सिस्टम में बदलाव की जरूरत
दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान जन जागरण के तहत रविवार को दिल्ली के आइटीओ कार्यालय में भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था पर उसका असर और निचले स्तर का भ्रष्टाचार विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस विषय पर विशेषज्ञों ने अपनी बेबाक राय व्यक्त की। वक्ताओं का कहना था कि मौजूदा परिदृश्य बेशक अच्छा नहीं है, लेकिन उम्मीद खत्म नहीं हुई ह
By Edited By: Updated: Mon, 24 Mar 2014 03:55 PM (IST)
दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान जन जागरण के तहत रविवार को दिल्ली के आइटीओ कार्यालय में भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था पर उसका असर और निचले स्तर का भ्रष्टाचार विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस विषय पर विशेषज्ञों ने अपनी बेबाक राय व्यक्त की। वक्ताओं का कहना था कि मौजूदा परिदृश्य बेशक अच्छा नहीं है, लेकिन उम्मीद खत्म नहीं हुई है। नई पीढ़ी को बेहतर नागरिक के तौर विकसित किए जाने की जरूरत है।
जगदीश ममगाईं भाजपा नेता व दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष - सांसदों-विधायकों की अपेक्षा पार्षदों के स्तर पर भ्रष्टाचार ज्यादा है। उनकी ज्यादा बदनामी है।
- इसकी एक बड़ी वजह यह है कि उन्हें कोई वेतन नहीं दिया जाता जबकि खर्चे अधिक होते हैं। - चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा के चुनावी खर्चे को बढ़ाना गलत है। इससे गलत संदेश जाएगा।
- 1980 के चुनाव हुए थे, कार्यकर्ता चाय भी नहीं मांगते थे। अब महंगी थाली की मांग होती है। - आज भी सिस्टम में कई ऐसे नेता हैं जो बेवजह पैसे नहीं खर्च करते और चुनाव जीतते हैं। -भ्रष्टाचार हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। काले धन की समस्या बढ़ी है। -ईमानदार अफसरों को भ्रष्ट सिस्टम काम ही नहीं करने देता। उन्हें तंग किया जाता है। - न्याय मिलने में विलंब होने से भी भ्रष्टाचारी जल्दी बाहर नहीं होते सिस्टम में बने रहते हैं। -शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। बच्चों को जिंदगी के लिए जरूरी शिक्षा देनी चाहिए। - युवा पीढ़ी से निश्चित रूप से बदलाव की उम्मीद है। उन्हें पूरा समर्थन मिलना चाहिए। एसए नकवी, संयोजक सिटिजन फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्त्रेसी -जब भी भ्रष्टाचार होता है, ध्यान रिश्वतखोरी पर चला जाता है। यह मामला कहीं ज्यादा बड़ा है। -ईमानदार लोगों को पूरा समर्थन मिलना चाहिए। हमारे सिस्टम में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है। -राजनीतिज्ञों का ईमानदार होना पड़ेगा। पहले नेता दागियों को पास फटकने तक नहीं देते थे। -चुनाव में पहले घर-घर पर्चियां जाती थीं और लोग वोट देना अपना धर्म समझते थे। - राजनीति का व्यापारीकरण हो जाने से राजनीतिज्ञ और जनता का रिश्ता बिगड़ा है। - हम दुनिया के बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन संख्यात्मक दृष्टि से। बेहतरी के लिए बहुत काम बाकी है। - सूचना तकनीक से सिस्टम में थोड़ी तब्दीली जरूर ला सकते हैं लेकिन यह अकेले नाकाफी है। - अगली पीढ़ी को मूल्यों की समझ देनी है। उन्हें बेहतर नागरिक के तौर पर विकसित करना है। - युवाओं में बहुत क्षमता है। जरूरत इस बात की है कि हम उसे एक सकारात्मक दिशा दें। - राजनीति से अर्थव्यस्था सीधे जुड़ी है। ऐसे में हमें एक पारदर्शी व्यवस्था कायम करना जरूरी है। दीप माथुर पूर्व निदेशक, दिल्ली नगर निगम - भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। इसके बावजूद भ्रष्ट लोग बार-बार चुनाव जीतकर संसद में पहुंच रहे हैं। - दलों की चंदा उगाही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है। कोई भी इसे पारदर्शी बनाने को तैयार नहीं। - राजनीतिक दलों द्वारा ली जाने वाली राशि को लेकर एक तर्कसंगर्त प्रणाली बनानी जरूरी है। - टिकटों के बंटवारे में उम्मीदवारों की हैसियत देखी जाती है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है। - नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है। राजनीति में शुचिता की बात पर अमल नहीं होता। - पहले हादसे पर भी मंत्री इस्तीफा दे दिया करते थे। अब भ्रष्टाचार के मामलों में प्रमाण मांगा जाता है। - सबसे बड़ी जरूर व्यवस्था में सुधार की है। जब तक यह नहीं होता, भ्रष्टाचार पर अंकुश संभव नहीं है। - भ्रष्टाचार पर काबू पाने में सूचना तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कारगर साबित हो सकता है। - बच्चों को भी मूल्यों वाली शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उनके जीवन की बेहतर शुरुआत हो। - हमारे लोकतंत्र की जड़ें लगातार कमजोर हुई हैं। यह वक्त है जबकि हमें संभलने की जरूरत है।