जब वोटों के लिए हिंदी में बोले थे करुणा
नई दिल्ली। द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की ओर से राजनीतिक फायदे के लिए हिंदी के विरोध में बयान देने के साथ ही तमिलनाडु के अन्य नेताओं ने भी उनके सुर में सुर मिलाने शुरू कर दिए हैं। इनमें मुख्यमंत्री जयललिता के अलावा भाजपा सेमिलकर चुनाव लड़े दलों के नेता वाइको और एस. रामदास भी हैं। लेकिन ज्यादा समय नहीं बीता जब द्रमुक ने तमिलनाडु में
By Edited By: Updated: Fri, 20 Jun 2014 08:17 PM (IST)
नई दिल्ली। द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की ओर से राजनीतिक फायदे के लिए हिंदी के विरोध में बयान देने के साथ ही तमिलनाडु के अन्य नेताओं ने भी उनके सुर में सुर मिलाने शुरू कर दिए हैं। इनमें मुख्यमंत्री जयललिता के अलावा भाजपा सेमिलकर चुनाव लड़े दलों के नेता वाइको और एस. रामदास भी हैं।
लेकिन ज्यादा समय नहीं बीता जब द्रमुक ने तमिलनाडु में रह रहे हिंदी भाषी लोगों के वोट पाने के लिए हिंदी में पोस्टर लगवाए थे। हाल के लोकसभा चुनाव में करुणानिधि के रिश्तेदार और पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन के चुनाव क्षेत्र मध्य चेन्नई में द्रमुक की ओर से हिंदी में लिखे पोस्टर चस्पा किए गए थे। इन पोस्टरों में दयानिधि राजस्थानी पगड़ी पहने दिख रहे थे। पोस्टरों में करुणानिधि और उनके बेटे स्टालिन की भी फोटो थी। इतना ही नहीं मध्य चेन्नई में चुनाव प्रचार करने आए करुणानिधि ने हिंदी में ये पंक्तियां भी गाई थीं-हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में सब भाई-भाई। तमिलनाडु उग्र हिंदी विरोध के लिए जाना जाता रहा है। इस राज्य में हिंदी का विरोध आजादी के पहले भी हुआ और बाद में भी। द्रमुक ने 1965 में हिंदी के खिलाफ जोरदार आंदोलन छेड़ा और 1967 में वह कांग्रेस को बेदखल कर सत्ता में आ गई। इस हिंदी विरोधी आंदोलन में कई लोगों की जान भी गई थी। इनमें तलामुथु और नटराजन भी थे। बाद में एक सरकारी भवन का नामकरण इन दोनों के नाम पर ही किया गया। इस भवन में केंद्र सरकार के भी कई कार्यालय हैं और उनमें तमाम हिंदी भाषी काम करते हैं।
तमिलनाडु के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान भी ऐसे कई क्षेत्रों में राजनीतिक दलों की ओर से हिंदी में पोस्टर-बैनर लगाए गए थे, जहां उत्तर भारतीय ठीक-ठाक संख्या में हैं। पढ़ें: हिंदी में कामकाज को लेकर मोदी सरकार के फैसले का विरोध बढ़ा