यूपीए सरकार ने स्विस बैंक से काला धन निकालने का दिया था मौका!
क्या संप्रग सरकार ने जानबूझ कर स्विट्जरलैंड के बैंको में भारतीयों के जमा काले धन को बाहर निकालने का मौका दिया था? अगर ऐसा नहीं था तो फिर क्या वजह थी कि स्विटजरलैंड के साथ कर संबंधी नया समझौता हस्ताक्षर होने के 14 महीने बाद लागू किया गया? क्या इस दौरान स्विस बैंकों मे अपना काला धन रखने वालों को वहां
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 26 Oct 2014 07:29 PM (IST)
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। क्या संप्रग सरकार ने जानबूझ कर स्विट्जरलैंड के बैंको में भारतीयों के जमा काले धन को बाहर निकालने का मौका दिया था? अगर ऐसा नहीं था तो फिर क्या वजह थी कि स्विटजरलैंड के साथ कर संबंधी नया समझौता हस्ताक्षर होने के 14 महीने बाद लागू किया गया? क्या इस दौरान स्विस बैंकों मे अपना काला धन रखने वालों को वहां से पैसा बाहर ले जाने का मौका मिला था?
काले धन देश से बाहर भेजने वालों के नामों का खुलासा होने पर कांग्रेस पार्टी को शर्मसार होने का बयान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यूं ही नहीं दिया है। राजग सरकार को सिर्फ इस बात के पुख्ता सुबूत नहीं मिले हैं कि कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों ने देश से बाहर काला धन रखा है बल्कि संदेह इस बात का भी है जब काले धन के खिलाफ देश में माहौल बनने लगा तो सरकार ने विदेशी बैंकों में जमा धन को बाहर निकालने का भी रास्ता निकाला। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस चाहे जितना भी दावा करे कि उसने काले धन पर लगाम लगाने की तमाम कोशिशें की हैं लेकिन सबूत बताते हैं कि पूर्व संप्रग सरकार के कार्यकाल में काफी संदिग्ध फैसले किए गए। अगर विस्तार से जांच हो इस बात का खुलासा भी हो सकता है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कांग्रेस पार्टी स्विट्जरलैंड के साथ काले धन पर लगाम लगाने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही है, लेकिन सुबूत इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इसमें दाल में कुछ काला है। सूत्रों के मुताबिक संप्रग सरकार के कार्यकाल में अगस्त, 2010 में स्विट्जरलैंड और भारत के बीच दोहरे कराधान को समाप्त करने संबंधी (डीटीएए) समझौता हुआ था। इस समझौते को आज भी कांग्रेस काले धन को देश में वापस लाने के एक अहम कदम के तौर पर पेश करती है। लेकिन इसका दूसरा पहलू देखिए। भारत सरकार ने इस समझौते को नंवबर, 2011 से लागू करने की सहमति दी। यही नहीं, इस समझौते के तहत सूचना हासिल करने की तारीख भी अप्रैल, 2011 तय की गई। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक वर्ष बाद इसे लागू करने की तिथि क्यों तय की गई और सूचना हासिल करने के लिए भी समय छह महीने बाद का क्यों तय किया। सरकार को शक है कि इन छह महीनों में स्विस बैंकों में जमा काले धन को भारतीयों ने वहां से कहीं और भेज दिया। अगर ऐसा है तो हो सकता है कि उसके बाद स्विस बैंक में भारतीयों के बहुत ही कम पैसे पड़े हों। वैसे भी स्विट्जरलैंड के राष्ट्रीय बैंक स्विस नेशनल बैंक का आकलन कहता है कि वर्ष 2006 के बाद से ही वहां भारतीयों की जमा राशि में काफी तेजी से गिरावट आई है। वर्ष 2006 में यह राशि 23,373 करोड़ रुपये थी जो वर्ष 2010 में घट कर महज 9,295 करोड़ रुपये पर रह गया था।