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हाथों-हाथ बिकी शार्ली अब्दो, खरीदने को उमड़ पड़ा पूरा फ्रांस

आतंकी हमले के बाद फ्रांस की साप्ताहिक कार्टून पत्रिका 'शार्ली अब्दो' का पहला अंक बुधवार को प्रकाशित हुआ। पहले पृष्ठ पर मुहम्मद साहब के कार्टून वाले इस अंक को खरीदने के लिए पूरा फ्रांस उमड़ पड़ा। इसकी 30 लाख प्रतियां देखते ही देखते बिक गई। मुहम्मद साहब का कार्टून छापना

By manoj yadavEdited By: Updated: Thu, 15 Jan 2015 05:30 PM (IST)
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पेरिस। आतंकी हमले के बाद फ्रांस की साप्ताहिक कार्टून पत्रिका 'शार्ली अब्दो' का पहला अंक बुधवार को प्रकाशित हुआ। पहले पृष्ठ पर मुहम्मद साहब के कार्टून वाले इस अंक को खरीदने के लिए पूरा फ्रांस उमड़ पड़ा। इसकी 30 लाख प्रतियां देखते ही देखते बिक गई। मुहम्मद साहब का कार्टून छापना इस्लाम के खिलाफ माना जाता है। इसी विवाद से चर्चा में आए इस पत्रिका के आठ पत्रकार और कार्टूनिस्ट सहित 12 लोगों की पिछले हफ्ते इस्लामी आतंकियों ने हत्या कर दी थी।

माना जाता है कि जिन आतंकियों ने इस हमले को अंजाम दिया उसकी वजह इस पत्रिका द्वारा पहले प्रकाशित किए गए मुहम्मद साहब के कार्टून ही हैं। 'मैं शार्ली हूं।' नारा फ्रांस और दुनिया भर में फैले इसके लाखों समर्थकों का दिया हुआ है। इस शीर्षक के साथ कवर पेज पर मुहम्मद साहब के गाल पर आंसू और हाथों में 'जे सुइस शार्ली (आइ एम शार्ली)' की तख्ती है। इसके ऊपर शीर्षक लिखा है, 'सभी को माफ किया जाता है।' आमतौर पर पत्रिका की 60 हजार प्रतियां छपती रही हैं। आठ पन्नों के ताजा अंक में मुहम्मद साहब का कोई और चित्रण या वर्णन नहीं है लेकिन बहुत सारे कार्टून इस्लामी आतंकियों पर प्रकाशित किए गए हैं। फ्रेंच के अलावा इसका संस्करण अंग्रेजी, स्पेनिश, इतालवी, अरबी और तुर्की भाषा में प्रकाशित हुआ है।

इस पत्रिका की मांग के बारे में पेरिस में गामबेटा मेट्रो स्टेशन के बूथ पर काम करने वाली महिला ने कहा, 'यह अविश्वसनीय था। जब सुबह 5.45 बजे मैंने दुकान खोली तो उस समय 60-70 लोग मेरे लिए इंतजार कर रहे थे। मैंने अब तक ऐसा कभी कुछ नहीं देखा था। पंद्रह मिनट के अंदर मेरी सभी 450 प्रतियां बिक गई। आतंकी हमले में बच गए कर्मचारियों ही इस अंक को तैयार करने के लिए जुटे थे। उन्होंने भी माना कि वे भावुक क्षण थे। कार्टूनिस्ट रेनाल्ड 'लुज' लुजियर ने कहा कि पहले पेज का कवर कार्टून बनाकर वह रो पड़े। देर से दफ्तर पहुंचने के कारण वह आतंकी हमले के वक्त बाल-बाल बच गए थे।

कुछ मुसलमानों का मानना है कि मुहम्मद साहब को किसी भी रूप में चित्रित करना अपवित्र करना है। मिस्र के सरकार समर्थक इस्लामी संस्था दार-अल-इफ्ता ने इसकी निंदा की है और इसे दुनिया भर के 1.5 अरब मुसलमानों की भावनाओं को अनुचित तरीके से भड़काना बताया है।

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