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दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक: SC ने केंद्र को स्पेशल कोर्ट गठित करने को कहा

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से दागी नेताओं के चुनाव लगने पर आजीवन रोक लगाने की मांग की है।

By Monika MinalEdited By: Updated: Wed, 01 Nov 2017 09:31 PM (IST)
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दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक: SC ने केंद्र को स्पेशल कोर्ट गठित करने को कहा

माला दीक्षित, नई दिल्ली। दागी राजनेता संसद और विधानसभाओं की शोभा न बने इसके इंतजाम होते नजर आ रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण रोकने पर सुनवाई के दौरान बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि नेताओं के मुकदमों के ट्रायल के लिए विशेष अदालतें होनी चाहिए। ये विशेष अदालतें सिर्फ नेताओं के मुकदमें सुनें और उनका जल्दी निपटारा करें। कोर्ट ने विशेष अदालतें गठित करने पर छह सप्ताह में सरकार को योजना पेश करने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने चुनाव लड़ते समय नामांकन में आपराधिक मुकदमें का ब्योरा देने वाले 1581 विधायकों और सांसदों के मुकदमों का ब्योरा और स्थिति पूछी है।

चुनाव आयोग भी राजनीति की सफाई के लिए खुलकर सामने आ गया है। चुनाव आयोग ने सजायाफ्ताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक का कोर्ट में समर्थन किया है। ये आदेश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये। उपाध्याय ने सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक लगाने की मांग की है। मौजूदा कानून में सजा के बाद जेल से छूटने के छह वर्ष तक चुनाव लड़ने की अयोग्यता है।

सुनवाई के दौरान जब केन्द्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सालिसीटर जनरल एएनएस नदकरणी ने कहा कि सरकार राजनीति से अपराधीकरण दूर करने का समर्थन करती है। सरकार नेताओं के मामलों की सुनवाई और उनके जल्दी निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन का विरोध नहीं करती। हालांकि जब कोर्ट ने विशेष अदालतों के गठन के लिए ढांचागत संसाधन और खर्च की बात पूछी तो नदकरणी का कहना था कि विशेष अदालतें गठित करना राज्य के कार्यक्षेत्र में आता है।

इस दलील पर नंदकरणी को टोकते हुए पीठ ने कहा कि आप एक तरफ विशेष अदालतों के गठन और मामले के जल्दी निस्तारण का समर्थन कर रहे हैं और दूसरी तरफ विशेष अदालतें गठित करना राज्यों की जिम्मेदारी बता कर मामले से हाथ झाड़ रहे हैं। ऐसा नहीं हो सकता। पीठ ने सीधा सवाल किया कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय योजना के तहत नेताओं के मुकदमों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन क्यों नहीं करती। जैसे फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किये गए थे उसी तर्ज पर सिर्फ नेताओं के मुकदमे सुनने के लिए विशेष अदालतें गठित होनी चाहिए।

केन्द्र के विशेष अदालतें गठित करने से सारी समस्या हल हो जाएगी। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह विशेष अदालतें गठित करने के बारे में छह सप्ताह में कोर्ट के समक्ष योजना पेश करे। पीठ ने कहा कि योजना पेश होने के बाद विशेष अदालतों के गठन के लिए ढांचागत संसाधन जजों, लोक अभियोजकों व कोर्ट स्टाफ आदि की नियुक्ति (केन्द्र सरकार के पास इस बावत उपलब्ध धन के संबंध में) जैसे मसलों पर अगर जरूरत पड़ी तो संबंधित राज्यों के प्रतिनिधियों से पूछा जाएगा। इस मामले में 13 दिसंबर को फिर सुनवाई होगी।

मांगा नेताओं के मुकदमों का ब्योरा

कोर्ट ने केन्द्र सरकार से कहा है कि वह 2014 में नामांकन भरते समय आपराधिक मुकदमा लंबित होने की घोषणा करने वाले 1581 विधायकों और सांसदों के मुकदमों की स्थिति बताए। सरकार बताये कि इन 1581 लोगों में से कितने के मुकदमें सुप्रीम कोर्ट के 10 मार्च 2014 के आदेश के मुताबिक एक वर्ष के भीतर निपटाए गए। इसके अलावा कितने मामलों मे सजा हुई और कितने मामले बरी हुए। इतना ही नहीं सरकार यह भी बताएगी कि 2014 से 2017 के बीच कितने वर्तमान और पूर्व विधायकों व सांसदों के खिलाफ नये आपराधिक मामले दर्ज हुए। उन मुकदमों के निपटारे का ब्योरा भी देगी। 

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