यह कैसी मदद? जिंदगी तबाह हो गई और मिले सिर्फ 2 हजार रुपये
दो भाई और नौ सदस्यों का परिवार। न सिर पर छत और न चूल्हे पर चढ़ाने के लिए बर्तन। पिंडर का क्रोध सब कुछ लील गया। सरकार ने दोनों भाइयों को दो-दो हजार रुपये की राहत दी। किसी तरह खुले आसमान के नीचे दो पत्थरों के सहारे कुछ दिन चूल्हा जला, लेकिन अब क्या होगा। ऐसे में डिम्मर गांव के हरीश व दीपक को अप
By Edited By: Updated: Mon, 01 Jul 2013 02:56 PM (IST)
रुद्रप्रयाग, [अजय खंतवाल]। दो भाई और नौ सदस्यों का परिवार। न सिर पर छत और न चूल्हे पर चढ़ाने के लिए बर्तन। पिंडर का क्रोध सब कुछ लील गया। सरकार ने दोनों भाइयों को दो-दो हजार रुपये की राहत दी। किसी तरह खुले आसमान के नीचे दो पत्थरों के सहारे कुछ दिन चूल्हा जला, लेकिन अब क्या होगा। ऐसे में डिम्मर गांव के हरीश व दीपक को अपना जीवन बोझ लगने लगा है।
17 जून से पिंडर नदी से लगी झूला बस्ती में यह नजारा आम है। हरीश और दीपक का घर इसी बस्ती में था। हरीश राज मिस्त्री है, जबकि दीपक मजदूरी कर घर का खर्चा चलाते थे। हरीश बताते हैं 17 जून की सुबह करीब आठ बजे तक पूरा परिवार हंसी-खुशी जीवन बसर कर रहा था, तभी अचानक नदी के तेज बहाव में आया एक बड़ा पत्थर मकान से टकराया और देखते ही देखते दोनों भाईयों के जीवन की राह कंटीली हो गई। दरअसल, पिंडर के तेज बहाव में आए एक बोल्डर ने मकान की एक दीवार गिरा दी। नदी ने भी मकान का रुख किया और तीन कमरों का यह मकान नदी में समा गया। सुध लेने प्रशासन की ओर से पटवारी मौके पर पहुंचा व दोनों भाइयों को एक-एक टैंट व दो-दो हजार रुपये थमा वापस लौट गया। दो सप्ताह बीत गए, लेकिन दोबारा 'सरकार' इस ओर झांकने नहीं आए। अब गुजारा दानदाताओं से मिली सामाग्री पर हो रहा है। धीरे-धीरे इसमें भी कमी आती जा रही है। चूल्हा जलाना मुश्किल होना लाजिमी है।
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