सियासत दिल्ली की, रायशुमारी काशी में
काशी को भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सियासी किस्मत तो तय करनी ही है, दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को लेकर भी यहीं पर रणनीति बनाई जा रही है। मोदी के चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने पहुंचे दिल्ली के तमाम विधायकों के बीच सूबे की सियासत पर भी रायशुमारी जारी है। बनारस में बैठकर इस मुद्दे पर अप
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। काशी को भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सियासी किस्मत तो तय करनी ही है, दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को लेकर भी यहीं पर रणनीति बनाई जा रही है। मोदी के चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने पहुंचे दिल्ली के तमाम विधायकों के बीच सूबे की सियासत पर भी रायशुमारी जारी है। बनारस में बैठकर इस मुद्दे पर अपनी रणनीति बना चुके दिल्ली से ताल्लुक रखने वाले तमाम भाजपा नेता मंगलवार तक दिल्ली पहुंच जाएंगे। इन नेताओं की मानें तो 16 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद दिल्ली को लेकर भी निर्णायक पहल होगी।
बता दें कि प्रदेश अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल, विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी सहित दिल्ली के कई भाजपा विधायक बनारस में पार्टी के पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के समर्थन में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। सबको अलग-अलग काम सौंपा गया है। कुछ विधायकों ने फोन पर हुई बात में माना कि आपस में दिल्ली के भविष्य को लेकर भी चर्चा हो रही है। ऐसा बताया जा रहा है कि दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर भाजपा में भी एक राय नहीं है। कुछ विधायक किसी भी कीमत पर सरकार बनाने के पक्षधर बताए जाते हैं तो कुछ का मानना है कि चुनाव कराया जाना पार्टी के हक में होगा। पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक की मानें तो दिल्ली में भाजपा द्वारा सरकार बनाने या नहीं बनाने के मामले का लोकसभा चुनाव परिणाम से सीधा ताल्लुक है। यदि उम्मीद के अनुसार पार्टी केंद्र में अपनी सरकार बनाने में सफल रहती है तो दिल्ली को लेकर भी पहल की जाएगी। दूसरी बात यह है कि इस चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों के चुनाव परिणाम को भी देखा जाना है। यदि भाजपा सभी सात सीटों पर चुनाव जीतने में सफल रहती है तो शायद चुनाव मैदान में उतरकर स्पष्ट बहुमत हासिल करना बेहतर विकल्प बन सकता है। हालांकि, पार्टी दोनों ही विकल्पों पर विचार कर रही है।
आप के प्रदर्शन पर भी नजर टिकी
भाजपा की नजर आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर भी टिकी है। माना जा रहा है कि यदि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली यह पार्टी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है तो भाजपा को चुनाव मैदान में उतरने के अपने विकल्प पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है।
आम आदमी पार्टी के विधायकों को जोड़कर रखना होगी बड़ी चुनौती
सूबे के ताजा राजनीतिक हालातों के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) के सामने अपने विधायकों को जोड़कर रखना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। 16 मई को लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद दिल्ली का सियासी पारा भी चढ़ने की संभावना है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपने तीन विधायकों डॉ. हर्षवर्धन, रमेश बिधूड़ी और प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा था। यदि ये तीनों लोकसभा का चुनाव जीत जाते हैं तो पार्टी के तीन विधायक कम हो जाएंगे। वर्तमान में पार्टी के पास 32 विधायक हैं, ऐसी स्थिति में भाजपा को सरकार बनाने के लिए कम से कम चार विधायकों की जरूरत पड़ेगी। यदि एक विधानसभा अध्यक्ष का पद भी जोड़ लिया जाए तो पार्टी को न्यूनतम पांच विधायकों की आवश्यकता होगी। उसके सामने या तो आठ सदस्यों वाली कांग्रेस में तोड़फोड़ करने का विकल्प है या फिर आप में विभाजन कराने का। कांग्रेस में आठ में से छह अल्पसंख्यक विधायकों की मौजूदगी को देखते हुए विभाजन कराना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। ऐसे में जाहिर तौर पर भाजपा के निशाने पर आप ही होगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि उनकी पार्टी किसी भी तरह की जोड़तोड़ कर सरकार नहीं बनाएगी। यही दलील देकर भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें होने के बावजूद सरकार बनाने से इन्कार कर दिया था। लेकिन तब भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव की मजबूरी थी। पूरे देश में यह संदेश जाने का खतरा था कि भाजपा दूसरे दलों को तोड़कर सत्ता में आना चाहती है। शायद यही वजह रही कि पार्टी ने सरकार बनाने की दिशा में अपनी ओर से कोई पहल नहीं की। लेकिन सोमवार को लोकसभा के आखिरी चरण के लिए वोट डाले जाएंगे और संभव है कि इसके बाद भाजपा अपनी रणनीति को बदले। सियासी पंडितों का यह भी आकलन है कि आप में ऐसे कई विधायक हैं जिन्हें डर है कि उन्हें पार्टी से दोबारा टिकट नहीं मिल पाएगा। ऐसे विधायक मौका देखकर पाला भी बदल सकते हैं। लेकिन दलबदल कानून के दायरे में रहकर भाजपा के लिए भी आप के 27 में से दो-तिहाई विधायकों को तोड़ पाना आसान काम नहीं होगा। पार्टी से बागी हो चुके एक विधायक विनोद कुमार बिन्नी जरूर भाजपा के समर्थन में आ सकते हैं।