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दिल्‍ली के चुनावी दंगल में जीत बनी नाक का सवाल

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद अब दिल्‍ली का सियासी पारा लगातार चढ़ता रहा है। चुनाव प्रचार खत्‍म होने की उल्‍टी गिनती भी शुरू हो चुकी है। इसके खत्‍म होने से पहले सभी पार्टियां ज्‍यादा से ज्‍यादा मतदाताओं को अपने हक में कर लेने को उतावली दिखाई दे

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 22 Jan 2015 04:37 PM (IST)
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नई दिल्ली(कमल कान्त वर्मा)। दिल्ली विधानसभा चुनाव का एलान होने के बाद अब दिल्ली का सियासी पारा लगातार चढ़ता रहा है। चुनाव प्रचार खत्म होने की उल्टी गिनती भी शुरू हो चुकी है। इसके खत्म होने से पहले सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को अपने हक में कर लेने को उतावली दिखाई दे रही है। आप-कांग्रेस और भाजपा के लिए दिल्ली के चुनावी दंगल को जीतना नाक का सवाल बनता जा रहा है। जहां भाजपा पिछले साल के अंत तक दिल्ली पर राज करती दिखाई दे रही थी, वहीं अब स्थिति काफी हद तक बदल गई है।

जीत की राह नहीं आसान

दिल्ली के इस सियासी रण में भाजपा की राह उतनी आसान नहीं है, जितनी पहले थी। वहीं कांग्रेस अब भी इस रण की तीसरी पार्टी ही बनी हुई है। कहने का अर्थ यह है कि मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच ही है। दिल्ली की सत्ता पाने की उम्मीद कांग्रेस को उस हद तक है भी नहीं, यही वजह है कि उसके बड़े नेता चुनाव प्रचार से अभी तक कन्नी काटते दिखाई दे रहे हैं। यह अलग बात है कि प्रचार के आखिरी दौर में भले ही पार्टी का कोई बड़ा नेता सामने आ जाए, फिलहाल इसकी उम्मीद अभी कम ही दिखाई दे रही है ।

मोदी-शाह के लिए चुनौती बना दिल्ली का चुनावी दंगल

लोकसभा चुनाव के दौरान जो नरेंद्र मोदी की तूती चारों ओर बोल रही थी उसमें अब कुछ गिरावट आई है। यही वजह है कि दिल्ली में उसकी राह आसान नहीं दिखाई दे रही है। लोकसभा चुनाव के बाद चार विधानसभा चुनावों में भाजपा कहीं पहले तो कहीं दूसरे स्थान पर रही। झारखंड और हरियाणा में जहां भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तो महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर वह सामने आई। जम्मू कश्मीर में वह दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन सरकार नहीं बना सकी। इन सभी चुनावों में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति बखूबी काम की। लेकिन दिल्ली के चुनाव में उनकी रणनीति की सही परीक्षा होने वाली है। यह उनके लिए तो कठिन है ही बल्कि कहीं न कहीं यह मोदी की छवि के लिए भी अहम होगी।

अंतर्कलह से अछूती नहीं कोई पार्टी

दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी में चल रही अंतर्कलह किसी से छिपी नहीं है। हालांकि इसमें भाजपा, आप और कांग्रेस से अछूती नहीं है। बाहरी लोगों को टिकट देना और अपनों को किनारे करने का मुद़दा हर पार्टी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। भाजपा के पार्टी अध्यक्ष ने एेसे नेताओं पर नकेल कसनी शुरू भी कर दी है। उन्होंने साफतौर पर कह दिया है कि वह इस तरह की उदंडता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। लेकिन यह उदंडता फिर भी जारी है।

अपने ही कर रहे विरोध

वहीं आप और कांग्रेस का भी कमोबेश यही हाल है। कांग्रेस में अरविंदर सिंह लवली और हारुन यूसुफ दोनों ही इस चुनाव में हाशिये पर पहुंच गए हैं। यही वजह है कि लवली ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। उन्होंने इसके लिए अपनी सफाई तो जरूर दी है। लेकिन अंदरखाने पार्टी के अंदर जोरशोर से लड़ाई जारी है। माकन को चुनाव की कमान सौंपने के बाद वह अकेले ही इसके प्रचार में उतरे दिखाई दे रहे हैं। अाम आदमी पार्टी ने भी नामांकन के अंतिम दिन अपने दो उम्मीदवारों के नामों में बदलाव किया तो पार्टी पर भी पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लग गए। हालांकि इस तरह के आरोप पार्टी पर पहले भी लगते रहे हैं।

भाजपा-कांग्रेस के आयातित सीएम प्रत्याशी

आप को छोड़कर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अपने सीएम प्रत्याशियों को अायात किया है। माकन के आने से पहले लवली अौर हारुन यूसुफ दोनों ही चुनाव को लेकर तैयारी में थे, लेकिन उनका नाम आगे नहीं लाया गया। वहीं भाजपा में दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष भी इसी तरह की तैयारी में दिखाई दे रहे थे, लेकिन उनका नाम भी सामने नहीं लाया गया और किरण बेदी का नाम अचानक से आया और सभी से आगे निकल भी गया। इससे कई कार्यकर्ता और नेता हताश हुए हैं।

केजरीवाल के लिए मुसीबत बने अपने

कभी केजरीवाल की साथी रहीं भाजपा की सीएम प्रत्याशी किरण बेदी ने राजनीति में कदम रखते ही उनपर हमले तेज कर दिए हैं। केजरीवाल पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाने वाली बेदी कभी अन्ना के आंदोलन में उनकी तारीफ करती नहीं थकती थीं, अब वही केजरीवाल का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रही हैं। वहीं आप से भाजपा में शामिल हुए बिन्नी, धीर और शाजिया भी आप के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। बिन्नी और शाजिया ने अाप के अंदर केजरीवाल द्वारा तानाशाही रवैया अपनाने और पैसे लेकर टिकट देने का भी आरोप लगाया है।

जादुई आंकड़ा पाना बड़ी चुनौती

पिछले वर्ष तक दिल्ली भाजपा की होती दिखाई दे रही थी, लेकिन अब आप उसको कड़ी टक्कर देती दिखाई दे रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने जिस तर्ज पर लोगों के बीच जगह बनाई थी उसको वह दोबारा पाती हुई दिखाई दे रही है। ऐसे में किरण बेदी और अमित शाह दोनों के लिए पार्टी को बहुमत के बराबर सीटें दिलवा पाना कड़ी चुनौती है।

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