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तिब्बत की स्वायत्तता नहीं स्वतंत्रता चाहते हैं दलाईलामा

बीजिंग। चीन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने लंबे समय से तिब्बत की स्वायत्तता की लड़ाई लड़ रह दलाईलामा की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि उनकी यह मांग तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग करने जैसा ही है। सरकारी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जातीय व धार्मिक मामलों की सर्वोच्च सलाहकार संसदीय समिति के अध्यक्ष झू वेकुन ने संके

By Edited By: Updated: Sat, 19 Oct 2013 04:12 PM (IST)
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बीजिंग। चीन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने लंबे समय से तिब्बत की स्वायत्तता की लड़ाई लड़ रह दलाईलामा की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि उनकी यह मांग तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग करने जैसा ही है।

पढ़ें: दलाई लामा पर नहीं बदली नीति: चीन

सरकारी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जातीय व धार्मिक मामलों की सर्वोच्च सलाहकार संसदीय समिति के अध्यक्ष झू वेकुन ने संकेत दिए हैं कि निर्वासन में रह रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा की इस मांग को चीन स्वीकार नहीं करेगा। चीनी शासन के खिलाफ नाकाम विद्रोह के बाद दलाईलामा ने 1959 में भारत में शरण ली थी। बीजिंग उन्हें अलगाववादी मानता है।

'चाइना डेली' ने झू के हवाले से लिखा,'सैद्धांतिक अर्थो में तिब्बत की उच्चस्तरीय स्वायत्तता का अर्थ आजादी ही है। यह दो चरणों में विभाजित है। पहला चरण तथाकथित स्वायत्तता होगी और दूसरे चरण में वास्तविक आजादी। दलाईलामा की स्वायत्तता की मांग चीन की स्वायत्तता प्रणाली की विरोधी है। उनकी इस मांग से चीन केक्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता कानून में अलगाववादी तत्वों को ही और उभार मिलेगा।' दलाईलामा के प्रयासों को तिब्बती 'मिडिल वे' कहते हैं। वे तिब्बत के लिए हांगकांग की तरह स्वायत्तता चाहते हैं, जिसमें तिब्बती अपनी जमीन पर चीन की संप्रभुता का सम्मान करेंगे, लेकिन उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में और अधिक स्वायत्तता दी जाएगी। पिछले कुछ वर्षो के दौरान कई तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह करने के बाद इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ा है। वर्ष 2009 से अब तक करीब 120 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं। चीन और दलाई लामा के बीच स्वायत्तता को लेकर वार्ता वर्ष 2010 में टूट गई थी।

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