उत्तराखंड हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, राजा नहीं हैं राष्ट्रपति
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं। इस देश में कोई सर्वशक्तिमान नहीं है। राष्ट्रपति अच्छा इंसान हो सकता है।
जागरण संवाददाता, नैनीताल । उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति राजा नहीं हैं। इस देश में कोई सर्वशक्तिमान नहीं है। राष्ट्रपति अच्छा इंसान हो सकता है। लेकिन राष्ट्रपति से भी गलती हो सकती है। न्यायाधीश भी गलती कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका में दोनों के फैसलों को चुनौती दी जा सकती है। अदालत की यह टिप्पणी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील पर थी। मेहता का कहना था-'यह कोई इंस्पेक्टर का आदेश नहीं राष्ट्रपति का है। उनका लंबा अनुभव है, काफी सोच समझ कर ही फैसला दिया है।'
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राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को चुनौती वाली निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका पर न्यायमूर्ति केएम जोसेफ व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ लगातार तीसरे दिन सुनवाई कर रही थी। बुधवार को महावीर जयंती का अवकाश होने के बावजूद सुनवाई जारी रखते हुए खंडपीठ ने विनियोग विधेयक को ध्वनि मत से पारित करने के स्पीकर के फैसले तथा निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले को लेकर भी तीखे सवाल किए।
अदालत ने भाजपा विधायक भीमलाल आर्य मसले को काफी गंभीरता से लिया। केंद्र का आरोप है कि आर्य को अयोग्य घोषित किए जाने की शिकायत को विधान सभा अध्यक्ष ने लटकाए रखा। जबकि हकीकत यह है कि आर्य के खिलाफ शिकायत राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के बाद दर्ज कराई गई है। इसको लेकर खंडपीठ ने सवालों के साथ काफी तल्ख टिप्पणी की। पूछा कि आर्य के खिलाफ शिकायत पांच अप्रैल को क्यों दर्ज कराई गई, जबकि राष्ट्रपति शासन लग चुका था। हम विधान सभा अध्यक्ष द्वारा दोहरे मानक अपनाए जाने पर गौर कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी और आर्य के मामले को निलंबित रखा। खंडपीठ ने कहा-'आप विधान सभा अध्यक्ष पर इस तरह के भद्दे आरोप लगा रहे हैं। क्या भारत सरकार इसी तरह काम करती है। इसके बारे में आपको कुछ कहना है। हम इसे हल्के में नहीं ले रहे हैं, क्योंकि विधायकों को अयोग्य घोषित करने को भी राष्ट्रपति की आश्वस्ति का आधार बताया गया है।
केंद्र की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने कहा कि वह इस मसले पर गुरुवार को ही कुछ कह सकते हैं। इसके बाद अदालत ने मामले को गुरुवार के लिए संदर्भित कर दिया। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि हरीश रावत की याचिका पर गुरुवार को अदालत अपना फैसला सुरक्षित रख सकती है।
दूसरे सत्र में सुनवाई के दौरान अदालत ने याची हरीश रावत से भी पूछा कि उनके आचरण पर गौर करते हुए क्यों नहीं अनुच्छेद 356 के अधिकारों का प्रयोग किया जाए। अदालत का आशय स्टिंग ऑपरेशन के बाद रावत पर विधायकों के खरीद-फरोख्त के लगे आरोप को लेकर था।
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चेतावनी: उकसाने वाला कदम न उठाए केंद्र
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा-'उम्मीद है कि केंद्र सरकार अदालत को उकसाने जैसा कोई कदम नहीं उठाएगी। अदालत का फैसला आने तक सूबे से राष्ट्रपति शासन नहीं हटाएगी।' अदालत ने यह बात निवर्तमान मुख्यमंत्री और याची हरीश रावत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा आशंका जताए जाने पर दी कि हो सकता है, केंद्र सरकार अदालत का फैसला आने से पहले ही राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा दे। हालांकि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की इस तरह की मंशा के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया।
राष्ट्रपति के प्रति टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट जाएगा केंद्र
राष्ट्रति प्रणब मुखर्जी को लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट की टिप्पणी को हटाने के लिए केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। एक केंद्रीय मंत्री ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त के साथ बताया कहा कि राष्ट्रपति के प्रति इस तरह की टिप्पणी को सरकार कतई मान्यता प्रदान नहीं कर सकती। इस मामले को लेकर हम जरूर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। अदालत की कार्यवाही से राष्ट्रपति के प्रति टिप्पणी को हटाने की मांग करेंगे। अगर इस तरह की टिप्पणियों के प्रति आपत्ति नहीं जताई गई तो गलत परम्परा की नींव पड़ेगी।