2,550 साल बाद इस जगह पर हुआ चमत्कार, जलती रोशनी देख रोने लगे लोग
अद्भुत नजारा था वो...किसी चमत्कार से कम नहीं...2550 साल का इंताजार खत्म हुआ और ऐसा नजारा देख रोने लगे लोग...ये चमत्कार भगवान ने नहीं एक इंसान ने किया।
खुद महसूस करके देखिए जिस चीज के बारे में आपने सुना तो हो लेकिन उसे देखा ना हो और वो चीज आपको मिल जाए तो खुशी का अलग ही एहसास होता है। बचपन में जब हमारे घर में टीवी नहीं होता था तो पड़ोस वाले अंकल-आंटी के यहां टीवी देखने जाते थे। स्कूल से वापस आने के बाद घर में जैसे ही घुसे पता चला कि हमारे घर में भी टीवी आ गया वो भी रंगीन खुशी के मारे उछल पड़े। स्कूल का बैग कंधे पर ही उसे कौन उतारे, बस टीवी का रिमोट हाथ में मिल गया लगा कि दुनिया मिल गई। ये लाइनें इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा हुआ होगा।
जरा सोच के देखो...जहां के लोगों ने पिछले 2550 सालों में बिजली ना देखी हो और उनको ये सौगात में मिल जाए तो क्या एहसास रहा होगा। आप भी सोच रहे होंगे कि किस जमाने की बात करा हूं मैं लेकिन क्या करें ये हमारे देश का एक सच है, देश के कई गांव ऐसे हैं जहां पर बिजली का नामोनिशान नहीं है। खैर...वो सब छोड़िए कुछ अच्छा हुआ है उसकी बात करते हैं।
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चंडीगढ़ के पारस लूंबा के प्रयास से लगाए गए सोलर माइक्रो-ग्रिड्स से लेह-लद्दाख की जंस्कार वैली में 2550 साल पुरानी 'फुकतल गॉन्पा मॉनेस्ट्री' रोशन हुई। यह मॉनेस्ट्री जब पहली बार रोशन हुई, तो खुशी के मारे लोगों के आंसू नहीं थम रहे थे। पहली बार एलईडी बल्ब देखकर कुछ लोग रोने लगे तो कुछ पूजा करने लगे। वहीं, कुछ ने पूछा कि इसमें तेल कहां से आ रहा है। इन लोगों के लिए चमत्कार से कम नहीं थी ये रोशनी।
यहां के लोगों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। वह रोशनी के हर पल का एहसास लेना चाहते थे। शायद इसलिए जब मॉनेस्ट्री रोशनी से जगमगा उठी तो पहले दिन लोग लाइट जलाकर सोए, क्योंकि वह इस बात से डर रहे थे कि क्या पता लाइट बंद कर दी तो दोबारा जले-न-जले।
ऐसा हो भी क्यों न। उनके लिए यह मौका हजारों साल के बाद जो आया था। अब तक जो लोग रात को दीये जलाकर रखते थे। आज वह एक स्विच से लाइट को ऑन-ऑफ करते हैं। कुछ दिन पहले ही ग्लोबल हिमालयन एक्सपीडिशन (जीएचई) ने यहां सोलर माइक्रो-ग्रिड्स लगाए हैं। एलईडी लाइट्स लगने के बाद वहां लोगों ने जमकर सेलिब्रेशन की। जीएचई की स्थापना अक्षय ऊर्जा और सतत ग्रामीण विकास(सस्टेनेबल रूरल डेवलपमेंट) के मकसद से की गई थी।
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पारस लूंबा ग्लोबल हिमालयन एक्सपीडिशन (जीएचई) के संस्थापक हैं। उन्होंने बताया कि इस मॉनेस्ट्री को रोशन करने का एक्सपीडिशन 12 दिन का था। पर बर्फ से सड़के ब्लॉक होने के कारण मॉनेस्ट्री तक पहुंचने के लिए उन्हें सात दिन लगे। गाड़ी के अलावा साइकलिंग से और ट्रेकिंग कर यहां तक पहुंचे। जब हम 6वें दिन गांव छाऊ पहुंचे तो लोगों ने हमारा स्वागत किया।
पारस ने बताया कि मॉनेस्ट्री पहुंचकर उन्होंने आधे दिन तो मॉनेस्ट्री का मुआयना किया। इस मॉनेस्ट्री में 170 कमरे हैं, यहां हमने डेढ़ दिन में आठ माइक्रो-ग्रिड लगाए।
वाकई में ये एक सराहनीय कदम है।
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