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आतंकियों के मुकदमे वापसी पर यूपी का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

उत्तर प्रदेश सरकार ने आतंकियों के मुकदमे वापस लेते हुए अपनी ही पुलिस की चार्जशीट और कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिए हैं। प्रदेश सरकार ने मुकदमे वापस लेने का कारण और आधार बताते हुए जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है, उसमें कहीं पर बम विस्फोट के मामले में अभियुक्तों का नाम एफआइआर में न ह

By Edited By: Updated: Mon, 05 May 2014 08:28 AM (IST)
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नई दिल्ली [माला दीक्षित]। उत्तर प्रदेश सरकार ने आतंकियों के मुकदमे वापस लेते हुए अपनी ही पुलिस की चार्जशीट और कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिए हैं। प्रदेश सरकार ने मुकदमे वापस लेने का कारण और आधार बताते हुए जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है, उसमें कहीं पर बम विस्फोट के मामले में अभियुक्तों का नाम एफआइआर में न होना और मौके से गिरफ्तारी न होना आधार माना गया है। साथ ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का एजेंट होने के संदेह में गिरफ्तार अभियुक्त से बरामद सामान में स्वतंत्र गवाह का न होना भी मुकदमा वापसी का कारण बताया गया। इसकी अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट आठ मई को करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने गत फरवरी में प्रदेश सरकार से पूछा था कि वह किस आधार पर आरोपियों के मुकदमे वापस लेना चाहती है। उसी आदेश पर सरकार ने यह हलफनामा दाखिल किया है। इसमें प्रदेश भर में बम विस्फोट व अन्य आतंकी गतिविधियों में शामिल 21 अभियुक्तों के मुकदमे वापस लेने का ब्योरा दिया गया है। पहला मामला मार्च 2006 में वाराणसी के दशाश्वमेध में विस्फोटक के साथ कुकर बम पाए जाने के मामले में अभियुक्त शमीम उर्फ सरफराज का है। इसमें कहा गया है कि न तो प्राथमिकी में उसका नाम है और न ही वह मौके से गिरफ्तार हुआ। चार्जशीट में सिर्फ शमीम को अभियुक्त बनाया गया है। इसकी प्राथमिकी के मुताबिक विस्फोटक वाला बैग दो लोगों ने रखा था। पुलिस दूसरे को गिरफ्तार नहीं कर पाई।

दूसरा मामला गोरखपुर के गणोश चौराहे पर हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट का है, जिसमें आरोपी मुहम्मद तारिक काजमी का मुकदमा वापस लेने का कारण भी कमोवेश यही बताया गया कि न तो उसका नाम प्राथमिकी में है और न ही उसे मौके से गिरफ्तार किया गया।

कानपुर के आर्य नगर चौराहे पर अगस्त 2000 में हुए बम विस्फोट के आरोपी मुहम्मद अरशद का मुकदमा वापस लेने का भी डीएम और एसपी ने विरोध किया है लेकिन सरकार की रिपोर्ट में अभियुक्त का प्राथमिकी में नाम न होना और मौके से गिरफ्तार न होने के साथ ही सह अभियुक्तों के बरी हो जाने का कारण भी दिया गया है। किशोर होने के कारण इसका मामला ही लंबित है। मई 2009 में गिरफ्तार आइएसआइ एजेंट की साथी सितारा बेगम का मुकदमा वापस लेने का भी डीएम व एसपी ने विरोध किया था। सरकार ने यह कहते हुए मुकदमा वापस लिया कि उसकी मौके से गिरफ्तारी नहीं हुई। समाजवादी पार्टी ने उप्र की सत्ता में आने से पहले ही घोषणापत्र में कहा था कि अगर उसकी सरकार बनी तो निदरेष मुस्लिमों के मुकदमे वापस लिए जाएंगे। अखिलेश सरकार ने सिलसिलेवार धमाकों व अन्य आतंकी गतिविधियों में शामिल 21 आरोपियों के मुकदमे वापस लेने का आदेश जारी किए, जिस पर हाई कोर्ट ने पानी फेर दिया है। सरकार ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

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