जिस तिरंगे से हम इतना प्यार करते हैं उसे बनाया किसने था, पता नहीं होगा
हम अपने तिरंगे का बहुत सम्मान करते हैं, इसी तिरंगे के नीचे हमने आजादी पाई थी लेकिन क्या आपको पता है हमें तिरंगा देने वाला वो महान हस्ती कौन था...शायद बहुत से लोगों को नहीं पता होगा
देश की आजादी का जश्न अगले कुछ ही दिनों में मनाया जाने वाला है। इसके एक महीने पहले यानी 22 जुलाई को हम उस दिन का जश्न मनाते हैं जिस दिन तिरंगे को देश के झंडे के रूप में स्वीकार किया गया था।
लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण तारीखों के बीच एक और तारीख आती है 2 अगस्त, यही वो दिन है जब तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली वैंकेया का जन्म हुआ था। आज उनकी 141वीं जन्मशती है। 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में जन्मे पिंगली आजादी की लड़ाई के परवानों में शामिल थे।
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साल 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांध दे। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ्लैग मिशन का गठन किया।
वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बने। उन्होंने 5 सालों तक 30 देशों के झंडों पर रिसर्च किया और इस रिसर्च के नतीजे के तौर पर भारत को राष्ट्रध्वज तिरंगा मिला।
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साल 1921 में पिंगली वैंकेया ने हरे और लाल रंग का इस्तेमाल करते हुए एक झंडा तैयार किया जिसके बीच में अशोक चक्र था। गांधी को यह झंडा ऐसा नहीं लगा जो पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता हो। इसके बाद इसके रंग को लेकर तरह-तरह के विचार आने लगे अंत में 1931 को एक कमेटी बनाई गई जो अखिल भारतीय कांग्रेस के झंडे को मूर्त रूप देने का काम करती।
इस बीच पिंगली वैंकेया एक ध्वज लेकर आए जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियां थीं और बीच में अशोक चक्र बना हुआ था। इस ध्वज को सहमति मिल गई और कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर तिरंगे को अपनाया। इस ध्वज के तले देश में आजादी के परवानों ने अंग्रेजों को खदेड़ा और अंत में 14 अगस्त को इसी झंडे को देश के झंडे का सम्मान प्राप्त हुआ।
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इसे बनाने वाले पिंगली वैंकेया भारत की आजादी की लड़ाई के भी नायकों में शामिल थे। मछलीपट्टनम के हिंदू हाई स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वो कोलंबो गए जहां 19 साल की उम्र अपना नाम अफ्रीका के बोर युद्ध में हिस्सा लेने के लिए रजिस्टर करवाया। अफ्रीका में उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई और वहां से उनका नाता लंबे समय तक बना रहा।
पिंगली ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा खेती से जुड़े रिसर्च में भी लगाया और इस दौरान उन्होंने कंबोडिया कॉटन की खोज की इस खोज के बाद उनका नाम पट्टी (कॉटन/रूई) वेंकैया पड़ गया। हालांकि, उन्होंने देश को झंडा दिया और आजादी की लड़ाई में शामिल रहे लेकिन उन्होंने अपना जीवन गरीबी में गुजार दिया। 1963 में जब पिंगली का देहान्त हुआ तब भी पूरे परिवार की हालत ऐसी थी कि उन्हें एक-दूसरे के ठिकानों तक का पता नहीं था।
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