घड़ियाली आंसू बहाने की कहावत तो आपने सुनी होगी लेकिन इसका राज नहीं पता होगा!
घड़ियाली आंसू, मगरमच्छ के आंसू ऐसे शब्द आपने सुने तो होंगे ही...इनको लेकर कहावतें भी मशहूर हैं कि घड़ियाली आंसू ना बहाओ...लेकिन इसकी सच्चाई क्या ये नहीं पता होगी।
आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि घड़ियाली आंसू ना बहाओ। कई लोग ये भी कहते हैं कि मगरमच्छ के आंसू ना बहाओ। इसका मतलब भी आप जानते ही होंगे अगर नहीं जानते तो हम आपको बता देते हैं कि जब कोई सिर्फ दिखावे के लिए रोता है उसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं होता सिर्फ नौटंकी कर रहा होता है तो हम उसे कहते हैं भइया! घड़ियाली आंसू ना बहाओ।
लेकिन इस झूठी हमदर्दी का घड़ियालों से क्या संबंध? दरअसल ये कहावत अभी से नहीं 14वीं शताब्दी से प्रचलित है। हम अपने बुजुर्गों से भी सुनते आए हैं इसके पीछे भी एक तर्क है। कहा जाता है कि एक जानवर था जो इंसानी शिकार को निगलते समय आंसू बहाता था। तभी से घड़ियालों को इसका रूपक माना जाने लगा।
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2007 में University of Florida के Zoologist Kent Vliet ने भी सिद्ध किया था कि वाकई कुछ जानवर खाते हुए सुबकते हैं। उन्होंने 7 में से 5 घड़ियालों को शिकार निगलने के बाद रोते हुए भी फिल्माया था।
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Vliet की Theory के अनुसार जब इन जानवरों के जबड़े खाते हुए आपस में टकराते हैं, तब एक शारीरिक प्रक्रिया कि वजह से इनकी आंखों से पानी निकलता है। डॉक्टर इस प्रक्रिया को “Crocodile Tears” कहते हैं। तो इस तरह बनी थी ये कहावत जो आज तक प्रचलित है, जिसे शेक्सपियर तक ने अपनी कहानियों में इस्तेमाल किया है।
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