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.तो क्या चुनावी स्टंट था जन लोकपाल बिल?

ऐतिहासिक रामलीला मैदान का वह मंजर याद कीजिए। करीब डेढ़ महीने पहले जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पहुंचे थे, तो उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि इसी मैदान में वे जन लोकपाल बिल को भी पारित करेंगे और भ्रष्टाचारियों को जेल भेजेंगे। अब जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है तो सियासी गलियारों में चचा

By Edited By: Updated: Sat, 15 Feb 2014 10:18 AM (IST)
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राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। ऐतिहासिक रामलीला मैदान का वह मंजर याद कीजिए। करीब डेढ़ महीने पहले जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पहुंचे थे, तो उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि इसी मैदान में वे जन लोकपाल बिल को भी पारित करेंगे और भ्रष्टाचारियों को जेल भेजेंगे। अब जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है तो सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या उनका जन लोकपाल बिल महज चुनावी स्टंट भर था। विधानसभा चुनाव प्रचार के पूरे अभियान में उन्होंने जनता को यही संदेश देने की कोशिश की कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वह और उनकी पार्टी ही लड़ सकती है। लेकिन सरकार बनाने के बाद उन्होंने इस बिल को लेकर जितने भी कदम उठाए, वे संविधान के नियमों व कानूनों के खिलाफ थे।

बता दें कि जब केजरीवाल सरकार जन लोकपाल बिल का प्रारूप तैयार कर रही थी, तो सरकार के कई विभागों, गृह विभाग, वित्त विभाग, विधि व न्याय विभाग, प्रशासनिक सुधार विभाग, सबने इसके प्रावधानों पर गंभीर आपत्तियां दर्ज कराईं। केजरीवाल के मातहत काम करने वाले अधिकारियों ने उनसे यह भी कहा था कि चूंकि यह एक वित्त विधेयक है लिहाजा, बगैर उपराज्यपाल की मंजूरी के इसे विधानसभा में तो क्या मंत्रिमंडल तक में मंजूर नहीं किया जा सकता। केजरीवाल नहीं मानें। तमाम आपत्तियों को दरकिनार कर, मंत्रिमंडल ने इस बिल को मंजूरी दे दी।

केजरीवाल की अगुवाई वाले मंत्रिमंडल ने यह भी तय कर दिया कि इस बिल को पारित करने के लिए इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए। अधिकारियों ने उन्हें सलाह दी कि ऐसा करना संभव नहीं है। उन्हें समर्थन दे रही कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर विरोध जताया था। विपक्षी भाजपा ने भी दिल्ली मंत्रिमंडल द्वारा इस संबंध में लिए गए फैसले को असंवैधानिक बताया था, लेकिन केजरीवाल नहीं मानें। उपराज्यपाल नजीब जंग तक ने उन्हें सलाह दी कि सदन की बैठक खुले में नहीं बुलाई जाए क्योंकि दिल्ली पुलिस सुरक्षा का मामला उठा रही है। इस पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उन्हें यह नसीहत दे डाली कि यदि दिल्ली पुलिस सुरक्षा नहीं दे सकती तो अर्धसैनिक बलों की तैनाती की जाए।

केजरीवाल ने केंद्र सरकार के अधिकार को चुनौती देते हुए गृह मंत्रालय के उस आदेश तक को मानने से इन्कार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विधानसभा में कोई भी बिल पेश किए जाने से पहले उसकी मंजूरी उपराज्यपाल से लेना जरूरी है। वे कानून मंत्रालय की राय भी मानने को तैयार नहीं हुए।

कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों का यह कहना था कि उनका इस बिल से कोई विरोध नहीं है, लेकिन इसे संविधान के दायरे में लाया जाना चाहिए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि यदि हम संविधान के नियमों के पालन की मांग कर रहे थे, तो इसमें क्या गलत था। असल में केजरीवाल जन लोकपाल बिल लाना ही नहीं चाहते थे, उन्हें तो इसी बहाने लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी थी।