हिंदुस्तान को आजाद हुए इतने साल हो गए लेकिन करोड़ों देशवासी आज भी हैं 'गुलाम'
हमारे देश को आजाद हुए इतने साल हो गए लेकिन इसके बाद भी आज की करोड़ों जनसंख्या गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई है। पढ़ें इस रिपोर्ट को...
विश्व का सबसे लोकतांत्रिक देश का नाम हिन्दुस्तान है। यह हमारा देश है, जिसे हम प्यार से 'भारत मां' कहते हैं। लेकिन दुख की बात ये है कि 'भारत मां' की कई संतानें अभी भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई है। यहां रह रहे सभी नागरिकों को 6 मूल अधिकार दिए गए हैं, जिसका मर्म यह है कि वो अपनी इच्छा से कहीं भी रह सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं और कोई भी धर्म अपना सकते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि देश में रह रहे कई लोगों को इन अधिकारों के बारे में जानकारी नही हैं।
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में आधुनिक युग के गुलामों की तरह जीने वालों की तादाद करोड़ों में है, जिनमें एक-तिहाई से ज्यादा आधुनिक गुलाम तो केवल भारत में ही हैं। इस सर्वे में कई और महत्वपूर्ण जानकारियां हैं, जिनके बारे में जानकर आप और हैरान हो जाएंगे। दुनिया में आज भी करीब 4.56 करोड़ लोग गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हैं। एक-तिहाई से ज्यादा आधुनिक गुलाम तो केवल भारत में ही हैं।
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के अनुसार दुनिया भर में आधुनिक युग के गुलामों की तरह जीने वालों की तादाद करोड़ों में है। इनसे बिना पैसे दिये काम करवाया जाता है, सेक्सबंधक के रूप में बेचा जाता है, अपने आदेशों पर चलने वाले दास की तरह रखा जाता है और कई बार बाल सैनिकों के रूप में युद्ध में झोंक दिया जाता है।
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इस तरह की दासता झेल रहे सबसे ज्यादा लोग भारत में रहते हैं। इनकी संख्या 1.83 करोड़ आंकी गई है। ऑस्ट्रेलिया स्थित मानवाधिकार संगठन वॉक फ्री फाउंडेशन ने बताया है कि भारतीय घरों में घरेलू नौकर, बंधुआ मजदूरों, भिखारियों और सेक्स वर्करों के रूप में इन्हें मजबूरी और गुलामी का जीवन जीने पर मजबूर किया जाता है।
गुलामों की संख्या के मामले में भारत के बाद चीन का नाम आता है। चीन में 34 लाख, पाकिस्तान में करीब 21 लाख लोगों को गुलाम बना कर रखा गया है। पिछले साल के मुकाबले दुनिया भर में इनकी संख्या बढ़ी है और 2014 के 3.58 करोड़ से 2015 में 4.56 करोड़ हो गई है।
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वॉक फ्री फाउंडेशन के अध्यक्ष एंड्रयू फॉरेस्ट ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और सभी सरकारों से इन गुलामों की मदद करने का आह्वान किया है। इस फाउंडेशन की स्थापना खनन अरबपति और समाजसेवी फॉरेस्ट ने 2012 में की थी।
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