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हिंदुओं के हत्यारे मौलवी को मौत की सजा

बांग्लादेश की एक विशेष अदालत ने उन्नीस सौ इकहत्तर में मुक्ति संग्राम के दौरान छह हिंदुओं की हत्या, कई महिलाओं से दुष्कर्म के आरोपी भगोड़े मौलवी को मौत की सजा सुनाई है। कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी के पूर्व सदस्य अबुल कलाम आजाद के पाकिस्तान में होने की आशंका है।

By Edited By: Updated: Tue, 22 Jan 2013 09:49 AM (IST)
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ढाका। बांग्लादेश की एक विशेष अदालत ने उन्नीस सौ इकहत्तर में मुक्ति संग्राम के दौरान छह हिंदुओं की हत्या, कई महिलाओं से दुष्कर्म के आरोपी भगोड़े मौलवी को मौत की सजा सुनाई है। कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी के पूर्व सदस्य अबुल कलाम आजाद के पाकिस्तान में होने की आशंका है।

तीन सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल-2 के अध्यक्ष न्यायाधीश ओबैदुल हसन ने निजी टेलीविजन चैनल के इस्लामिक कार्यक्रम के सूत्रधार 63 वर्षीय आजाद उर्फ बच्चू रजाकर को उसकी गैरमौजूदगी में फांसी की सजा सुनाई। 1971 में भारत समर्थित बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में उसने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया था। मानवता के खिलाफ अपराध का आरोप लगने के बाद वह पिछले साल अप्रैल में देश से भाग गया था।

अदालत ने कहा कि आजाद के खिलाफ हत्या, सामूहिक नरसंहार, अपहरण, दुष्कर्म और यातनाओं के आठ में से सात आरोप बिना किसी संदेह के साबित हो गए। गवाहों के बयानों से साबित हो गया है कि आरोपी 1971 में पाकिस्तानी सैनिकों की मदद के लिए बनी रजाकर फोर्स का सशस्त्र सदस्य था। रजाकर, पाकिस्तानी सेना की सहायक इकाई थी जिसमें बांग्ला भाषी शामिल थे। इससे पहले अभियोजकों ने कहा था कि आजाद ने खुद ही छह हिंदुओं की गोली मार कर हत्या की थी और फरीदपुर में कई महिलाओं से दुष्कर्म किया था। सुनवाई के दौरान यह आरोप साबित हुए। वकीलों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क्राइम ट्रिब्यूनल एक्ट के तहत आजाद के पास सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील करने का मौका है बशर्ते वह अगले 30 दिन में समर्पण कर दे या उसे गिरफ्तार कर लिया जाए। यह फैसला ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश की आजादी से जुड़े आठ अन्य हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई दो अन्य अदालतों में चल रही है। जिनमें से अधिकांश जमात-ए-इस्लामी से संबंधित हैं, जिन्होंने बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था।

दिया था मौका: कोर्ट ने आजाद को उपस्थित होने के लिए एक अखबार में एक विज्ञापन दिया गया था। उसकी गैरमौजूदगी में ट्रिब्यूनल ने मुकदमे को रोकने का फैसला किया था। बाद में उसने आजाद के बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील अब्दुस सुकुर खान को नियुक्त किया। एक माह के रिकार्ड समय में कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनी। इस दौरान अभियोजन पक्ष के 22 लोगों की भी गवाही हुई। जिसमें पीड़ित परिवारों के भी लोग शामिल थे।

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