एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास है मसर्रत की रिहाई
वादी में 2010 के हिंसक प्रदर्शनों के सूत्रधार रहे मसर्रत आलम की रिहाई किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह अलगाववादी खेमे में या कश्मीरियों में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के साथ बातचीत का माहौल तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद
श्रीनगर [नवीन नवाज]। वादी में 2010 के हिंसक प्रदर्शनों के सूत्रधार रहे मसर्रत आलम की रिहाई किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह अलगाववादी खेमे में या कश्मीरियों में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के साथ बातचीत का माहौल तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद का पैंतरा है। अगर सिर्फ अदालत के आदेश पर यह रिहाई हो रही होती तो राज्य पुलिस मुस्लिम कांफ्रेंस के चेयरमैन आलम को अदालत के बाहर दोबारा यह कहकर हिरासत में न लेती कि कई थानों में दर्ज मामलों में वह वांछित है और उसका बाहर रहना वादी में विधि व्यवस्था का संकट है।
वर्ष 1971 में श्रीनगर शहर के जैनदार मुहल्ले में पैदा हुए आलम की रिहाई पूरी तरह सियासी है। इसकी पुष्टि राज्य पुलिस महानिदेशक के उस बयान से होती है, जिसमें वह कहते हैं कि गत चार वर्षो से जेल में बंद हुर्रियत नेता की रिहाई का आदेश राज्य सरकार से आया है। संबंधित सूत्रों ने बताया कि आलम की रिहाई से मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास किया है। पहला भाजपा के साथ गठजोड़ के बाद कश्मीर में आलोचना झेल रहे मुफ्ती मुहम्मद सईद अपने लिए कश्मीरियों और अलगाववादियों के बीच सहानुभूति पैदा करते हुए यह कह सकें कि मैने अपने एजेंडे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया है। इसके साथ ही उन्होंने कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के साथ भी तालमेल बैठाने का प्रयास किया।