70 फीसद पाकिस्तान बन गया है जेहादियों के पनपने की जगह
पाकिस्तान का आज कम से कम 70 फीसदी हिस्सा आतंकियों और जेहादियों के पनपने की जगह बन चुका है।
इस्लामाबाद, [स्पेशल डेस्क]। जिस आतंकवाद को शह देकर लगातार पाकिस्तान अपने पड़ोसी देश भारत को पिछले कई वर्षों से परेशान करने में लगा है, आज वह खुद ऐसी दलदल में फंस चुका है जहां से निकलना शायद उसके लिए नामुमकिन हो गया है। इस बात के गवाह पाकिस्तान सरकार की तरफ से जारी 2014-15 वित्तीय वर्ष के वो आंकड़े हैं, जिनमें कहा गया है कि कम से कम देश का 70 फीसदी हिस्सा आतंकियों और जेहादियों के पनपने की जगह बन चुका है।
60 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे
हालांकि, पाकिस्तान में सुरक्षाबलों की तरफ से लगातार इस ख़तरे से निपटने के लिए रास्ते तलाशे जा रहे हैं। लेकिन, सिविल एडमिनिस्ट्रेशन वहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने में नाकाम रहा, जिसके चलते पिछले एक दशक से लगातार आतंकवाद बढ़ा है। एक अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान में पिछले साल गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करनेवालों की संख्या करीब 60 मिलियन थी। ये आंकड़े वास्तव में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी सरकार के विकास की राह में बड़ी चुनौती हैं।
पिछले साल की यूएनडीपी रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में गरीबी के चलते सभी समुदायों के लिए कई तरह की समस्याएं हैं, जिसमें सिर्फ मौद्रिक रूप से वंचित होना ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और अन्य आधारभूत सुविधाएं शामिल हैं। पाकिस्तान सोशल एंड लिविंग स्टैंडर्ड्स मेजरमेंट (पीएसएलएम) के साल 2014-15 के सर्वे के आंकड़ों के आधार पर मल्टी डाइमेंशनल इंडेक्स (एमपीआई) के मुताबिक, पाकिस्तान की जनसंख्या का 38.8 फीसदी लोग गरीब हैं और औसत रूप से वंचित व्यक्तिगत लोगों की तादाद 50.9 फीसदी है।
पाक का सबसे पिछड़ा इलाका- बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तानसमाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, 2014-15 का वित्तीय आंकड़ा साफ तौर पर यह दर्शाता है कि पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा क्षेत्र हैं- बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान (जिसे नार्दर्न एरिया के नाम से भी जाना जाता है), सिंध का निचला हिस्सा और फाटा। यहां पर कुल आबादी का करीब सत्तर फीसदी से भी ज्यादा लोग गरीब हैं। इसके बाद पाकिस्तान का नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (एनडब्ल्यूएफपी) और पंजाब प्रांत आता है जहां पर गरीबी का स्तर 60 से 70 और 40 से 50 फीसदी के बीच है।
मदरसोॆ में पढ़ाया जा रहा है आतंक का पाठ
पाकिस्तान पर क़रीब से नज़र रखने वाले जानकारों और पर्यवेक्षक इन आंकड़ों का विश्लेषण कर यह मानते हैं कि वहां पर इस तरह की गरीबी के चलते लगातार जेहादी और कट्टरपंथी तत्वों का उदय हो रहा है। उन लोगों का मानना है कि पाकिस्तान में मदरसा ऐसी जगह है जहां से कट्टरपंथी और जेहादी पैदा होते हैं। विदेशी मामलों के जानकार कमर आगा ने Jagran.com से खास बातचीत में बताया कि पाकिस्तान में मॉडर्न एजुकेशन ना के बराबर है। वहां पर मदरसे खूब फलफूल रहे हैं और सऊदी अरब की तरफ से लगातार बड़ी मात्रा में फंडिंग की जा रही है। गरीब माता-पिता अपने बच्चों को इसलिए मदरसों में भेजते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे उर्दू पढ़ना-लिखना सीख जाएं। इसके साथ ही, मदरसे में मुफ्त खाने और रहने की सुविधा भी दी जाती है। इसके चलते लोग अपने बच्चों को वहां पर भेजना पसंद करते हैं।
क्या पाक आर्मी नहीं चाहती आतंकियों से मुक्ति
मदरसा रिवाज़ पिछले हजारों साल पुराना है। लेकिन, पाकिस्तान में पिछले दो तीन दशक के भीतर इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। कमर आगा का कहना है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी और जेहादियों ने उस वक़्त अपनी जड़ें जमानी शुरू की जब जनरल जिया उल हक़ ने धार्मिक आधार पर समर्थन लेकिन कंजर्वेटिव को बढ़ाया और बाद में कट्टरपंथियों को बढ़ाया। उनका मानना है कि पाकिस्तान में आर्मी कभी इस बात को लेकर चिंतित नहीं रही कि वहां से आतंकवादियों को खत्म करना है। पाकिस्तान ने हमेशा आतंकियों का इस्तेमाल भारत और अन्य देशों के खिलाफ किया है। लेकिन, जब तहरीक-ए- तालिबान पाकिस्तान खिलाफ हुआ तो इन्होंने उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई की।
कमर आगा का कहना है पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर ही अमेरिका से अब तक करीब 30 से 35 बिलियन डॉलर की बड़ी रकम ले ली। लेकिन उन पैसों का इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत विरोधी कार्यों में लगे उन आतंकी संगठनों के लिए किया जो उनके लिए इस्तेमाल हो रहे थे।
धर्म के नाम पर बनाया जा रहा कट्टरपंथी
कमर आगा का कहना है कि ऐसे लोग, जिनके पास मॉडर्न एजुकेशन की पहुंच नहीं है वहीं मदरसों का रुख करते हैं। वहां पर उन लोगों को धार्मिक आधार पर कट्टरता का पाठ पढ़ाना बेहद आसान होता है। इतना ही नहीं अफगानिस्तान में लडा़ई के बाद वहां से भागे लाखों शरणार्थी सीमापार आकर पाकिस्तान में शरण ले चुके है। जिसके चलते लगातार वहां पर कट्टरपंथी जेहादियों का विस्तार हो रहा है। साथ ही, सैकड़ों नए मदरसे खोले गए हैं। ऐसे करीब 50 हजार स्कूल पाकिस्तान के अंदर (हकीकत में आंकड़े कभी जारी नहीं किए गए) जिनमें कुछ सौ से लेकर हजारों बच्चे बढ़ रहे हैं वहां पर इस्लाम, वहाबिज्म (सऊदी अरब से उत्पत्ति हुई है) और देवबंद का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
जीडीपी का सिर्फ 2-3 फीसदी शिक्षा पर खर्च
हैरानी की बात ये है पाकिस्तान में कानून सभी को शिक्षा का वादा तो करता है लेकिन सकल घरेलू उत्पाद का वह केवल दो से तीन फीसदी ही सार्वजनिक शिक्षा पर खर्च करता है जो कि दुनिया में बाकी देशों के मुकाबले बेहद कम है (यूएनडीपी डाटा के मुताबिक सिर्फ कांगों उसके पीछे है)। सरकारी स्कूलों की बेहद दयनीय स्थिति बनी हुई है उसकी वजह है वहां पर पर्याप्त शिक्षक, किताब और मूलभूत सुविधाएं जैसे- पानी, बिजली और छतों का ना होना। शिक्षा क्षेत्र में नौकरी सिर्फ राजनीतिक संबंध से ही मुमकिन है। इसलिए, इसमें कोई हैरानी नहीं कि वहां पर शिक्षा का दर केवल 40 फीसदी है।
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