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शहादत दिवसः रानी लक्ष्मीबाई से जुड़े इन फसानों को दुनिया मानती है हकीकत

रानी लक्ष्मीबाई के बारे में आपने बहुत सी कहानियां पढ़ीं होंगी लेकिन हम जो आपको बताने जा रहे हैं वो आपकी उन कहानियों से बिल्कुल अलग है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Sat, 18 Jun 2016 07:46 PM (IST)
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देश की महानतम वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की शहादत का दिवस 18 जून को है। लक्ष्मी बाई के बारे में ऐसे कई फैक्ट्स हैं जिन्हें आम लोग सच मानते हैं, लेकिन इतिहासकारों की मानें तो वे असलियत में झूठ हैं। जानिए किस उम्र में हुई थी लक्ष्मी बाई की शादी, इस पर भी बोला गया झूठ...

लक्ष्मी बाई की बर्थ डेट 19 नवंबर 1835 को मानी जाती है। कहा जाता है कि अंग्रेज़ों से लड़ते हुए 23 साल की उम्र में वो शहीद हो गई थीं। कई इतिहासकार इसे मिथक मानते हैं। एक मशहूर इतिहासकार के मुताबिक 1835 में रानी के जन्म का दावा गलत है। झांसी के राजा गंगाधर राव से रानी का विवाह 1842 में हुआ था। अगर रानी का जन्म 1835 में हुआ था तो क्या विवाह के टाइम वे सिर्फ 7 साल की थीं?

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रानी ने शादी से पहले ही तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख ली थी। इतनी कम उम्र में पहले ही तलवार चलाना और घुड़सवारी करना मुश्किल लगता है।

आखिर सच क्या है?
इतिहासकार के मुताबिक रानी का जन्म 19 नवम्बर, 1827 को हुआ था और उनके विवाह के समय वो 15 साल की थीं। शहादत के समय उनकी उम्र लगभग 31 साल थी।

एक सच ये भी
इतिहासकारों के मुताबिक युद्ध के बीच रानी ने जब अपने दत्तक पुत्र को असुरक्षित समझा, तो उसे अपने वफादारों को सौंप दिया था। रानी की शहादत के बाद उनके वफादार दत्तक पुत्र को लेकर बुंदलेखंड के जंगलों भटकते छुपते रहे। इस बीच कई राजाओं ने उनकी मदद की।

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रानी के पुराने सेवक गणपति राव ने ही दामोदर को लालच में आकर अंग्रेज़ों से गिरफ्तार करा दिया। पॉलिटिकल एजेंट मेजर प्लीक ने दामोदर को 5 मई 1860 को इंदौर भेजा था। यहां उनका पालन पोषण मुंशी पंडित धर्मनारायण कश्मीरी ने किया। अंग्रेजों ने 25 लाख सालाना रियासत के उत्तराधिकारी दामोदर के लिए सिर्फ 150 रुपए महीने की पेंशन बांधी थी।

घोड़े से भागने और नाले से कूदने की कोशिश वाला सीन ही नहीं है। रानी ग्वालियर में लड़ रही थीं। इसी दौरान मुंदर नाम की साथी को अंग्रेजों ने घेर लिया। मुंदर को घेरने वाले अंग्रेजों को रानी ने मार दिया था। इसी दौरान अचानक करीब आधा दर्जन अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया।

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अंग्रेजों ने अचानक हमला कर रानी के सिर पर तलवार से वार किया। उस हमले में रानी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। रानी को घायल अवस्था में देख वहां से रानी के वफादार गुल मोहम्मद और राम चन्द्र राव देशमुख रानी को लेकर भाग गए। रानी खून से लथपथ थी। घोड़ा भी उनके खून से पूरा लथपथ था। रानी ने उसी दिन दुनिया छोड़ दी।

इसलिए पैदा होता है शक
इतिहासकारों में इस घटना को लेकर भी मतभेद हैं। रानी के समय के विष्णु गोडसे नामक एक यात्री ने अपनी किताब मांझा 'प्रवास' में रानी के जाने के दिन की घटना का जिक्र किया है। अमृत लाल नागर ने इस किताब का अनुवाद किया था। विष्णु गोडसे के अनुसार, जिस स्थान को रानी के कूदने का स्थान बताया जाता है, उस जगह से 135 डिग्री का ढाल है। किले की वह दीवार जहां से ढाल शुरू होती है, वह 5-6 फ़ीट ऊंची और 3 फीट चौड़ी है।ऐसे में घोड़ा रानी और उनके दत्तक पुत्र को लेकर कैसे कूद सकता था?

क्या है सच
मांझा प्रवास के मुताबिक किले में उसी दीवार की ओर स्थित खांडेराव गेट पर जनरल ह्यूग रोज अंगरेज़ सैनिक लेकर खड़ा था। अगर रानी कूदती तो इसी स्थान से गुजरती और अंग्रेज़ों के रहते यह संभव नहीं था। गोडसे के अनुसार महारानी बकायदा किले के पीछे कोतवाली की ओर गेट से निकलीं। उनके साथ उनके अंगरक्षक, परिवार के लोग और दरबारी थे। जैसे ही रानी नझाई बाज़ार से निकलीं, वैसे ही अंग्रेज़ों ने पीछा किया। गोली चलने पर रानी ने भी पिस्टल चलाई और आगे बढ़ गईं। वह भांडरी गेट पर पहुंची। यहां भी अंग्रेज़ सिपाही थे। वहां अंग्रेज़ों ने कहा - हू इज देयर? इस पर रानी ने चालाकी से खुद को अंग्रेज़ों का मददगार बता दिया और आगे बढ़ गईं।पता चलने पर सिपाही उनके पीछे लग गए। लड़ाई होती रही। रानी भांडेर में कुछ देर रुकी। पीछा करते हुए भांडेर पहुंचे लेफ्टिनेंट डाबर ने लिखा कि उन्हें एक स्थान पर बचा हुआ भोजन बिखरे मिले।

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खिड़की से उतरीं थी रानी
ओलिवर ट्यूडर बर्न नामक अंगरेज ने अपनी डायरी में लिखा था, "किले की खिड़की से खटोले पर बैठाकर रानी को उतारा गया था।" हालांकि किले से खांडेराव गेट की तरफ कोई खिड़की ही नहीं है। इतिहासकार ओमशंकर असर के मुताबिक संभवतः इसी कहानी से रानी के कूदने की कहानी बन गई।

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