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मामूली चोरियां करने वाला टूंडा बन गया आतंकी

नितिन दीक्षित, हापुड़। पिलखुवा शहर में मामूली चोरियों से गुनाह की दुनिया में कदम रखने वाला एक किशोर दुर्दात आतंकी बन जाएगा, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। इंटरपोल और देश भर की पुलिस और तमाम गुप्तचर एजेंसियों की नाक में दम करने करने वाला पिलखुवा निवासी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा के खिलाफ वर्ष 1

By Edited By: Updated: Sat, 17 Aug 2013 09:56 PM (IST)
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नितिन दीक्षित, हापुड़। पिलखुवा शहर में मामूली चोरियों से गुनाह की दुनिया में कदम रखने वाला एक किशोर दुर्दात आतंकी बन जाएगा, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। इंटरपोल और देश भर की पुलिस और तमाम गुप्तचर एजेंसियों की नाक में दम करने करने वाला पिलखुवा निवासी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा के खिलाफ वर्ष 1954 में पिलखुवा कोतवाली में पहला चोरी का मुकदमा दर्ज हुआ। उस समय उसकी उम्र महज 14 साल रही होगी।

अपराध की दुनिया में इस छोटी सी शुरुआत के बाद टुंडा मोस्ट वांटेड दाऊद और हाफिज सईद के संपर्क तक पहुंच गया। 1994 में पहली बार टुंडा की हकीकत सामने आई, तो सारे राज बेपर्दा हो गए और टुंडा की शर्मशार करतूतों ने उसे भारत के टॉप 20 आतंकियों की लिस्ट में लाकर खड़ा कर दिया। फर्नीचर का कार्य करने वाले पिलखुवा के मोहल्ला अशोक नगर निवासी अब्दुल्ला के छह पुत्रों में सबसे बड़ा बेटा अब्दुल करीम पिता के साथ उसके कारोबार में हाथ तो बंटाता था लेकिन महज कक्षा छह तक पढ़ा अब्दुल करीम शुरू से ही खुराफाती भी रहा।

किशोरावस्था से ही छोटी मोटी चोरी करने की आदत ने उसे अपराध की दुनिया से रूबरू करा दिया। मोहल्ले के ही एक मकान में चोरी के जुर्म में 1954 में उसके खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद 1968 में मारपीट और 1975 में तमंचा रखने के जुर्म में मुकदमा दर्ज हुआ। इन छुटपुट मुकदमों के दर्ज होने के बाद अब्दुल करीम पिलखुवा से गायब हो गया। इसके बाद उसका संपर्क लश्कर ए तोयबा और दाऊद व हाफिज सईद जैसे आतंकियों से हुआ।

उसके करीबी बताते हैं कि कभी अपने घर पर कपड़े की रंगाई में काम आने वाले पोटेशियम क्लोरेट और सोडियम क्लोरेट से देशी बम बनाने वाला अब्दुल करीम बड़े आतंकियों के संपर्क में आने के बाद बहुत जल्द बम एक्सपर्ट बन गया। 1985 के आसपास वह अलग अंदाज में पिलखुवा लौटा और दस वर्ष तक आतंकी गतिविधियां पिलखुवा से ही चलाता रहा। इस दौरान वह होम्योपैथिक दवाइयों को बेचने का दिखावा भी करता रहा। 19 जनवरी 1994 की रात जब दिल्ली पुलिस ने उसके घर को घेरा तो स्थानीय लोगों के सामने उसकी हकीकत खुल गई। वह तो पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा लेकिन पुलिस ने उसके घर से डेढ़ कुंतल शक्तिशाली विस्फोटक, डेटोनेटर, विदेशी रिवाल्वर, भड़काऊ पोस्टर व अन्य आतंक का सामान बरामद किया था।

उसकी यह हकीकत कभी सामने भी नहीं आती यदि मुंबई में 12 जनवरी 1994 को कुख्यात पाकिस्तानी आतंकी जलील अंसारी पुलिस की पकड़ में नहीं आता। उसने पूछताछ के दौरान अब्दुल करीम की हकीकत पुलिस के सामने बयां की। मामला सामने आने के बाद अब्दुल करीम उर्फ टुंडा का देश भर में लगभग 40 बम धमाकों में नाम आया। इस बीच उसकी कई बार मौत और गिरफ्तारी की अफवाह भी उड़ीं। 2000 में भी उसके मारे जाने की खबर आई लेकिन 2005 में आतंकी अब्दुल रजाक मसूद की गिरफ्तारी के बाद उसके जिंदा होने का पुख्ता सबूत मिल ही गया।

टुंडा हर बार पुलिस को गच्चा देकर पाकिस्तान, बांग्लादेश, केन्या, अफगानिस्तान आता-जाता रहा। फिलहाल उस पर विभिन्न थानों में 40 बम धमाकों व हत्या, लूट जैसे धाराओं में 33 मुकदमे दर्ज हैं। जबकि दो बार टाडा लगाई जा चुकी है।

पूरा परिवार लापता

अब्दुल करीम ने पिलखुवा में रहते हुए यहां की ही जरीना से शादी की। जिससे उसे तीन पुत्र और दो पुत्रियां हुई। शहर से लापता होने के बाद वह 1985 में अहमदाबाद निवासी मुमताज के साथ लौटा। मुमताज से उसे एक बेटा हुआ। पिता के देहांत के बाद उसका असली चेहरा सामने आने पर भाइयों और सगे संबंधियों ने उससे नाता तोड़ लिया। पुलिस को तो उसकी सरगर्मी से तलाश थी ही, लेकिन उसकी दोनों पत्‍ि‌नयों और छह बच्चे भी लापता हो गए। उनका आज तक कोई अता-पता नहीं है।

बम बनाते उड़ गया था हाथ

1985 में जब टुंडा वापस पिलखुवा लौटा तो उसका बांया हाथ गायब था। तभी से उसका नाम टुंडा पड़ गया। बताया जाता है कि 1983 से 85 के बीच पाकिस्तान में बम बनाने की ट्रेनिंग के दौरान हुए हादसे में उसका बायां हाथ उड़ गया था। उसके बाद साथी आतंकियों में भी वह टुंडा के नाम से प्रचलित हो गया। उसके इस नाम का प्रयोग आतंकी कोड के रूप में भी करते थे।

गद्दार सिपाही ने भगा दिया था

टुंडा की 26 जनवरी 1994 को गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को दहलाने की साजिश थी। लेकिन खुफिया विभाग की सतर्कता से मामला पकड़ में आ गया। 19 जनवरी की रात दिल्ली पुलिस टुंडा की गिरफ्तारी के लिए पिलखुवा कोतवाली पहुंची और उसके मकान की लोकेशन पूछी। इसी दौरान कोतवाली के एक सिपाही ने दिल्ली पुलिस के आने की खबर टुंडा तक पहुंचा दी। उस समय टुंडा अपने दो मंजिला मकान में चार पांच आतंकियों के साथ मौजूद था। टुंडा तत्काल आतंकियों के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग पहुंचा और यहां पहले से खड़ी साथियों की एंबेसडर कार में सवार होकर फरार हो गया।

टुंडा की गिरफ्तारी से धुला पिलखुवा का दाग

हापुड़। नेपाल में पुलिस के हत्थे चढ़ा मोस्ट वांटेड आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा पिलखुवा के लिए किसी बदनुमा दाग से कम नहीं था। आतंक की दुनिया से जब-जब उसका नाम आता समूचा पिलखुवा शर्मशार होता। इसी वजह से हैंडलूम नगरी के नाम से देश भर में विख्यात पिलखुवा को लोग टुंडा के शहर के नाम से जानने लगे थे। पर उसकी गिरफ्तारी से पिलखुवा के लोग बेहद खुश हैं। शनिवार सुबह जब यह खबर आयी कि आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को नेपाल से गिरफ्तार कर लिया गया है। तो पिलखुवा शहर में सबसे अधिक हलचल दिखायी दी। लोगों के चेहरे पर संतोषजनक खुशी थी।

मीडिया ने भी पिलखुवा का रुख कर लिया। मीडियाकर्मियों के साथ लोगों की भीड़ भी टुंडा के घर आसपास डट गयी। उसके मकान में रह रहे उसके साढ़ू महमूद अली और उसकी साली ताहिरा गिरफ्तारी को लेकर खुश थे। दोनों ने कहा कि वह आतंकी है और उसका वही हश्र होना चाहिए जो एक आतंकी का होता है। पिलखुवा के ही मोहल्ला शिवाजी नगर में उसका छोटा भाई अब्दुल मलिक परिवार सहित रहता है। अब्दुल मलिक ने भी गिरफ्तारी पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हमने उससे तभी रिश्ता तोड़ लिया था जब उसकी हकीकत सामने आयी थी। उसकी भाभी अमीना खातून ने कहा कि वह हमारे परिवार का एक हिस्सा है, लेकिन जो अपराध उसने किये हैं उसकी सजा उसे मिलनी चाहिए। आसपास के लोगों का कहना था कि टुंडा पिलखुवा के लिए बदनुमा दाग है। उसकी वजह से स्थानीय लोग भी शव के दायरे में आये। उसी की वजह से परिवार के लोगों ने भी मुसीबतें झेलीं, पर उसकी गिरफ्तारी से शायद पिलखुवा के दामन पर लगा आतंक का दाग कुछ हद तक धुल सके।

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