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बंटाधार: कभी इस कंपनी की MD रहीं सोनिया गांधी, दिया जीरो आउटपुट

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जहां भी काम किया वहां का आउटपुट जीरो ही रहा है। वो चाहे पार्टी को लेकर बात हो या किसी कंपनी को लेकर, आज हम आपको एक ऐसी कंपनी के बारे में बताएंगे।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Tue, 07 Jun 2016 08:03 PM (IST)
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कांग्रेस की कमान संभालने वाली सोनिया गांधी के जीवन में एक समय ऐसा भी था जब वो बिजनेस की दुनिया से जुड़ी थी। वह मश्हूर कार कंपनी मारुती की एमडी थी जिसको तमाम विवादों के बाद 1980 में नेशनलाइस्ड कंपनी का दर्जा दे दिया गया था। बता दें कि जब तक सोनिया गांधी इस कंपनी की एमडी थी तब तक कंपनी ने एक भी कार नहीं बनाई थी।

खूब थी सैलरी
16 नवंबर, 1970 में मारुति टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (एमटीएसपीएल) की शुरुआत हुई थी और साल 1973 में एक फॉमर्ल एग्रीमेंट के तहत सोनिया गांधी को संजय गांधी के साथ मारुति लिमिटेड का एमडी बना दिया गया था। इस कंपनी का उद्देश्य पूरी तरह से देसी कार बनाने के लिए डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और असेंबलिंग से संबंधित टेक्निकल सर्विस उपलब्ध कराना था। इस एग्रीमेंट में सोनिया गांधी और संजय गांधी के लिए पांच साल तक 2 हजार रुपए प्रति महीने सैलरी तय की गई थी।

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हुआ करार पर नहीं बनी कोई कार
1973 में एमटीएसपीएल और मारुति लिमिटेड के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था, जिसके अंतरगत एमटीएसपीएल को भारत में पूरी तरह देसी कार बनाने के लिए डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और असेंबलिंग से जुड़ी टेक्नोलॉजी सप्लाई करनी थी। इसके बाद साल 1975 में इन दोनों और मारुती की सहायक कंपनी मारुती हैवी प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक और अग्रीमेंट हुआ जिसके तहत एमटीएसपीएल को रोड रोलर बनाने के लिए टेक्नोलॉजिकल सर्विसेज देनी थी। हालांकि इनके द्वारा बनाई गई ये देसी कार 30 हजार किलोमीटर तक चलाने के लिए होने वाला वीआरडीई टेस्ट कभी पास ही नहीं कर पाई। कार की जांच होने पर पता चला कि इसमें वाइब्रेशन से लेकर ब्रेक फेल होने और स्टीयरिंग से जुड़ी ऐसी कई समस्या है जो सुलझ नहीं सकती।

बदल दिए नियम
मारुती कंपनी को सरकार हद से ज्यादा संरक्षण देने लगी थी। सरकार ने मारुति को मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस देने के लिए वीआरडीई टेस्ट की अनिवार्यता को ही खत्म कर दिया था, जिसके बाद मारुति को तुरन्त 50 हजार कारों की मैन्युफैक्चरिंग के लिए इंडस्ट्रियल लाइसेंस मिल गया था। सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना भी हुई थी जिसको रोकने के लिए उस वक्त की पीएम रहीं इंदिरा गांधी को काफी सफाई भी देनी पड़ी थी।

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नहीं बन पाई कोई कार
1970 में स्थापित हुई मारुती कार 1977 तक एक भी कार नहीं बना पाई थी। 1975 से लेकर 77 के बीच लगी इमेरजेंसी ने तो कंपनी के हालात और ज्यादा बिगाड़ दिए थे। यही नहीं हालात तब और बिगड़ गए जब 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आ गई और पार्टी ने जस्टिस एपी गुप्ता की अगुवाई में कंपनी की जांच के आदेश दे दिए थे। उस वक्त तो ये कंपनी बंद होने के कगार पर आ गई थी क्योंकि आयोग ने केंद्र सरकार को बहुत ही ज्यादा गंभीर रिपोर्ट पेश की थी।

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कंपनी से टूटा सोनिया का रिश्ता, बनी पहली कार
1980 में जब कांग्रेस सकार एक बार फिर सत्ता में आई तो सोनिया गांधी फिर से प्रयास करने लग गई की वो मारुती के लिए एक अच्छा मार्केट तैयार कर सके। इसके लिए सरकार ने मारुती उद्योग लिमिटेड नाम की एक नई कंपनी खोली और उसको नेशनलाइस्ड भी कर दिया। इसके साथ ही सोनिया गांधी कंपनी की एमडी नहीं रहीं और उसके साथ उनका रिश्ता खत्म हो गया। सरकार के तमाम प्रयासों के बाद साल 1983 में मारुती की पहली कार मारुती 800 मार्केट में आई। 1970 में स्थापित हुई ये कंपनी अपनी पहली कार 1983 में बना पाई औ मार्केट में भी ला सकी।

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