कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) की निकासी पर कर लगाने के प्रस्ताव को लेकर गर्म हुई राजनीति के बीच ने इसे वापस लेने का मन बना लिया है।
By kishor joshiEdited By: Updated: Sat, 05 Mar 2016 11:47 PM (IST)
आशुतोष झा, नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) की निकासी पर कर लगाने के प्रस्ताव को लेकर गर्म हुई राजनीति के बीच ने इसे वापस लेने का मन बना लिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तमंत्री अरुण जेटली से 'भावनात्मक अपील' की है कि मध्यमवर्ग से जुड़े इस मुद्दे पर दोबारा विचार करें और कुछ ऐसा कदम उठाएं जो उनकी जरूरतों को भी पूरा करे और भविष्य सुरक्षित रखने का रास्ता भी दिखाए। वित्त विधेयक 2016 पारित होने से पहले सरकार ईपीएफ पर टैक्स के प्रस्ताव को वापस ले सकती है। हालांकि उससे पहले यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि वह प्रस्ताव खजाना भरने के लिए बल्कि इसलिए किया गया था ताकि कर्मचारियों का बटुआ पूरी तरह खाली न रहे।
पढ़ें: ईपीएफ पर टैक्स का विरोध करेंगी मजदूर यूनियनें प्रधानमंत्री की अपील अहम है। सूत्रों के अनुसार वह इससे चिंतित नहीं हैं कि राजनीतिक वर्ग इसे मुद्दा बना रहा है। परेशानी का कारण यह है कि इससे मध्यमवर्ग के बीच बेवजह आशंका पनप सकती है। विश्वस्त सूत्र के अनुसार प्रधानमंत्री ने वित्तमंत्री से अपनी भावना का इजहार कर दिया है। इसके बाद तय माना जा रहा है कि प्रस्ताव को सरकार वापस ले लेगी। हालांकि सरकार के पास कुछ अन्य विकल्प भी है जिसपर चर्चा हो सकती है। लेकिन वर्तमान स्थिति में सबसे ज्यादा उचित इसे वापस लेना ही माना जा रहा है। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव की राजनीतिक मजबूरियां तो अहम हैं ही, सरकार कर्मचारी भविष्य निधि की चिंता में अपना भविष्य दांव पर लगाना भी नहीं चाहती है। असम में पार्टी सत्ता की रेस में है तो दूसरे राज्यों में अपना आंकड़ा दुरुस्त करने की चाह में। कांग्रेस समेत दूसरे दलों ने ईपीएफ को बड़ा मुद्दा बना लिया है। लिहाजा भाजपा के लिए भी यही राजनीतिक बुद्धिमानी है कि वह खुद ही इसे वापस लेने का फैसला करे।
पढ़ें: ईपीएफ पर कर लगाने के विरोध में सड़क पर उतरेगी कांग्रेस गौरतलब है कि अधिकारी पहले दिन ही यह स्पष्ट नहीं कर पाए थे कि 60 फीसद ईपीएफ की निकासी पर टैक्स का प्रस्ताव वस्तुृत: कर्मचारियों के हित में था। यह इसलिए था ताकि लोग पूरा पैसा निकालने से बचें और इसी क्रम में भविष्य के लिए कुछ रकम बाकी रहे। लेकिन यह विवाद जिस तरह बढ़ा और अब भाजपा नेताओं के भी दम फूलने लगे हैं उसके बाद सरकार इसे वापस लेने का बना चुकी है। पार्टी के एक नेता के अनुसार मध्यमवर्ग ही भाजपा का सबसे बड़ा वोटर है। इसके अलावा सरकार यह भी नहीं चाहेगी कि भू्मि अधिग्रहण विधेयक जैसा कोई मुद्दा फिर से खड़ा हो जाए। गौरतलब है कि उस विधेयक में भी किसानों के हित में कुछ फैसले लिए गए थे लेकिन राजनीतिक विवाद इतना भारी था और खुद अपनों के बीच भी सरकार इस तरह घिरी थी कि उससे नुकसान की आशंका छाने लगी थी।
इस पूरे प्रकरण में हालांकि सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया जाएगा कि 'खुशहाल बचपन, समृद्ध यौवन और सुरक्षित बुढ़ापा' की दूरदृष्टि के साथ यह कदम उठाया जा रहा है। एक तरह से यह सामाजिक सुरक्षा का यह अगला चरण है।
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