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Weather Forecast: जानिए आखिरकार उत्तर भारत में इस कदर पड़ रही ठंड का कारण क्या है?

Weather Forecast सवाल है आखिरकार दिल्ली में इस कदर पड़ रही ठंड का कारण क्या है? इसकी वजह है वेस्टर्न डिस्टर्बेंस यानी पश्चिमी विक्षोभ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 30 Dec 2019 03:27 PM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 08:56 AM (IST)
Weather Forecast: जानिए आखिरकार उत्तर भारत में इस कदर पड़ रही ठंड का कारण क्या है?

[महेश पलावत]। Weather Forecast: पिछले करीब एक पखवाड़े से दिल्ली समेत उत्तर भारत के अधिकांश इलाकों में सर्दी का सितम जारी है। दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के अनेक इलाकों में तापमान दो डिग्री से भी नीचे तक जा चुका है। उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में तो ठंड कहर बरपा रही ही है।

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वर्ष 1901 के बाद से 2019 का दिसंबर माह सबसे ज्यादा ठंडा है। सवाल है आखिरकार दिल्ली में इस कदर पड़ रही ठंड का कारण क्या है? इसकी वजह है वेस्टर्न डिस्टर्बेंस यानी पश्चिमी विक्षोभ। 20 दिसंबर को वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आया था, अब इसके बाद यह 30 या 31 दिसंबर को आएगा।

वर्ष 1997 के बाद से यह सबसे ज्यादा सर्द मौसम

यह जो 10 दिनों का अंतराल है, इस दौरान लगातार उत्तर दिशा से बर्फीली हवाएं आ रही हैं। पहाड़ों से ये जो सर्द हवाएं आ रही हैं, वास्तव में दिल्ली सहित उत्तर भारत और मध्य भारत से लेकर तेलंगाना तक पड़ रही कड़ाके की सर्दी का मुख्य कारण है। वर्ष 1997 के बाद से यह सबसे ज्यादा सर्द मौसम है, इसके पीछे कारण यही वेस्टर्न डिस्टर्बेंस में आया लंबा गैप है। तात्कालिक रूप से इसका संबंध ग्लोबल वार्मिंग या प्रदूषण आदि से नहीं है। हां, कड़ाके की सर्दी के कारण हवा की गति में जो कमी आई है, उसके कारण पहले से मौजूद प्रदूषण परेशान कर रहा है।

वेस्टर्न डिस्टर्बेंस में बड़ा अंतराल

सर्दी के मौसम में जब भी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस में बड़ा अंतराल पैदा होता है तो उस दौरान चलने वाली ठंडी हवाओं के कारण तापमान में गिरावट होती रहती है, नतीजन ठंड बढ़ जाती है। दिल्ली में इस समय जो ठंड पड़ रही है, उसमें 31 दिसंबर तक कोई कमी नहीं आती दिख रही। 31 दिसंबर से दो दिनों तक दिल्ली में बारिश की संभावना है। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं हरियाणा, पंजाब, यूपी में बारिश हो सकती है। इससे तापमान थोड़ा बढ़ेगा, लेकिन तीन जनवरी के बाद चूंकि स्नो फॉल हो चुका होगा इसलिए एक बार फिर से तापमान में गिरावट शुरू होगी, जो कई दिनों तक जारी रहेगी यानी दिल्ली एक बार फिर कड़ाके की ठंड की चपेट में आ जाएगा।

ठंडी के मौसम के लंबे होने की आशंका

जहां तक इस कड़ाके की ठंड से होने वाले नुकसान की बात है तो इससे कोई खास नुकसान नहीं हो रहा, बल्कि इससे फायदा ही होता है। खासकर गेहूं की फसल के लिए यह कड़ाके की ठंड काफी फायदेमंद होती है। मगर इस ठंड के चलते जो फॉग है उससे एक्सीडेंट की आशंकाएं काफी बढ़ जाती हैं, क्योंकि फॉग के कारण दृश्यता घट जाती है। हां, इस सर्दी का एक नुकसान इसके चलते पड़ने वाला पाला है। पाला से फसलें बरबाद होती हैं। इन दिनों इस कड़ाके की ठंड के कारण मध्य प्रदेश और राजस्थान में काफी ज्यादा पाला गिर रहा है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है। जहां तक इस साल ठंडी के मौसम के लंबे होने की आशंका की बात है तो उसे इस समय की ठंड से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। इसलिए तात्कालिक रूप से यह कह पाना संभव नहीं है कि क्या इस साल हाल के वर्षों के मुकाबले ठंड ज्यादा दिनों तक रहेगी? हां, अगर बर्फबारी ज्यादा होती है या लंबे समय तक जारी रहती है तो निश्चित रूप से ठंड का समय अनुमान से ज्यादा लंबा हो सकता है।

बर्फ जब जम जाती है और हवाएं लगातार चलती हैं

वैसे इस साल दिसंबर के महीने में 1997 के बाद से जो बहुत ज्यादा ठंड पड़ी है, उसका एक बड़ा कारण यह भी है कि आमतौर पर बर्फबारी दिसंबर के पहले नहीं होती है। लेकिन इस वर्ष नवंबर में ही, बल्कि कहना चाहिए नवंबर में भी बिल्कुल शुरू में पहाड़ों में जो जबरदस्त बर्फबारी हुई थी, उससे तभी यह लग रहा था कि इस साल ठंड ज्यादा पड़ेगी। जब भी नवंबर माह में बर्फबारी ज्यादा होती है तो दिसंबर ज्यादा ठंडा हो जाता है। क्योंकि बर्फ जब जम जाती है और हवाएं लगातार चलती हैं तो तापमान गिर जाता है। इस साल वास्तव में यही हुआ है। जब दिसंबर के पहले काफी ज्यादा बर्फ गिरती है तो पूरे उत्तर भारत का तापमान गिर जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के लिए जो ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार

जहां तक इस बर्फबारी से पिघले हुए ग्लेशियरों की भरपाई की बात है तो ऐसा अनुमान लगाना सही नहीं होगा। हां, इस तरह की बर्फबारी से इतना जरूर होता है कि इस तरह की बर्फबारी से कुछ महीनों के लिए ग्लेशियरों के पिघलने में कमी आ जाती है। चूंकि धरती का समग्रता में तापमान बढ़ रहा है, इसलिए इस तरह की बर्फबारी से ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला बंद नहीं होता। ग्लोबल वार्मिंग के लिए जो ग्रीन हाउस गैसें तथा और कई वजहें जिम्मेदार हैं, जब तक उन पर लगाम नहीं लगता, धरती के बढ़ते हुए तापमान में कमी नहीं होगी और जब तक धरती के तापमान में कमी नहीं होगी, तब तक ग्लेशियरों का पिघलना भी बंद नहीं होगा। इसलिए इस बर्फबारी से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि यह पिघले हुए ग्लेशियरों की भरपाई कर सकती है। हां, इसके चलते कुछ महीने तक अवश्य ग्लेशियरों के पिघलने में कमी आ सकती है। लेकिन स्थायी रूप से यह कमी तभी होगी, जब धरती के तापमान में कमी होगी, जो कि लगातार बढ़ ही रहा है।

(ईआरसी)

[मौसम वैज्ञानिक,स्काईमेट]

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