सुबह लोटा लेकर दौड़ता है गांव, और दे दिया खुले में शौचमुक्त होने का इनाम
कैथल जिला प्रशासन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छता अभियान मुहिम को पलीता लगा दिया। यहां पांच गांवों को खुले में शौचमुक्त घोषित किया गया, जबकि हकीकत कुछ और ही है। पढ़ें
By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sat, 20 Aug 2016 01:06 PM (IST)
जागरण संवाददाता, कैथल। स्वतंत्रता दिवस समारोह में जिला प्रशासन ने पांच गांवों को शौचमुक्त ग्राम पंचायत (ओडीएफ) करार देते हुए पुरस्कार थमा दिए। जबकि हकीकत में इन गांवों में आज भी ज्यादातर लोग न सिर्फ खुले में शौच जाते हैं, बल्कि दर्जनों घरों में शौचालय ही नहीं बने हैं। कई घर तो ऐसे भी पाए गए जिनमें शौचालय तो बने, लेकिन उनमें लोगों ने उपले और लकड़ियां भर रखी हैं।
ग्रामीण अंचल में लोगों को खुले में शौच से मुक्त करवाने के नाम पर यहां जिला प्रशासन स्वयं की पीठ थपथपा रहा है। इन गांवों में एक-एक लाख रुपये पुरस्कार दिया गया है। इनमें एक गांव देवीगढ़ भी शामिल रहा। हालात यह है कि सुबह-सुबह आधे से ज्यादा गांव लौटा लेकर दौड़ रहा होता है।पढ़ें : डीजीपी और सरकार को नोटिस, कुरुक्षेत्र पुलिस भर्ती में घोटाला !
एनजीओ ने किया दौरा तो खुला राज क्लीन कैथल-ग्रीन कैथल संस्था के प्रधान एडवोकेट पुनीत चौधरी ने एक टीम के साथ जब गांव का दौरा किया तो प्रशासन के फर्जीवाड़े की पोल खुलते देर नहीं लगी। इन गांवों का दौरा किया तो देखा कि सुबह के समय अब भी ग्रामवासी हाथ में पानी की बोतल अथवा लोटा लेकर शौच जा रहे थे।
पूछने पर कई लोगों ने बताया कि उनका गांव अभी तक पूर्ण रूप से खुले से शौच मुक्त नहीं है। अनेकों घरों में तो शौचालय भी नहीं बने हैं। इस गांव के चौकीदार नाभा के घर में भी अभी तक शौचालय नहीं बना। इसी प्रकार रामकुमार, शमशेर, शीशपाल, रमेश आदि के घर भी बिना शौचालय के हैं। नरेश, धीरा व बीरा के घर शौचालय तो बनाए गए हैं, लेकिन उन्होंने इनमें कबाड़, लकड़ी, उपले भरे पड़े हैं। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि सार्वजनिक शौचालय न होने से भी बेहद परेशानी हैं।पढ़ें : ओलंपिक में हार से हताश बॉक्सर मनोज ने सिस्टम पर फोड़ा ठीकरा उनकी मांग है कि गांव में काला कुंड, बस अड्डा, कुआ वाला छप्पर के पास, ¨रग बांध हरिजन मोहल्ला के पास सार्वजनिक शौचालय भी बनाए जाए। कमोबेश यही हालात गांव उमेदपुर के भी हैं। वहां भी कई घरों में शौचालय नहीं है। पुरुष ही नहीं महिलाएं भी शौच के लिए खुले में जाती हैं। यह आठ-नौ डेरों को मिलाकर बनाई गई पंचायत है, जिसमें 478 वोट हैं।एडवोकेट पुनीत चौधरी का कहना है कि पंचायती राज एक्ट के अनुसार 500 वोटों से कम के गांव में पंचायत बन ही नहीं सकती। दूसरा जो डेरे हैं, उनमें आपस की दूरी 15 किलोमीटर से ज्यादा हैं। ऐसे में इस पंचायत को खंड ही नहीं जिला स्तर पर भी स्वच्छ और शौचमुक्त पंचायत का पुरस्कार देना सही नहीं हैहरियाणा की ताजा और बड़ी ख़बरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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