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फेसबुक के सहारे लौटी गांव की रौनक

मथुरा। 'मिली हवा में उड़ने की ये सजा यारो, कि मैं जमीन के रिश्तों से कट गया यारो।' किसी शायर का यह कलाम पौड़ी- गढ़वाल के एक छोटे से गांव बरसूडी पर एकदम सटीक बैठती हैं। रोजगार की तलाश में यहां के युवाओं ने शहर का रुख किया तो गांव वीरान हो गया। ऐसे में दो जुझारू युवाओं ने तकनीक की मदद ली। अब फेसबुक के माध्यम से

By Edited By: Updated: Sat, 14 Dec 2013 09:12 PM (IST)
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मथुरा। 'मिली हवा में उड़ने की ये सजा यारो, कि मैं जमीन के रिश्तों से कट गया यारो।' किसी शायर का यह कलाम पौड़ी- गढ़वाल के एक छोटे से गांव बरसूडी पर एकदम सटीक बैठती हैं। रोजगार की तलाश में यहां के युवाओं ने शहर का रुख किया तो गांव वीरान हो गया। ऐसे में दो जुझारू युवाओं ने तकनीक की मदद ली। अब फेसबुक के माध्यम से गांव को फिर आबाद करने की ठानी है। डेढ़ महीने में एक सैकड़ा लोग जुड़ चुके हैं। गत रविवार को मथुरा के कुलदीप सिंह कुकरैती इस कम्यूनिटी से जुड़ने वाले 98 वें व्यक्ति थे।

पौड़ी-गढ़वाल जिले के थाना सतपुकी क्षेत्र के बरसूडी गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है। रोजी रोटी की तलाश में एक-एक कर लोगों का पलायन शुरू हुआ तो गांव सुनसान हो गया। करीब 95 फीसद परिवार विभिन्न शहरों में जाकर बसे तो फिर वहीं के होकर रह गए। छुटिटयों और विशेष मौकों पर शहर से गांव जाने वाले कुछ लोगों को बुजुगरें ने अपनी व्यथा सुनाई। सबको देखने की इच्छा जताई। गांव के संदीप कुकेरती वहीं एक गांव में शिक्षक हैं। उन्होंने अपने छोटे भाई सुनील से इस संबंध में चर्चा की। मगर दिक्कत थी कि आखिर अंजान शहरों में रहने वाले अपनों (ग्रामीणों) को कैसे खोजा जाए। काफी सोच-विचार के बाद फेसबुक को माध्यम बनाने का निर्णय हुआ। करीब डेढ़ महीने पहले फेसबुक पर गांव की यादों का हवाला देते हुए संदीप और सुनील ने बिछुड़े लोगों के लिए मार्मिक संदेश पोस्ट किए। इसमें एक बार गांव आने की अपील भी की गई। कुछ दिन में फिर लोग मिलने लगे। सभी कामकाजी और नौकरी पेशा है, लिहाजा तय किया गया कि रविवार को अवकाश के दिन सुबह 11 बजे से सब ऑनलाइन होंगे। गत रविवार मथुरा में प्रतिसार निरीक्षक कुलदीप सिंह कुकरेती भी इस कम्यूनिटी से जुड़ गए। गांव के फोटो देख उनकी आंखें नम हो गईं। कहते हैं कि अच्छा लग रहा है पुराने अपने लोग मिल रहे हैं।

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कहते हैं संदीप और सुनील अभी सिर्फ लोगों से ग्रुप से जुड़ने व अन्य लोगों को खोजने की अपील कर रहे हैं। कुकरेती बताते हैं कि उनका परिवार करीब बीस साल पहले गांव छोड़ आया था। गांव में अब कोई नहीं है, सभी सदस्य दूसरे शहरों में नौकरी कर रहे हैं। यही स्थिति अन्य परिवारों की भी है। बरसूडी का यह ग्रुप गांव की तरक्की के लिए अपनों से सलाह भी ले रहा है। उन्हें उम्मीद है कि सभी लोगों को खोजकर ग्रुप छुट्टी में एक बार तो गांव को आबाद करने पहुंचेगा ही।

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