी साढ़े चार हजार किमी से अधिक लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अब भी मतभेदों के बिंदु बरकरार हैं।

सूचना साझेदारी के बहाने..समझौते के अनुच्छेद-2 का हवाला देते हुए हुए कटोच कहते हैं कि इसमें भारत के लिए कई फंदे हैं। यह प्रावधान दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य अभ्यास, विमानों, निर्माण व तोड़फोड़ कायरें आदि पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की बात करता है। कटोच के अनुसार समझौते की यह शर्त ऐसे में खासी अहम है। चीन सीमा पर अपने अधिकतर सैन्य ढांचे का विस्तार कर चुका है जबकि भारत इसकी रफ्तार बढ़ाने की जुगत में है। ऐसे में अगली बार दौलत बेग ओल्डी के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड पर विमान उतारने पर भारत से सूचना देने की अपेक्षा चीन कर सकता है।

महत्वपूर्ण है कि भारत का ढांचागत निर्माण चीन के आंखों की किरकिरी बन रहा है। गत अप्रैल में दिपसांग के जिस इलाके में दोनों देशों के बीच तीन हफ्तों तक गतिरोध बना था वो दौलत बेग ओल्डी की हवाई पट्टी के नजदीक है जहां भारत नया हवाई ठिकाने बनाने की तैयारी में है। इसके अलावा लद्दाख के इलाकों में सड़क निर्माण कायरें में अड़चन डाल कर चीन अपनी बेचैनी के सबूत दे चुका है।

ढांचागत निर्माण से समझौता घातकरणनीतिक विश्लेषक और सेवा निवृत्त मेजर जनरल आरके अरोड़ा कहते हैं कि सीमा के इलाकों में चीन रेल नेटवर्क, क्लास-9 श्रेणी की सड़कों के अलावा बड़े राशन भंडार भी तैयार कर चुका है। वहीं भारत ने बीते कुछ सालों में सीमावर्ती राज्यों में ढांचागत निर्माण को रफ्तार देना शुरू किया है। लिहाजा ढांचागत निर्माण के साथ किसी तरह का समझौता भारत के सुरक्षा हितों के लिए संकट बढ़ा सकता है। वहीं अरुणाचल पर बरकरार चीनी दावे और अक्साई चिन समेत विवादित मुद्दों में से किसी का कोई समधान अभी हाथ में नहीं है।

इंडियन मिलिट्री रिव्यू के प्रमुख अरोड़ा मानते हैं कि नए सीमा समझौते में भारत केवल इस बात पर संतोष कर सकता है कि इसमें टकराव की किसी भी स्थिति को टालने के लिए कई मंच और उपाय उपलब्ध हैं। हालांकि सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार नया समझौता अप्रैल 2005 में हुए प्रोटोकॉल 2012 में बने संयुक्त तंत्र का ही समेकित रूप है। ध्यान रहे कि दोनों समझौतों के बावजूद सीमा पर चीनी अतिक्रमण और घुसपैठ की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर