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लोकपाल की लंबी कवायद

44 साल तक संसद में तमाम उतार-चढ़ाव देखने के बाद आखिरकार संसद के दोनों सदनों से लोकपाल बिल पास हो गया। अब कानून बनने की राह में यह केवल राष्ट्रपति की मुहर लगने से दूर है। इस लंबी अवधि में इससे पहले आठ बार इस बिल को सदन में पेश किया गया लेकिन सियासी अवरोधों के चलते मंजिल तक नहीं पहुंच सका। पहला विचार * प्रधानमंत्री पंडित

By Edited By: Updated: Thu, 19 Dec 2013 09:44 AM (IST)
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44 साल तक संसद में तमाम उतार-चढ़ाव देखने के बाद आखिरकार संसद के दोनों सदनों से लोकपाल बिल पास हो गया। अब कानून बनने की राह में यह केवल राष्ट्रपति की मुहर लगने से दूर है। इस लंबी अवधि में इससे पहले आठ बार इस बिल को सदन में पेश किया गया लेकिन सियासी अवरोधों के चलते मंजिल तक नहीं पहुंच सका।

पहला विचार

* प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के समय में तीन अप्रैल, 1963 को स्कैंडिनेवियाई देशों नार्वे, स्वीडन में गठित की गई लोकपाल संस्था की तर्ज पर देश में ऐसी ही संस्था स्थापित करने के लिए एलएम सिंघवी ने बहस शुरू की।

* भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने और इसकी परिधि में प्रधानमंत्री को भी शामिल कर लोकपाल के गठन का प्रस्ताव 1964 और 1965 में सदन में लाया गया।

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पहला प्रशासनिक सुधार आयोग

संसद सदस्यों समेत लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए 1966 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गठित पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त गठित करने की सिफारिश की।

पहली पेशकश

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में नौ मई, 1968 को लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त बिल पेश कर पास किया गया। बाद में सदन के भंग होने की वजह से बिल समाप्त हो गया। उसमें भी प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाने का प्रावधान था।

बदलते सुर

* 1971 में प्रधानमंत्री को दायरे से बाहर कर इस बिल को पेश किया गया लेकिन सिरे नहीं चढ़ सका।

* प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल में 28 जुलाई, 1977 को पेश लोकपाल बिल में आइपीसी और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट (पीओसीए) के आधार पर भ्रष्टाचार को परिभाषित किया गया। प्रधानमंत्री को दायरे से बाहर रखने का कोई विशेष उपबंध नहीं किया गया। यह बिल भी खत्म हो गया।

* राजीव गांधी के कार्यकाल में 26 अगस्त, 1985 को एक बार फिर लोकपाल पेश किया गया। इसमें भ्रष्टाचार की परिभाषा आइपीसी और पीओसीए के तहत तय की गई और उसमें दुराचरण और कुशासन को शामिल नहीं किया गया। प्रधानमंत्री दायरे में। बिल को बाद में वापस ले लिया गया।

* 29 दिसंबर, 1989 को वीपी सिंह के दौर में वर्तमान और निवर्तमान प्रधानमंत्रियों को दायरे में लाते हुए बिल को पेश किया गया लेकिन बाद में बिल समाप्त हो गया।

* इसके बाद एक बार 1996 में प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के समय में और 1998 एवं 2001 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पेश किए गए लोकपाल बिल भी सिरे भी नहीं चढ़ सके। उनमें प्रधानमंत्री को शामिल किया गया लेकिन नौकरशाहों को बाहर रखा गया था।

वेंकटचलैया आयोग

* 2002 में जस्टिस एमएन वेंकटचलैया के नेतृत्व वाले संविधान समीक्षा आयोग ने लोकपाल और लोकायुक्त की जरूरत पर बल दिया।

* संप्रग प्रथम के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में लोकपाल बिल को प्रभावी बनाने का वादा किया गया था।

दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग

* 2005 में वीरप्पा मोइली की अगुआई वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने बिना देर किए लोकपाल को स्थापित करने पर बल दिया।

* जनवरी, 2011 में प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने भ्रष्टाचार को रोकने संबंधी कई प्रयासों की घोषणा की। उसमें लोकपाल बिल का भी प्रावधान था।

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