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यहां पर हिंदुओं को जलाया नहीं दफनाया जाता है, कहीं और नहीं हमारे देश में ही है ये जगह

सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा लेकिन ये सच्चाई है कि हिंदुस्तान में ही एक ऐसी जगह है जहां पर हिंदुओं को जलाया नहीं दफनाया जाता है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2016 11:03 AM (IST)

हिंदू धर्म में मरने के बाद शव को जलाने की परम्परा है और बचपन से आप ऐसा ही देखते आ रहे हैं, लेकिन हम आपको एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहै हैं, जहां हिंदुओं के शव को जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया जाता है। यह शहर विदेश में नहीं बल्कि भारत के उत्तर प्रदेश में है।

यहां यह परम्परा 86 वर्षों से चली आ रही है। यह कब्रिस्तान कानपुर के कोकाकोला चौराहा रेलवे क्रॉसिंग के बगल में है और अच्युतानंद महाराज कब्रिस्तान के नाम से जाना जाता है। तो आइए इस घटना से जुड़ी सच्चाई से हम आपको रुबरु करवाते हैं--

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इस कहानी की शुरुआत कानपुर में स्वामी अच्युतानंद के आने से शुरु होती है। 1930 में स्वामी अच्युतानंद एक दलित वर्ग के बच्चे अंतिम संस्कार में शामिल होने भैरव घाट पर गए थे। बच्चे को अंतिम संस्कार करने की एवज में पण्डे बड़ी दक्षिणा मांग रहे थे। वह परिवार गरीब था, जिस वजह से वे ज्यादा दक्षिणा नहीं दे पा रहे थे। इस पर भी उन पण्डों को दया नहीं आई।

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यह देख स्वामी अच्युतानंद ने उनको समझाना चाहा पर पण्डे उन की बात सुनकर भी टस से मस नहीं हुए। इससे स्वामी अच्युतानंद नाराज हो गए और उन्होंने खुद ही विधि विधान से उस दलित बच्चे का अंतिम संस्कार करवा दिया और बच्चे की बॉडी को गंगा में प्रवाहित कर दिया।

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स्वामी अच्युतानंद ने दलित वर्ग के बच्चों के लिए शहर में कब्रिस्तान बनाने के लिए अंग्रेज अफसरों के सामने अपनी बात रखी। अंग्रेज अफसरों ने उनको इस काम के लिए जमीन दे दी। तभी से इस कब्रिस्तान में हिंदुओं को दफनाया जा रहा है। 86 साल पहले कानपुर में हिन्दुओं का एक कब्रिस्तान था वही अब ये बढ़ कर 7 हो चुके हैं।

1932 में अच्युतानंद जी की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शारीर को भी इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया। बीते सालों में इस कब्रिस्तान में सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि हर उम्र और जाति के शवों को दफनाया जाता है।

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