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जाने क्यों मानसून करा रहा इंतजार, अभी आसमान से बरसती रहेगी आग

भारत में कुल 29 राज्य एवं 7 केन्द्र शासित क्षेत्र हैं। इनमें मौसम विभाग के यंत्रों द्वारा तापमान का प्रत्येक भाग में अध्ययन किया गया।

By Gunateet OjhaEdited By: Updated: Mon, 06 Jun 2016 05:22 PM (IST)

नई दिल्ली। इस बार भारत में मानसून आने में देरी के मुख्य कारक तापमान, हवा, दबाव और बर्फबारी को माना जा रहा है। भारत में कुल 29 राज्य एवं 7 केन्द्र शासित क्षेत्र हैं। इनमें मौसम विभाग के यंत्रों द्वारा तापमान का प्रत्येक भाग में अध्ययन किया गया। मार्च में उत्तर भारत के और पूर्वी समुद्री तट के मई में मध्य भारत के और जनवरी से अप्रैल तक उत्तरी गोलार्ध की सतह के अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान नोट किए गए। बता दें कि इस बार तापमान सामान्य से ज्यादा मापा गया है।

तापमान के अलावा हवा का भी अध्ययन हुआ। वातावरण में छह किलोमीटर और 20 किलोमीटर ऊपर बहने वाली हवा के रूख को अलग-अलग महीनों में नोट किया गया। हवा का भी रुख सामान्य से कम ही मापा गया। इसके साथ ही मानसून की भविष्यवाणी में वायुमंडलीय दबाव की भी अहम भूमिका रही। वसंत ऋतु में दक्षिणी भाग का दबाव और समुद्री सतह का दबाव जबकि जनवरी से मई तक हिन्द महासागर में विषुवतीय दबाव को मापा गया।

बर्फबारी भी इसमें अहम योगदान निभाती है। लिहाजा जनवरी से मार्च तक हिमालय के खास भागों में बर्फ का स्तर, क्षेत्र और दिसम्बर में यूरेशियन भाग में बर्फबारी की भी अहम भूमिका रही। इस बार देश भर में फैले सूखे से पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी में काफी असर पड़ा। इसलिए बर्फबारी मानसून के देरी में एक मह्तवपूर्ण कारक बनी। सारे पैरामीटरों के अध्ययन उपग्रह से आँकड़े के अनुसार होते हैं। इन कारणों से इस बार मानसून के आने में विलंब हुआ। वैसे भारतीय मौसम विभाग ने चालू सीजन में दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक रहने का पूर्वानुमान लगाया है।

मौसम विभाग के आकड़े

मौसम विभाग के मुताबिक मानसून आमतौर पर 1 जून से शुरू होकर सितंबर तक रहता है। लेकिन इस साल ये 7 जून तक आएगा। सरकार के अनुसार मानसून के एकबार आने के बाद 89 सेंटीमीटर (35 इंच) के 50 साल के औसत की कुल 106 प्रतिशत वर्षा दर्ज की जाएगी। स्काईमेट मौसम सर्विसेज के मुताबिक मानसून अगले कुछ दिन में दस्तक देगा और इसका औसतन आकड़ा 109 प्रतिशत हो सकता है, जो कि 1994 के बाद से सबसे अधिक बारिश का आकड़ा होगा। पिछले साल मानसून वर्षा मौसम 14 प्रतिशत थी, जो कि 2014 की 12 फीसदी से भी कम आंकी गई थी। 2015 में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में सूखा घोषित किया गया था।

जानिए कैसे आता है मानसून
भारत व एशिया के तमाम अन्य देश ग्रीष्मकाल में गरम होने लगते हैं। इसके कारण उसके ऊपर की हवा गरम होकर उठने और बाहर की ओर बहने लगती है। पीछे रह जाता है तो बस कम वायुदाब वाला एक विशाल प्रदेश। यह प्रदेश अधिक वायुदाब वाले प्रदेशों से वायु को आकर्षित करता है। अधिक वायुदाब वाला एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत को घेरने वाले महासागरों के ऊपर मौजूद रहता है। क्योंकि सागर, स्थल भाग इतना गरम नहीं होता है और इसीलिये उसके ऊपर वायु का घनत्त्व अधिक रहता है। उच्च वायुदाब वाले सागर से हवा मानसून पवनों के रूप में जमीन की ओर बह चलती है। दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत के ठेठ दक्षिणी भाग में जून 1 को पहुँचता है। साधारणतः मानसून केरल के तटों पर जून महीने के प्रथम पाँच दिनों में प्रकट होता है। यहाँ से वह उत्तर की ओर बढ़ता है और भारत के अधिकांश भागों पर जून के अन्त तक पूरी तरह छा जाता है। अरब सागर से आने वाली पवन उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक मुम्बई पहुँच जाती है। इस प्रकार तिरूवनंतपुरम से मुम्बई तक का सफर वे दस दिन में बड़ी तेजी से पूरा करती हैं। इस बीच बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाली हवा की तेजी भी
कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं होती। यह पवन उत्तर की ओर बढ़कर बंगाल की खाड़ी के मध्य भाग से दाखिल होती है और बड़ी तेजी से जून के पहले हफ्ते तक असम में फैल जाती है। हिमालय की ओर से दक्षिणी छोर को प्राप्त करके यह मानसूनी धारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इस कारण उसकी आगे की प्रगति म्यांमार की ओर न होकर गंगा के मैदानों की ओर होती है, जिसमे उत्तर भारत भी शामिल है। गौरतलब है कि इसबार मौसम
विभाग के मुताबिक अबतक जून में जो बरसात हुई है वो बहुत कम है। मौसम विभाग के मुताबिक पहली जून से लेकर 5 जून तक देशभर में औसतन के मुकाबले 32 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। इस दौरान देशभर में औसतन 10.5 मिलीमीटर बारिश हुई। जबकि सामान्य तौर पर 15.6 मिलिमीटर बरसात होती है। पहली जून से लेकर 5 जून तक उत्तर पश्चिम भारत में सामान्य के मुकाबले 80 फीसदी कम और पूर्वोत्तर भारत में 70
फीसदी कम बरसात हुई। सिर्फ उत्तर भारत ऐसा क्षेत्र रहा, जहां पहली से 5 जून तक सामान्य से अधिक 28.6 मिलीमीटर बरसात दर्ज की गई।

बरसात का कृषि पर असर
तीन दशकों से बैक-टू-बैक मानसून की कमी की वजह से भारत को इस बार फसल उत्पादन को बढ़ावा देने, खाद्य पदार्थों की कीमतों को कम रखने के लिए सामान्य से अधिक बारिश का भरोसा है। मानसून का पानी भारत की फसलों का लगभग आधा है और कृषि खाते अर्थव्यवस्था के लगभग 18 प्रतिशत हैं। 800 मिलियन से अधिक लोग गांवों में रहते हैं और आज भी खेती पर निर्भर हैं। चावल, मक्का, गन्ना और तिलहन सहित फसलों के उत्पादन में पिछले साल गिरावट दर्ज की गई। जिससे एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में भोजन की लागत बढ़ रही है। 1 अक्टूबर में शुरू हुए साल में शायद सूखे की स्थिति के कारण चीनी उत्पादन में 23.5 मिलियन टन की गिरावट दर्ज की जाएगी, जो कि सात साल की सबसे बड़ी गिरावट होगी। बता दें कि प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की 2022 तक किसान आय को दोगुना करने वाली मिशन के तहत उच्च कृषि उत्पादन राज्य चुनाव से पहले राजनीतिक वरदान साबति हो सकती है।

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