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पिता के सवर्ण होने से तय नहीं होगी बच्चे की जाति

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपत्ती के बच्चों के आरक्षण को लेकर अहम व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति और सवर्ण के बीच हुए अंतरजातीय विवाह से उत्पन्न संतान की जाति का निर्धारण उसके पालनपोषण की परिस्थितियों व हालात को देखकर किया जाना चाहिए।

By Edited By: Updated: Thu, 19 Jan 2012 06:37 PM (IST)
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपत्ती के बच्चों के आरक्षण को लेकर अहम व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति और सवर्ण के बीच हुए अंतरजातीय विवाह से उत्पन्न संतान की जाति का निर्धारण उसके पालनपोषण की परिस्थितियों व हालात को देखकर किया जाना चाहिए। इन पर गौर किए बगैर सिर्फ पिता के सवर्ण जाति का होने के आधार पर संतान की जाति तय नहीं हो सकती।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों में यही कहता आया था कि सवर्ण पिता और एससी-एसटी मां के विवाह से उत्पन्न संतान पिता की जाति की मानी जाएगी। उसे एससी-एसटी वर्ग को वंचित वर्ग के रूप में मिलने वाले लाभ नहीं मिलेंगे।

लेकिन, न्यायमूर्ति आफताब आलम व रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने गुजरात के रमेशभाई दभाई नाइक की याचिका स्वीकार करते हुए नई व्यवस्था दी। सुप्रीम कोर्ट ने रमेशभाई का एसटी प्रमाण पत्र निरस्त करने का गुजरात हाई कोर्ट का फैसला खारिज कर दिया।

पीठ ने स्क्रूटनिंग कमेटी को मामला वापस भेज दिया है और सबूतों को देखने के बाद नए सिरे से निर्णय लेने को कहा है। जाति स्क्रूटनी कमेटी और गुजरात हाई कोर्ट ने क्षत्रिय पिता की संतान होने के आधार पर नाइक का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया था।

इससे उसका राशन की दुकान का आवंटन भी निरस्त हो गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, एसटी और गैर एसटी वर्ग के बीच विवाह में जिसमें पुरुष ऊंची जाति का हो और महिला एसटी वर्ग की, वहां संतान की जाति का निर्धारण तथ्यपरक मसला होता है और वह हर मामले में पेश सबूतों के आधार पर तय होना चाहिए।

इससे विवाह से उत्पन्न संतान की जाति तय करने में पालनपोषण की परिस्थितियों और हालात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे अंतरजातीय विवाह में संतान के पिता की जाति का होने का अनुमान लगाया जाता है। जब पिता सवर्ण जाति का हो तो अनुमान और मजबूत हो जाता है।

लेकिन ये अनुमान न तो अंतिम है और न ही ऐसा जिसे बदला न जा सके। इस विवाह से उत्पन्न संतान को ऐसे सबूत पेश करने का अधिकार होगा जो यह साबित करते हों कि उसे सवर्ण जाति के पिता की संतान होने का जीवन में कोई फायदा नहीं मिला बल्कि इसके विपरीत मां के एसटी वर्ग के होने के नुकसान और शोषण उसे झेलने पड़े।

उसे हमेशा उसकी मां के समुदाय का समझा गया। अन्य लोगों ने भी उसे मां के समुदाय का माना। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता का जाति प्रमाणपत्र बिना किसी सबूतों को देखे छीन लिया गया, जो ठीक नहीं है।

नाइक की दलील थी कि उसका पालनपोषण माता के समुदाय नाइक जाति में हुआ जो गुजरात में एसटी वर्ग में आती है। उसकी शादी भी नाइक जाति की लड़की से ही हुई, इसलिए उसे एसटी वर्ग का माना जाना चाहिए।

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