खुद के बोए बबूल से छलनी हो रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान को पेशावर हमले में मिले घाव आतंकवाद के उस बबूल की सौगात हैं. जिसे उसने अपनी सुविधा से इस्तेमाल के लिए बोया व सींचा। पूर्वी मोर्चे पर वह लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों और हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों को प्रश्रय दे रहा है जबकि पश्चिमी सरहद
By Sachin kEdited By: Updated: Wed, 17 Dec 2014 07:59 AM (IST)
प्रणय उपाध्याय, नई दिल्ली। पाकिस्तान को पेशावर हमले में मिले घाव आतंकवाद के उस बबूल की सौगात हैं. जिसे उसने अपनी सुविधा से इस्तेमाल के लिए बोया व सींचा। पूर्वी मोर्चे पर वह लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों और हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों को प्रश्रय दे रहा है जबकि पश्चिमी सरहद पर तालिबान के खिलाफ सैन्य अभियान चला रहा है। दोहरी नीति के इसी खेल में अब आतंकवाद का भस्मासुर पाकिस्तान के आगे ही वजूद का संकट खड़ा कर रहा है।
पाकिस्तान के हालात व रणनीतिक मामलों पर नजर रखने वाले जानकार इसके बावजूद पाक फौज की नीतियों में किसी बड़े बदलाव को लेकर नाउम्मीद नजर आते हैं। साथ ही, जोर देते हैं कि पाकिस्तान के लिए जरूरी है कि वह जिहादियों को भारत-पाक रिश्तों की नजर से देखना बंद करे। मिलिट्री इंटेलीजेंस के पूर्व महानिदेशक और रणनीतिक विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) आरके साहनी कहते हैं कि पाकिस्तानी सेना ने ही आतंकियों को अपने रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल की नीति बनाई। उसमें भी जो जब तक काम का है उसे पूरा संरक्षण और जो काम का नहीं रहा उसका सफाया। इसी का नमूना है कि पाक सेना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे आतंकी गुटों के खिलाफ दक्षिण वजीरिस्तान के मोर्चे पर तो सफाए का अभियान चलाए हुए है, वहीं भारत के खिलाफ आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले हाफिज सईद जैसे सरगनाओं की रैलियों को सुरक्षा दे रही है। यह दोहरी नीति अब पाकिस्तान को ही घाव दे रही है।
अमेरिकी दबाव में पाक सेना बीते कुछ समय से अफगानिस्तान सीमा से लगे इलाकों में तालिबान गुटों के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़े हुए है। इन इलाकों में अमेरिका भी ड्रोन हमले कर रहा है। इसको लेकर न केवल काफी असंतोष पनप रहा है बल्कि आतंकी गुट इसी को भुनाते हुए स्थानीय समर्थन भी जुटा रहे हैं। ऐसे में आतंकी गुट दुनिया भर से रसद और समर्थन जुटाने के लिए बड़ी वारदातों को भी अंजाम दे रहे हैं। पाकिस्तान मामलों के जानकार सुशांत सरीन की राय में पेशावर हमला चाहे जितना भयावह हो, इससे पाकिस्तानी फौज की आतंकवाद को लेकर नीतियों में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद धुंधली है। सरीन कहते हैं, 2009 में रावलपिंडी के परेड लेन में मस्जिद पर हुए हमले में भी कई फौजी और उनके बच्चे व परिजन मारे गए थे। उसके बावजूद पाक सेना उसी ढर्रे पर कायम है, जहां आतंकियों के लिए उसके दोहरे मापदंड हैं।