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गुजरात के इन गांवों का कोई नाम नहीं लेता, जानिए क्यों

गुजरात में आज भी दो ऐसे गांव हैं, जिनका कोई नाम नहीं लेना चाहता है। इन गांवों का मूल नाम न लेने के कारण अंधविश्वास ही है।

By Sachin MishraEdited By: Updated: Tue, 29 Dec 2015 12:05 PM (IST)
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अहमदाबाद। कहावत है कि जिस गांव जाना नहीं, उसका नाम लेना नहीं। लेकिन यहां तो उल्टी परंपरा है। लोगों को उसी गांव जाना है, फिर भी नाम नहीं लेते।

मामला गुजरात के पाटण जिले के वेड़ गांव और अरवल्ली जिले के दधालिया गांव का है। लोग इन दोनों गांवों का नाम नहीं लेते। परंपरा वर्षों से चली आ रही है। दोनों गांवों के नाम के बदले लोग 'सामने वाला गांव' या फिर 'कक़डाई' का उच्चारण करते हैं। गांव का मूल नाम न लेने के कारण में अंधविश्वास ही है। वेड गांव की जनसंख्या चार हजार है, जबकि दधालिया गांव में पांच हजार लोग रहते हैं।

इन गांवों में जाने के लिए लोग यदि बस कंडक्टर से गांव का नाम बोलते हुए टिकट मांगते तो वह आगबबूला हो जाता है। वह भी टिकट देते समय इन गांवों का नाम नहीं लेता।

वेड गांव के सरपंच अख्तर खान बलोच ने बताया कि अंग्रेजों के शासन में वेड़ गांव के नबीसर तालाब पर फांसी का मंच बनाया गया था। यहां निर्दोष लोगों को फांसी दी जाती थी। मान्यता है कि इस गांव नाम लेने से उन पर मुसीबत आती है।

दधालियां गांव को लेकर गांव के उपसरपंच दिनेश प्रजापति ने बताया, यह गांव जहां बसा हुआ है, वहां वर्षों पूर्व रेत का ढेर था। यहां से गुजरते समय लोगों की बैलगाड़ियां फंस जाती थीं। इसीलिए लोग इसे संकुचित दृष्टि से पहचानने लगे।

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