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एक ऐसा बाजार जहां ना दुकानदार है और ना सीसीटीवी कैमरा, फिर भी बिकती हैं चीजें

आज के इस दौर में इस खबर पर विश्वास कर पाना मुश्किल जरूर है क्योंकि लोगों पर से विश्वास उठ चुका है लेकिन कुछ लोगों में ईमानदारी अभी भी बाकी है मेरे दोस्त...इसी का उदाहरण है ट्रस्ट..

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Wed, 31 Aug 2016 05:00 PM (IST)
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कहते हैं कि वास्तविक सुंदरता अंदरूनी होती है। और इस कहावत को मिजोरम वासियों ने बिलकुल सही साबित कर दिखाया है। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर मिजोरम, शायद इसलिए भी आकर्षक हैं क्यूंकि यहां के लोग, जिन्हें ‘मिजो’ नाम से जाना जाता है, नम्र होने के साथ ही इमानदारी के भी पर्याय माने जाते हैं ।

इसके कई उदाहरणों में से एक है मिजोरम में पायी जाने वाली दुकानें, जो ‘ नघा लोउ दावर’ के नाम से जानी जाती हैं। राजधानी, ऐजवल से 65 किमी की दूरी पर हाईवे पर, महज विश्वास पर चल रही ये दुकानें अपने आप में खास हैं।

यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन यही यहां की सच्चाई है। ये दुकानें ज्यादातर छोटे किसानों द्वारा लगायी जाती हैं, जो हर सुबह बांस से बंधे हुए ताख पर फल सब्जियां आदि रख देते हैं और उसके बगल में चॉक या कोयले से उनके दाम लिख कर झूम खेती (जगह जगह किये गए छोटी छोटी खेती) के लिए निकल जाते हैं। इसी बीच वहां से गुजरने वाले लोग अपनी जरूरत के हिसाब से इन दुकानों पर सही दाम रख कर, सामान ले जाते हैं।

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इन्हें खरीदने वाले ग्राहक अपनी जरूरत का सामान उठा कर यहां रखे कटोरे या बॉक्स, जिन्हें ‘पविसा बावन’ या ‘पविसा दहना’ कहा जाता है, उसमें सामान का मूल्य डाल देते हैं। यहीं पर, दुकानदार द्वारा छुट्टे या खुले पैसों का भी एक डब्बा रखा होता है, जिसमें से ग्राहक बाकि पैसे खुद ही उठा सकते हैं।

बैंगलोर में भी है एक ऐसी दुकान

इस तरह की एक दुकान कर्नाटक के बैंगलोर में भी है जिसे ट्रस्ट शॉप नाम दिया गया है। यहां भी ना दुकानदार है और ना सीसीटीवी कैमरे। लोग अपनी जरूरत का सामान लेकर जाते हैं औऱ पैसे रख जाते हैं और जिनके पास पैसे नहीं होते हैं वो भी सामान ले जाते हैं और पैसे बाद में दे जाते हैं। हम कह सकते हैं कि देश बदल रहा है।

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