प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के इस खुलासे ने सत्तापक्ष समेत कई विरोधी दलों को भी कांग्रेस को घेरने का मौका दे दिया है कि संप्रग सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक सहयोगी दल के दबाव में एक जिला जज को प्रोन्नत कर मद्रास हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनने दिया। यही नहीं इस जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
By Edited By: Updated: Mon, 21 Jul 2014 11:25 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के इस खुलासे ने सत्तापक्ष समेत कई विरोधी दलों को भी कांग्रेस को घेरने का मौका दे दिया है कि संप्रग सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक सहयोगी दल के दबाव में एक जिला जज को प्रोन्नत कर मद्रास हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनने दिया। यही नहीं इस जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
काटजू के खुलासे की धमक सोमवार को संसद में भी महसूस की गई। अन्नाद्रमुक ने लोकसभा और राज्यसभा में इस पर जमकर हंगामा किया। इस घटनाक्रम से गाजा पर चर्चा में विपक्षी एकता के जरिये भाजपा को घेरने में जुटी कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ा और वह अलग-थलग नजर आई। दूसरी ओर गोपाल सुब्रमण्यम को जज बनाने की सिफारिश नकारने के बाद दबाव में आई सरकार को कांग्रेस समेत न्यायपालिका पर हावी होने का मौका मिल गया। जस्टिस काटजू के खुलासे से न्यायाधीशों की नियुक्ति की वैकल्पिक व्यवस्था लागू करने के सरकार के एजेंडे को बल मिला है। वह राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित करने के अपने एजेंडे को रफ्तार दे सकती है। हालांकि, कांग्रेस समेत कई दलों ने 2005 के इस मामले को 2014 में उठाए जाने पर काटजू को भी कठघरे में खड़ा किया है। गौरतलब है कि 5 अक्टूबर, 2011 को पीसीआइ अध्यक्ष बनाए गए काटजू का कार्यकाल इसी साल 4 अक्टूबर को पूरा हो रहा है।
जस्टिस काटजू ने अपने ब्लॉग में एक दागी जज को मद्रास हाई कोर्ट में नियुक्ति करने की जो प्रक्रिया जाहिर की है, उससे कानूनी और राजनीतिक हलकों में तूफान खड़ा हो गया है। हालांकि, कथित दागी जज का स्वर्गवास हो चुका है, इसलिए मामले की जांच का कोई ज्यादा मतलब नहीं रह जाता, लेकिन काटजू के खुलासे से न्यायपालिका में नियुक्तियों की पोल जरूर खुल गई है। सरकार के एक वरिष्ठ सूत्र का कहना है कि इस मामले से इस बात को बल मिलता है कि न्यायिक नियुक्तियों में वैकल्पिक व्यवस्था लागू होनी चाहिए। अब सरकार को अपने प्रस्ताव पर ज्यादा विरोध नहीं झेलना पड़ेगा। 1998 से लागू कोलेजियम व्यवस्था में न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका का ही वर्चस्व है। सरकार एक बार तो कोलेजियम की सिफारिश विचार के लिए वापस भेज सकती है, लेकिन अगर कोलेजियम दोबारा अपनी सिफारिश पर मुहर लगाकर भेज दे तो सरकार को उसे मानना पड़ता है। जस्टिस काटजू के मुताबिक एक बड़े नेता को जमानत देने के इनाम में जिला जज को मद्रास हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया था। इस जज पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप थे। उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रहते हुए खुद चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी से इस जज की आइबी से जांच कराने की गुजारिश की थी। जांच में पर्याप्त सुबूत भी मिले, फिर भी एडिशनल जज को एक साल का विस्तार दिया गया। काटजू लिखते हैं कि उस समय सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के तीन सबसे सीनियर जज चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी, जस्टिस वाई के सब्बरवाल और जस्टिस रूमा पाल ने आइबी की प्रतिकूल रिपोर्ट पर उस जज को आगे नियुक्ति न देने की सिफारिश की, लेकिन संप्रग सरकार को समर्थन दे रहा तमिलनाडु का एक दल उस जज के पक्ष में था। इस दल ने कोलेजियम की सिफारिश का विरोध किया।
तमिलनाडु के इस दल के लोगों ने विदेश यात्रा पर जा रहे मनमोहन सिंह से कहा कि अगर इस जज को हटाया गया तो सरकार गिर जाएगी। इसके बाद एक कांग्रेसी नेता जस्टिस लाहोटी से मिले और बड़े संकट की बात कहते हुए जज को बनाए रखने का अनुरोध किया। इस पर कोलेजियम ने पत्र लिखा और जज को पद पर रहने दिया। जस्टिस लाहोटी के बाद सीजेआइ बने जस्टिस सब्बरवाल ने उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया। फिर केजी बालाकृष्णन चीफ जस्टिस बने। बालाकृष्णन ने जज को स्थायी करते हुए एक अन्य हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया। आधारहीन हैं काटजू के आरोप
नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू पर पलटवार करते हुए उनके सभी आरोपों को आधारहीन बताया है। काटजू ने आरोप लगाया है कि बालाकृष्णन और दो अन्य पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने संप्रग सरकार के समय भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे तमिलनाडु के एक जज को बनाए रखने के लिए अनुचित समझौते किए थे। बालाकृष्णन ने आश्चर्य जताया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश काटजू ने इतने साल बाद यह मुद्दा क्यों उठाया। उन्होंने कहा कि काटजू ये आरोप तब लगा रहे हैं, जब संबंधित जज की मृत्यु भी हो चुकी है। अन्य दो पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी और वाईके सब्बरवाल ने काटजू के आरोपों पर कोई जवाब नहीं दिया है। बालाकृष्णन के अलावा शिवेसना के संजय राउत और भाकपा के डी. राजा ने काटजू के खुलासे के समय पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा है कि काटजू ने उसी समय इस बात को क्यों नहीं उठाया, जब जज की पदोन्नति की गई थी। हालांकि, बसपा अध्यक्ष मायावती और अन्नाद्रमुक नेता एम. थंबीदुरैई ने मामले को गंभीर बताते हुए केंद्र सरकार से जांच की मांग की है।
अलग-थलग पड़ी कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के खुलासे पर कांग्रेस शेष विपक्ष के निशाने पर आकर अलग-थलग पड़ गई है। ससंद में कांग्रेस को न तो जदयू का साथ मिला और न ही विपक्ष के अन्य दलों का। हालांकि, इस मामले से असहज कांग्रेस ने काटजू पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस ने काटजू की खामोशी पर सवाल उठाए और उन्हें खबरों में रहने का शौकीन बताया। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने मामले को लेकर किसी भी तरह की जांच की जरूरत से इन्कार किया है, जबकि जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने इसे सरकार और न्यायपालिका के बीच का मामला बताते हुए जांच की पैरवी की है। मामले को लेकर सपा ने भी सवाल उठाए हैं। पार्टी नेता नरेश अग्रवाल का कहना है कि ये मामला गंभीर है। उनका कहना है कि अगर न्यायपालिका पर सवाल उठेंगे तो किस पर भरोसा किया जाएगा।
भ्रष्ट जज का नाम अशोक कुमार: भूषण पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने जिस भ्रष्ट जज का जिक्र अपने लेख किया है, उसका नाम जाहिर हो गया है। वरिष्ठ वकील और आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने उक्त कथित भ्रष्ट जज का नाम जस्टिस अशोक कुमार बताया है।
भारद्वाज ने माना, लिखी थी चिठ्ठी पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने माना है कि उन्होंने तमिलनाडु के एक जज का कार्यकाल बढ़ाने के लिए प्रधान न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी थी। भारद्वाज की मानें तो ये द्रमुक के कहने पर किया गया। हालांकि भारद्वाज ने दावा किया कि इससे द्रमुक को को कोई फायदा नहीं मिला। ***** 'इस मामले पर कुछ नहीं कहना चाहता। पूर्व कानून मंत्री एचआर भारद्वाज पहले ही इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण दे चुके हैं।' -मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री ----- 'सभी मामलों में कोलेजियम ही फैसला ले रहा था। दस साल बाद इस मुद्दे को उठाने के पीछे का कारण समझ नहीं आ रहा।' -एम. वीरप्पा मोइली, वरिष्ठ कांग्रेस नेता ----- 'मुद्दे के सामने आने का समय अहम नहीं है। इस मामले की जांच कर पता लगाया जाना चाहिए कि यह सही था या गलत।' -मार्कंडेय काटजू, अध्यक्ष पीसीआइ
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