Move to Jagran APP

मोदी सरकार को लुभाने की होड़, अमेरिका, चीन और रूस आ रहे आगे

भारत में नई सरकार की आमद को यूं तो अभी डेढ़ महीना ही हुआ है, लेकिन नए निजाम के आने के बाद भारत में शुरू हुई आर्थिक हलचल में हिस्सेदारी की संभावनाएं तलाशने में बड़े मुल्क भी पीछे नहीं छूटना चाहते। लिहाजा, महज छह हफ्ते पुरानी राजग सरकार से संपर्क बढ़ाने के लिए अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, सिंगापुर समेत कई म

By Edited By: Updated: Sun, 13 Jul 2014 07:28 AM (IST)
Hero Image

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत में नई सरकार की आमद को यूं तो अभी डेढ़ महीना ही हुआ है, लेकिन नए निजाम के आने के बाद भारत में शुरू हुई आर्थिक हलचल में हिस्सेदारी की संभावनाएं तलाशने में बड़े मुल्क भी पीछे नहीं छूटना चाहते। लिहाजा, महज छह हफ्ते पुरानी राजग सरकार से संपर्क बढ़ाने के लिए अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, सिंगापुर समेत कई मुल्क अपने नुमाइंदे भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास एजेंडा को सहयोग की मंशा जता चुके हैं। साथ ही जापान, चीन, जर्मनी और अमेरिका मोदी को अपने-अपने मुल्कों की यात्रा का न्योता भी दे चुके हैं। कैमरन ने मोदी की प्रशंसा में कहा था कि इन्होंने ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा वोट हासिल किए हैं।

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार मानी जाने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था में सभी विकसित मुल्कों और बड़े निवेशकों की दिलचस्पी लाजमी है। लिहाजा, मोदी सरकार के साथ संपर्को की पहल में दुनिया के कई मुल्क 100 स्मार्ट सिटी, हीरक चतुर्भुज रेल परियोजना, बुलेट ट्रेन समेत ढांचागत विकास की बड़ी परियोजनाओं में निवेश व हिस्सेदारी के लिए अपनी दावेदारियां पेश कर चुके हैं। बीते दिनों भारत आए सिंगापुर के विदेश व कानून मंत्री के. शणमुगम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना में भागीदारी के लिए औपचारिक प्रस्ताव दे चुके हैं। सिंगापुर और भारत के बीच स्मार्ट सिटी परियोजना पर एक कोर ग्रुप बनाने को लेकर सहमति भी बन गई है। जर्मनी और फ्रांस समेत कई मुल्क अक्षय ऊर्जा, जल संरक्षण और शहरी विकास परियोजनाओं में निवेश का उत्साह दिखा रहे हैं।

सरकार की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना में शिरकत के लिए फ्रांस और जापान अपनी दिलचस्पी पहले ही जता चुके हैं। 30 जून से पहली जुलाई के बीच भारत आए फ्रांस के विदेश मंत्री लॉरेट फैबियस ने भारत के साथ लंबित हथियार सौदों व नाभिकीय सहयोग परियोजनाओं के साथ ही भविष्य की साझेदारी परियोजनाओं पर भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात की। इसके अलावा 18-19 जून को भारत दौरे पर आए रूसी डिप्टी चेयरमैन दिमित्री रोगोजिन ने पारंपरिक मुद्दों के साथ ही भारत को हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग के नए प्रस्ताव दिए हैं। जाहिर तौर पर इराक के हालात से पैदा हुए तेल संकट के बीच भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद है। ऐसे में रूस भारत के साथ कारोबार और साझेदारी का नया गलियारा बनाने की कोशिश कर रहा है।

भारत के साथ साझेदारी बढ़ाने के संकेत देने के लिए ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 26 मई, 2014 के बाद से अब तक अपने दो उच्चस्तरीय नुमाइंदों को भारत भेज चुके हैं। मोदी की अमेरिका यात्रा भी 30 सितंबर को तय हो गई है। इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच होने वाली रणनीतिक वार्ता की जमीन तैयार करने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी इसी महीने के अंत में नई दिल्ली आ रहे हैं। कैरी पहले ही कह चुके हैं कि वह भारत के साथ मौजूदा द्विपक्षीय व्यापार को अगले पांच साल में एक अरब डॉलर से पांच अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं। उम्मीद है कि अगले सप्ताह ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के साथ विश्व शक्तियों से मेल-मुलाकात का दौर शुरू कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोर भी भारत का निवेश आकर्षण लौटाने पर होगा। मोदी को अगले पांच महीने में करीब आधा दर्जन मुल्कों की यात्रा करनी है, जिसमें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन और जी-20 जैसी बैठकेंभी शामिल हैं।

पढ़ें: मोदी ने स्वीकारा ओबामा का न्योता